माँ और सासू माँ में अंतर -एक लघु कथा
साल भर के लम्बे अन्तराल के बाद स्नेहा की सहेली कनक का फोन आया तो स्नेहा ने उलाहना देते हुए कहा -'' आ गई सहेली की याद ?'' कनक माफ़ी मांगते हुए बोली -''...अरे ऐसा क्यों कह रही हो ! ....तुम भी तो कर सकती थी फोन ....चल छोड़ ...बता कैसा चल रहा है तेरा घर-संसार ?'' स्नेहा उदास स्वर में बोली -'' क्या बताऊँ ,,छह महीने पहले माँ चल बसी और तीन महीने पहले सासू माँ .'' कनक लम्बी आह भरते हुए बोली -.ओह ..सो सेड ...आंटी एक्पायर हो गयी .....उनकी कमी तो तेरे जीवन में कोई भी पूरी नहीं कर सकता ...माँ तो माँ ही होती है.... .तेरी सासू माँ को क्या हो गया था ?'' स्नेहा ने खुद को सँभालते हुए बताया -'' वे बीमार थी .'' कनक सांत्वना देते हुए बोली ''...चल अब तो रानी बनकर राज कर ससुराल में ..अकेली बहू है वहाँ तू .'' स्नेहा कनक को डांटते हुए बोली -''कैसी बाते कर रही है तू ...मेरे लिए माँ और सासू माँ में कोई अंतर नहीं था और फिर यदि मेरी भाभी भी मेरी माँ की मृत्यु पर राहत की साँस ले तो मुझे कैसा लगेगा ? ये कहकर स्नेहा ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया .
शिखा कौशिक 'नूतन'
3 टिप्पणियां:
agar ye antar pata chal jaye to sara jhagda hi mit jaye .prernadayak v shikshaprad kahani .
आपकी यह रचना कल मंगलवार (बृहस्पतिवार (06-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
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