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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

आंसू आंसू में अंतर है भिन्न-भिन्न मुस्कानें !


Mayhem
आंसू-आंसू में अंतर है भिन्न-भिन्न मुस्कानें ,
जीवन धारण करने वाला जन-जन ये पहचाने !
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एक आंसू में पीड़ा घुलकर भिगो रही है पलकें ,
हर्ष के कारण कभी कभी आँखों में आंसू छलकें ,
कौन है खरा कौन है मीठा पीने वाला जाने !
आंसू आंसू में अंतर है भिन्न-भिन्न मुस्कानें !
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धनवानों की आँख का आंसू मोती है कहलाता ,
किन्तु निर्धन का आंसू तो मिटटी में मिल जाता ,
कौन इकठ्ठा कर दोनों को जायेगा तुलवाने !
आंसू आंसू में अंतर है भिन्न-भिन्न मुस्कानें !
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आंसू की भांति ही होता मुस्कानों में अंतर ,
अधरों पर आकर क्षण में कर देती दुःख छू मंतर ,
मनोभाव के दर्शन होते मुस्कानों के बहाने !
आंसू आंसू में अंतर है भिन्न-भिन्न मुस्कानें !
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शिशु-अधरों पर आती है ये स्वच्छ सलिल सी निश्छल ,
कुटिल बनी कैकेयी -अधरों पर सजती हाय निर्मम ,
मधुर मेनका -अधरों पर आती ऋषि को भरमाने !
आंसू आंसू में अंतर है भिन्न-भिन्न मुस्कानें !

शिखा कौशिक 'नूतन'
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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

एक अर्ज है तुझसे!

एक अर्ज है तुझसे  ऐ माली! 
नन्ही सी कली है जो तेरे उपवन की
तोड़ ना  देना इसे  डाली से
वरना खिलने से पहले ये मुरझा जायेगी 
इस  नन्ही कली को तुम खिलने देना  
रंग फिजा का इसमें  घुलने देना
देखना फूल बन खुश्बू से अपनी एक दिन
जीवन -उपवन तेरा ये महकायेगी|
एक अर्ज है तुझसे ऐ माली..!

नन्ही सी गौरैया है जो तेरे आँगन की
चहक-चहक आँगन में इसे  फुदकने देना 
इसके सपनो को तुम अपने हौसलों के पंख देना
आसमां से चुनने इसे इन्द्रधनुष के रंग  देना
देखना सतरंगी रंगों से  फिर एक  दिन
जीवन -आँगन तेरा ये रंग जायेगी|
एक अर्ज है तुझसे ऐ माली!

है पूछती अभिव्यक्ति ये मेरे अंतर्मन की 
जब  बेटी माँ का प्रतिरूप पिता का अंश है 
फिर  अपनी ही लाडली से उन्हें 
इतना  क्यों रंज है!

शिल्पा भारतीय "अभिव्यक्ति"(११.१०.१२)

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

कुछ पन्ने )

लघु कथा ( कुछ पन्ने )
कोई पंगे मत लेना मुझसे ! कह दिया बस , लोग समझते क्या हैं खुद को जब देखो टोकते हैं लड़की हूँ तो क्या हुआ , अपने बाप के घर का खाती हूँ , नही करनी मुझे शादी अभी , कल मेरे माँ-बाप बीमार होंगे तो कौन आएगा रोटी देने ? मेरा पति भी कह देगा तेरे बाप के लिय कमाता हूँ क्या ? मुझे अपने पैरो पर खडा होना हैं फिर सोचेंगे शादी का , आजाते हैं समाज के ठेकेदार बनके , ऐसे रिश्ते ले आते जिनका मेरे साथ कोई मैच ही नही ...मुझे बस पढना हैं ...शांत रे मन शांत !! यह वक़्त भी गुजार ले .
ऋचा ने डायरी में सब लिखा और चल दी चाय बनाने नीना मासी के लिय ..... बाहर नीना मासी लड़के के गुण बता रही थी
२२ हजार कमाता हैं कॉल सेंटर में
अब गुस्सा कही तो निकलना था ना

नीलिमा शर्मा निविया 

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

”मृत्यु की अभिलाषा !”



टूटे जब स्वप्नों की माला आशा भये निराशा ,
तब रह जाती शेष केवल मृत्यु की अभिलाषा !
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चिर-वियोग जब प्रियजनों का सहना पड़ता भारी ,
पल-पल पीड़ा शूल चुभाती निर्मम अत्याचारी ,
बहते अश्रु मुख पर लिखते जीवन की परिभाषा !
तब रह जाती शेष केवल मृत्यु की अभिलाषा !
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हर लेता जब रावण सीता पंचवटी में छल से ,
कमल-नयन तब भर आते व्यथित हो अश्रु-जल से ,
धीर-वीर-गम्भीर राम भी झेलें गहन हताशा !
तब रह जाती शेष केवल मृत्यु की अभिलाषा !
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भेद न पाएं लक्ष्य जब-जब लज्जित होते हैं हम ,
शत्रु छोड़ें व्यंग्य-वाण घायल होता अंतर्मन ,
अपमानों के जोखिम वाला जीवन एक तमाशा !
तब रह जाती शेष केवल मृत्यु की अभिलाषा !

शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

''कोई वजह तो चाहिए !''


मुस्कुराने के लिए कोई वजह तो चाहिए ,
आह भरने के लिए कोई वजह तो चाहिए !
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पूछते हैं सब यही खामोश क्यूँ हो तुम ?
लब हिलाने के लिए कोई वजह तो चाहिए !
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बैठे-बिठाये उसने मुझसे बैर कर लिया ,
षड्यंत्र रचने के लिय कोई वजह तो चाहिए !
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झोपडी को कर रही ज़लील कोठियां ,
दिल जलाने के लिए कोई वजह तो चाहिए !
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बेवजह 'नूतन' जहां में कुछ नहीं होता ,
ज़िंदा रहने के लिए कोई वजह तो चाहिए !
शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !


जीवन का बहीखाता खोला काम करें ये खास ,
कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !
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कितने आंसू आँख से टपके गिनना जरा संभलकर ,
कितनी आहेँ कितनी चीखें निकली तड़प-तड़प कर ,
कितनी बार भरी घुट-घुट कर लम्बी-गहरी सांस !
कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !
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कितना भीगे ममता मेह में कितना नेह लुटाया ,
कितना प्रेम किया अपनों से वापस कितना पाया ,
कितनी बार भरोसा टूटा कब-कब टूटी आस !
कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !
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कितनी बार खिले अधरों पर मुस्कानों के फूल ,
कितने स्वप्न सजे नयनों में सतरंगी सावन झूल ,
हुए प्रफुल्लित कितनी बारी कब-कब भये उदास !
कितना खोया कितना पाया आओ करें हिसाब !
शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

जीवन के अर्णव में डूबे ढूंढी दो पहचानें !


जीवन के अर्णव में डूबे ढूंढी दो पहचानें !
आँखों में आंसू के मोती अधरों पर मुस्कानें !
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आशा का उज्ज्वल प्रभात व् गहन निराशा -तम भी ,
नवजात शिशु की किलकारी व् मृत्यु का मातम भी ,
एक हवेली जीवन जिसमें सुख-दुःख के तहखाने !
आँखों में आंसू के मोती अधरों पर मुस्कानें !
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स्वप्नों की मेंहदी रचती व् उजड़े मान किसी की ,
एक के सिर पर सेहरा सजता अर्थी उठे किसी की ,
मीठा-कड़वा फल-जीवन जो चूसे वो ही जाने !
आँखों में आंसू के मोती अधरों पर मुस्कानें !
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मेहनत कर एक हाड़ गलाता दो रोटी न पाता ,
बिन मेहनत के कोई कोई मेवे रोज़ चबाता ,
कोई पीटता छाती अपनी कहीं गाने और बजाने !
आँखों में आंसू के मोती अधरों पर मुस्कानें !
शिखा कौशिक 'नूतन'