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मंगलवार, 25 जून 2013

भारतीय सेना को हार्दिक धन्यवाद !


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उत्तराखंड प्रलय के वक्त हमारी सेना ने अदम्य साहस का परिचय देकर हजारों श्रद्धालुओं को सुरक्षित उनके घर रवाना किया है . 

भारतीय सेना को सभी देशवासियों की ओर से हार्दिक धन्यवाद !



तूफानों  को थमना सिखा दें ,
हम ज़लज़लों का दिल दहला दें ,
हम भारत माँ के बेटे तब तक दम ना लेते ,
जब तक चुनौती का सिर ना  झुका  दें !



2


मुसीबत जो टकराए हम से हो जाती टुकड़े टुकड़े ,
फौलादी अपने इरादे कभी भी नरम न पड़ें ,
आँखें उठाकर जो देंखें अम्बर धरा से मिला दें !
हम भारत माँ के बेटे तब तक दम ना लेते ,


जब तक चुनौती का सिर ना  झुका  दें !


1


सारा वतन अपना घर है ये धरती हमारी माता ,
मज़हब हमारा तिरंगा गगन पर रहे फहराता ,
हमें जान की नहीं परवाह वतन पर हँसकर लुटा दें !

हम भारत माँ के बेटे तब तक दम ना लेते ,


जब तक चुनौती का सिर ना  झुका  दें !


4

नहीं हम नहीं हैं मसीहा ,नहीं हम नहीं हैं फ़रिश्ते !
हम फ़र्ज़ वो ही निभाते जिसकी शपथ हम हैं लेते !
उफनते हुए दरिया पर पुल हम मिलकर बना दें !
हम भारत माँ के बेटे तब तक दम ना लेते ,


जब तक चुनौती का सिर ना  झुका  दें !

शिखा कौशिक 'नूतन' 

रविवार, 23 जून 2013

यहाँ भगत सिंह रंगवाते हैं चोला रंग बसंती !

 

जिस  हाथ तिरंगा है वो हाथ मुबारक है ![सर्वाधिकार सुरक्षित -do not copy ]
जिस  हाथ तिरंगा है वो हाथ मुबारक है !
जिन  लबों पे जन-गण-मन वे लब मुबारक हैं !
भारत माँ के चरणों में झुका शीश मुबारक है !
मेरे भारत में जन्मा हर शख्स मुबारक है !
*********************************

यहाँ गंगा जमुना सरस्वती का होता संगम पावन !
कुदरत की है छटा निराली देश मेरा मनभावन !
मंगलमय मेरा भारत कितना आकर्षक है !
मेरे भारत में जन्मा हर शख्स मुबारक है !
********************************

ये धरती वीर प्रसूता वीरों को जन्म है देती !
यहाँ भगत सिंह रंगवाते हैं चोला रंग बसंती !
जगत गुरु मेरा भारत जग का अधिनायक है !
मेरे भारत में जन्मा हर शख्स मुबारक है !
**********************************

हम कहकर 'वन्देमातरम' धरती को माता माने !
हम 'सत्यमेवजयते ' कह पापी को कुचल डालें !
सत्य-अहिंसा-प्रेम का भारत परिचायक है !
मेरे भारत में जन्मा हर शख्स मुबारक है !

जय हिन्द ! जय भारत !

शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 22 जून 2013

फिर नई सुबह हुई.....

सुश्री शांति पुरोहित की कहानी "    फिर नई सुबह हुई...."

             'आज घर मे दिन भर खाली बैठे- बैठे बोरियत मेहसूस होने लगी| तो सोचा सब्जी मण्डी जाकर सब्जी ले आऊ| तैयार होकर बाहर आयी| आज गर्मी ज्यादा थी, तो मैंने कॉटन की प्रिंटेड हल्की साड़ी पहनी| गैरेज मे से गाड़ी निकाली और चल दी|
                    सब्जी मंडी घर से थोड़ी दूर थी| मौसम बरसात का था, मैंने ऍफ़. म, चालू किया, एन्जॉय करते हुए मे वहाँ पहुंची| पार्किंग मे गाड़ी पार्क की, और पहुँच गयी सब्जी वाले के पास| 'भैया, सब तरह की सब्जी एक- एक किलो कर दो, और हां, ताजा होनी चाहिए|' अचानक मेरी नजर एक जोड़ी आँखों से टकराई,जो मुझे बड़ी शिद्दत से घूर रही थी| मैंने वहां से अपना ध्यान हटाकर सब्जी वाले को कहा 'सब सब्जिया अच्छे से पैक कर दी ना तुमने|' उसने बैग देते हुए कहा ' हां मैडम सब कर दी ये लो बिल|' मैंने उसे पैसे दिए,और गाड़ी की तरफ चल दी| गाड़ी मे बैग रखकर मै,उस औरत के पास गयी, जो मुझे कब से घूर रही थी|
                    'मैंने देखा,दुबला क्लान्त शरीर था उसका, उदास और धँसी हई आँखे,तन पर मैले-कुचेले वस्त्र थे| ऐसे लग रहा था, तेज हवा चले तो ये घिर जाएगी| ''क्या आप मुझे जानती है ?' मैंने उसको पूछा| उसने मरियल सी थकी आवाज मे कहा 'मै तो आपको देखते ही पहचान गयी,मैडम ,पर लगता है आप ने नहीं पहचाना|' 'मैंने अपने दिमाग पर जोर दिया, तभी उसने कहा '' मै किरण हूँ, 'आँगनबाड़ी' मे काम करती थी| मेरा सेंटर आपके एरिया मे ही मे था| 'ओह,हां, याद आया, किरण शर्मा, 'पर तुम्हारी ये दशा कैसे हुई|' मैंने कहा|' 'बहुत लम्बी कहानी है| फिर किसी दिन, अभी आप लेट हो जाओगी|' हां तुम सही कह रही हो, ये लो मेरा पता कल दोपहर मे मेरे घर आना फिर इत्मिनान से बात करते है|' मैंने उसे अपना विजिटिंग कार्ड दिया और गाड़ी स्टार्ट की|
                    घर आकर बहु को एक कप चाय लाने को कहा, और मै पलंग पर मसनद के सहारे लेट गयी| पता नहीं चला कब आँख लग गयी| बहु ने उठाया नहीं| रात को दस बजे बेटा मुझे उठाने आया| हम सबने खाना खाया| सबने पूछा आज आप इतना चुप- चुप क्यों हो?' कुछ नहीं थकान है,ये कह कर मै अपने कमरे मे चली आयी|
                          'यादो की कडिया जुड़ने लगी| मै ''महिला बाल विकास'' के पद पर कार्यरत थी| उस वक्त मेरा तबादला मेरे गृह नगर झालावाड से बांसवाडा हो गया था| मेरे पति रमाकान्त, बैक मे सहायक मैनेजर थे| मेरा एक बेटा जो मुंबई मे रह कर पढ़ रहा था| घर मे सास-ससुर और पति का साथ था, बांसवाडा ज्वाइन करती हूँ तो अकेले रहना पड़ेगा,ये सोच कर मन घबरा रहा था| ससुर जी मेरी मनस्थती को जान गये, कहा ' बहु फ़िक्र ना करो,मै चलूँगा तुम्हारे साथ, पर अचानक उनके घुटनों मे दर्द ज्यादा होने से वो नहीं चल सके, मुझे अकेले ही निकलना पड़ा|
                  'बांसवाडा मे ज्वाइन किये एक माह हो रहा था| आज 'आँगनबाड़ी कार्यकर्ता' की मीटिंग मे जाना था| दोपहर को मीटिंग थी| करीब एक बजे एक आँगनबाड़ी कार्यकर्ता किरण मेरे ऑफिस आयी| थोड़ी ही देर मे उसके साथ बाते करके मुझे अच्छा लगा| मैंने उसे फिर आने का कहा,और हम दोनों मीटिंग के लिए निकल गयी| जब किसी के साथ आत्मीयता होती है तो मन उस आत्मीय को अपने आस-पास ही देखना चाहता है| किरण भी मेरे दिल की बात जान गयी| वो अक्सर मेरे पास आती रहती थी, शाम का खाना तो लगभग वो ही बनाती थी| किरण की निकटता के कारण मुझे अब अकेलापन नहीं लगता था|ये सब सोचते कब कब आँख लगी,पता ही नहीं चला| सुबह बहु की आवाज से आँख खुली|
                       'डोर बेल बजी,दरवाजा खोला तो सामने किरण अपने उसी रूप मे मेरे सामने थी| ''आओ किरण, हम बैठक कक्ष मे बैठ गये| बहु जल-पान रख कर चली गयी| मैंने चूपी तोड़ते हुए कहा ''किरण कहो क्या हुआ तुम्हारे साथ, मुझे याद है, एक बेटा था तुम्हारे फिर भी तुम्हे ये काम करने की क्यों जरूरत पड़ी?' किरण ने कहा ''हां था,मेरा बेटा विमल, पर किस्मत के आगे मै हार गयी मैडम, मेरे बेटे की शादी के तीन साल बाद ही,एक दुर्घटना मे मेरा बेटा और पति दोनों मुझे रोता-बिलखता हुए छोड़ कर चले गये| बहु थोड़े समय तक तो मेरे साथ रही, फिर एक बार मायके गयी तो वापस वो नहीं, एक चिठ्ठी आयी कि 'माँ अब मेरे आपके पास रहने की वजह तो नहीं रही तो मै अब से अपने मायके मे ही रहूंगी| बहु के ना आने से घर मुझे काटने लगा| नौकरी भी छोड़ चूकी थी| बहु का सहारा था वो भी नहीं रहा| मै हताश-निराश, मैंने अपने भाई के घर जाने का सोचा और एक दिन भाई के घर चली गयी| रात दिन मेरी फिक्र करने वाला भाई ने पूछा ''कैसे आना हुआ सब ठीक तो है ना?' भाभी कमरे मे से आयी,थोडा सा हंसने का नाटक किया और चाय बनाने रसोई मे चली गयी| 
                       अभी एक सप्ताह ही बीता कि एक दिन मेरे कानो ने सुना '' अब क्या आपकी बहन हमेशा के लिए रहने आई है, क्या ?' उसे कल ही जाने को बोल दो,' मुझे डर है कि इस करमजली के आने से हमारी हंसती-खेलती गृहस्थी तबाह ना हो जाये|' भाभी के मुह से निकले शब्द मेरे कानो मे पिघलते सीसे के समान थे| वो 'कल जाने का कहते मै उससे पहले ही अपने घर चली आयी| इतना कह कर किरण रोने लगी, थोडा पानी पीने के बाद कहा जब कोई मेरा अपना ना रहा तो पेट पालने के लिए मैंने ये काम किया है|' किरण की बाते सुनकर मेरी आँखे बहने लगी| मैंने उसको कहा 'आज से तुम अकेली नहीं,मै तेरे साथ हूँ| तुम मेरे घर मेरे पास रहोगी|, मैंने उसे अपने कपड़े दिए और उसे नहाने के लिए कहा| किरण कपड़े बदल कर आयी और मेरे पैरो मे गिर कर कहने लगी '' आज भी इस दुनिया मे आप जैसे देवता लोग रहते है,जो अपने ऊपर किये गये थोड़े से अहसान का बदला इतने बड़े रूप मे चुकाता है| आज मेरे जीवन की फिर एक नई सुबह हुई है| आपको कोटि प्रणाम| दोनों गले मिलकर भाव विहल हो गयी|
      शांति पुरोहित 

मौत से लेते टक्कर -WE ARE INDIAN SOLDIERS ........

our soldiers have done excellent work at the time of crises .i salute them .this is my song for them ....brave indian soldiers .-shikha kaushik 'nutan' 
  



जान  हथेली पे रखकर जान बचाते सभी  की !
आंधी हो तूफां हो या जलजला परवाह नहीं है किसी की !
WE ARE INDIAN SOLDIERS ........
Rescue operations by the Army in Joshimath, Uttarakhand

मानव के प्राण बचाना चलते  हैं लक्ष्य  ये  लेकर  ,
करते  मुसीबत का सामना मौत से लेते  टक्कर  ,
प्रण से विचलित  न  हो खाते  कसम  वर्दी की !
WE ARE INDIAN SOLDIERS ........
North India struggles to stay AFLOAT

रोती बिलखती जिंदगी को पकड़ाते फौलादी हाथ ,
उसको यकीन दिलाते हैं , हम तुम्हारे साथ ,
गहरे अँधेरे को चीरकर लाते किरण हम ख़ुशी की !
WE ARE INDIAN SOLDIERS ........
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देश सेवा मज़हब हमारा देशवासी हमारा दिल ,
आपकी दुआओं से बन सकें इतना काबिल ,
आओ मिलकर बोले ''जय हो भारत माँ की ''
WE ARE INDIAN SOLDIERS ........

   SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'

गुरुवार, 20 जून 2013

हकों की बात मत करना

Arab Couple Arguing Royalty Free Stock Images
हकों की बात मत करना

मोहब्बत की करो बातें हकों की बात मत करना ,
कटें खिदमत में दिन-रातें हकों की बात मत करना !

मुनासिब है रहो मसरूफ़ सजने और संवरने  में ,
अक्ल से देना ना मातें हकों की बात मत करना !

नहीं जायज़ ज़माने में खुली घूमें -फिरें औरत ,
तुम्हें हम आज समझाते हकों की बात मत करना !

बगावत करने की मत सोचना हरगिज़ मेरी बेगम ,
ये हैं ख्वाबी करामातें हकों की बात मत करना !

तुम्हें 'नूतन' मैं  गाढ़ दूंगा ज़िन्दा ज़मीन में ,
रही जो आँख दिखाते हकों की बात मत करना !

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 18 जून 2013

The Best Lines ever said by a Man....."



Rani Kaur has posted on ''SAVE DAUGHTER SAVE NATION( VIJAY BHALLA)''-

 The Best Lines ever said by a Man....."

When I was born, A Woman was there to hold me...... My Mother

As I grew up as a child, A woman was there to care & play with me..... My sister

I went to school, A Woman was there to help me learn...... My Teacher

I became depressed when I lost, A Woman was there to offer a shoulder...
My Girlfriend

I needed compatibility, company & Love, A Woman was there for me.. My Wife

I became tough, A Woman was there to melt me..... My Daughter

When I will die, A Woman will be there to absorb me in....... Motherland

If you are a Man, value every Woman :))
If you are a Woman, feel proud to be one


[published by shikha kaushik ]

शनिवार, 15 जून 2013

वो मेरे पिता हैं -मेरे जीवन दाता

 

मेरे  पिता -मेरे जीवनदाता 
सूरज की चमक भी उनसे कम है;
फूलों की महक भी उनसे कम है ;
वो रख दें सिर पे हाथ जो आशीषों वाला ;
जन्नत की ख़ुशी भी उससे  कम है ;
वो मेरे पिता हैं -मेरे जीवन दाता .
सूरज की ......


उनकी नजरों से देखा जग सारा ;
हर पल देते हैं हमको वो सहारा ;
अनुशासन में हैं पक्के,हर बात में दम है .
सूरज की ......

दुनिया  के सातों रंग दिखाते ;
दुनियादारी के ढंग सिखाते ,
जब साथ मिला है उनका तो क्या कोई ग़म है !
सूरज की .....
                                शिखा कौशिक 

शुक्रवार, 14 जून 2013

आगे ख़ुदा जाने कौन बेहतर है ?-एक लघु कथा

आगे ख़ुदा जाने कौन बेहतर है ?-एक लघु कथा 


''आ जाओ  बाऊ  जी.. ...मेरी रिक्शा  में बैठ जाओ ...मैं छोड़ दूंगा .'' हड्डी हड्डी चमकते बदन वाले नफीस ने बीच  राह में ख़राब हुई कार के पास खड़े सूटेड-बूटेड मोटे पेट वाले महाशय  को संबोधित करते हुए कहा . वे अकड़कर बोले  - '' कितने लेगा ....लीला होटल के पास है मेरा बंगला ?''  नफीस बोला -''...बाऊ जी वो तो बहुत दूर है ...पचास तो लूँगा ही .'' अपने ड्राइवर को कार ठीक कराकर बंगले पर ले आने का निर्देश देकर वे तीन पहियों की उस सवारी पर सवार हो गए .और नफीस पेंडिल दर पेंडिल चलाते  हुए उन्हें  उनके  गंतव्य  की ओर  ले चला .बंगले पर पहुँचते ही वे महाशय रिक्शा से उतरे और सूट की जेब से बटुआ  निकाल चार दस के नोट नफीस की ओर बढ़ाते  हुए बोले -'' ले रख !' आवाज में ऐसी कड़क थी जैसे मुफ्त में उसे रूपये पकड़ा रहे हो .नफीस गिड़गिडाता  हुआ बोला -'नहीं बाऊ जी  ....ये तो जुल्म  कर रहे हो आप .''  मोटे महाशय भड़कते हुए बोले -'अबे कैसा जुल्म .....रख ले !'' ये कहकर नोट नफीस के हाथ में थामकर वे अपने बंगले की ओर बढ़ लिएनफीस मन मसोसकर रिक्शा मोड़ वापस चल दिया तभी उसे एक आठ-दस साल के  बच्चे ने हाथ देकर रुकने का इशारा किया .नफीस के रुकते ही वो मैले-कुचैले कपड़ों वाला बच्चा बोला -''चच्चा ..मयूर पार्क के पास जाना है ..चलोगे क्या ..कितना पैसा लोगे चच्चा  ?'' नफीस उसकी बात पर हँसता हुआ बोला -''बैठ जा बेटे ..मैं उधर ही जा रहा हूँ .जो जी में आये दे देना .बच्चे ने जेब से निकाल कर पांच का नोट आगे कर दिया .नफीस उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोला -''आइसक्रीम खा लियो इसकी बेटा जी  ..अपने इस चच्चा की तरफ से .'' नफीस के ये कहते ही बच्चा खुश होकर रिक्शा में बैठ गया .नफीस ने एक नज़र उन मोटे महाशय के बंगले पर मारी और सोचा -''वाह रे!!! बाऊ जी आपके पास केवल बड़ा बंगला है पर मेरे पास बड़ा दिल है ....आगे ख़ुदा जाने कौन बेहतर है ?' ये सोचते सोचते  वो मस्त होकर अपनी रिक्शा लेकर चल पड़ा .

शिखा कौशिक 'नूतन ' .

मंगलवार, 11 जून 2013

आपका-अख्तर खान "अकेला": विदेशी मीडिया में भी छाया नौ दुल्हनों का 'वर्जीनिट...

READ THIS HERE -

आपका-अख्तर खान "अकेला": विदेशी मीडिया में भी छाया नौ दुल्हनों का 'वर्जीनिट...: बैतूल। मध्यप्रदेश के बैतूल में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सामूहिक विवाह के दौरान कौमार्य ...

आपका-अख्तर खान "अकेला": विदेशी मीडिया में भी छाया नौ दुल्हनों का 'वर्जीनिट...

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आपका-अख्तर खान "अकेला": विदेशी मीडिया में भी छाया नौ दुल्हनों का 'वर्जीनिट...: बैतूल। मध्यप्रदेश के बैतूल में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सामूहिक विवाह के दौरान कौमार्य ...

'काश..'





...

"काश..तुम भी मेरे ख़्वाब से निकल सामने होते..नाज़ुक-से बेरहम काँच बहुत चुभते हैं..!! काश..पलकें गुनगुनाती संगीत तेरे-मेरे मिलन का..आँखों को चीरती बेगैरत रिवायत बहुत सतातीं हैं..!!!

काश..तुम समझते उल्फत-ए-रूह और मेरा आवारापन..!!"

...


--

प्रियंकाभिलाषी..

११ जून, २०१३..

सोमवार, 10 जून 2013

फिर कैसा फ़तवा ?-लघु कथा

फिर कैसा फ़तवा ?-लघु  कथा


मौलाना  साहब  को  आते  देखकर  मैं  उठकर  खड़ा  हो  गया  .दुआ -सलाम  के  बाद  मैंने  उनसे  बैठने  का  आग्रह   किया  .इधर -उधर  की बातों के बाद मैंने उनसे जिज्ञासावश पूछ ही डाला -' एक बात बताइए आप लोग विभिन्न मुद्दों पर मौत का फ़तवा  जारी करते रहते हैं पर जब कोई मुसलमान एक हिन्दू पार्टी -जो मस्जिद ध्वस्त कर मंदिर निर्माण की खुले आम वकालत करती है ...ज्वाइन करता है ....पदाधिकारी बनता है.. तब आप लोग उस शख्स के खिलाफ फ़तवा जारी क्यों  नहीं करते ?'' मौलाना  साहब मुस्कुराते हुए बोले -'' पंडित जी हम ऐसे इन्सान को  ईमान बेचने वाला मानते हैं बिलकुल फिल्मों में काम करने वाली  मुस्लिम औरतों की तरह ..फिर कैसा फ़तवा ?'' मौलाना साहब ये कहते हुए उठ कर खड़े हो गए और ''ख़ुदा हाफिज '' कर चल दिए .

शिखा कौशिक 'नूतन' 

गुरुवार, 6 जून 2013

" कृष्ण सुदामा की महान दोस्ती "

सुश्री शांति पुरोहित की कहानी  " कृष्ण सुदामा की महान दोस्ती "         

                                                      
                                                                 






  सुदामा अपनी पत्नी सुशीला के कहने से अपने परम मित्र 'श्री कृष्ण, से मिलने द्वारिका नगरी गये,तो उनके मित्र भगवान श्री कृष्ण ने उनके आतिथ्य सत्कार के साथ -साथ उनके आत्म -सम्मान और उनके सवाभिमान का भी पूरा ध्यान रखा | जो भगवान श्री कृष्ण के अनुसार'' एक भक्त की भक्ति का सम्मान करना भगवान का परम कार्य है |,तो जैसे ही सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण के द्वार पर पहुंचे,कृष्ण ने सुदामा को 'हे मित्र सुदामा, कहकर गले से लगा लिया था | मित्र की ये दशा देख कर' करुणासागर ,ने अपने आंसुओ से ही उनके पैर धो दिए थे |सुदामा के फटे वस्त्र धोने के लिये दे दिए,और उन्हें अपने नए वस्त्र पहनाये | फिर सोने के थाल मे भोजन लाकर के कहा 'मित्र सुदामा अब आप भोजन करे ,तब सुदामा ने कहा 'आप भी मेरे साथ खाना खाहिए , नहीं सुदामा मै तुम्हारे साथ नहीं खाऊंगा , ऐसा इसलिए नहीं कहा कि भागवान कृष्ण अपने गरीब मित्र सुदामा के साथ नहीं खाना चाहते थे, वो तो उनका झूठा खाना चाहते थे | सुदामा गदगद हो गये जब कृष्ण ने कहा '' मित्र सुदामा तुम खाओ हम तुम्हारा झूठा बचा हुआ खाना खायेंगे | ये कोई अथिथि सत्कार नहीं था,ये सुदामा ब्राम्हण की तपस्या का सम्मान था | सुदामा रात दिन भजन करता था ये उनकी उसी भक्ति का सम्मान था| कितना सम्मान सुदामा का किया श्री कृष्ण ने | इतना ही नहीं जब सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलकर वापस अपने घर जाने लगे तो सुदामा के सवाभिमान की रक्षा के लिये जो नए वस्त्र दिए थे वो भी उतरवा लिये | अगर सुदामा नए वस्त्र पहन कर चले जाते तो लोग कहते कि अपने भगवान् मित्र के पास जाकर अपनी गरीबी को बता कर अपनी तपस्या के बदले मे एश्वर्य मांग कर लाये है | सुदामा की तपस्या -सुदामा का सवाभिमान कृष्ण को बहुत प्यारा था |सुदामा गरीब नहीं थे | उनके पास भक्ति थी | बड़ी भारी भक्ति की शक्ति थी | श्री कृष्ण नाम ही उनका आश्रय था | अपने मित्र श्री कृष्ण के पास जाकर भी उनसे कुछ नहीं माँगा और ना ही श्री कृष्ण की सुदामा को उनकी भक्ति के बदले मे जाते हुए सुदामा को कुछ देने का सोचा | हाँ उनके घर पहुँचने से पहले सब कुछ श्री कृष्ण ने पहुँचा दिया था |
एसी  महान थी श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती |
|   जय श्री कृष्ण |

बुधवार, 5 जून 2013

शौहर की शर्ते -औरत तभी बनना मेरी बेगम !

Indian_bride : Beauty portrait of a young indian woman in traditional clothing with bridal makeup and jewelry, closeup shot Stock Photo
शौहर  की शर्ते !






















   ज़ुल्म सहने की हो ताकत तभी बनना मेरी बेगम ,
न कुछ कहने की हो आदत तभी बनना मेरी बेगम !

निकाह के वक़्त जब कबूल करने को कहें काजी ,
हमेशा कर सको खिदमत तभी बनना मेरी बेगम !

मेरे हर हुक्म को शबोरोज़ अगर कर सको पूरा ,
न हो और दिल में बगावत तभी बनना मेरी बेगम !

मेरी इज्ज़त बचाना जान देकर इस ज़माने में ,
हो तुममे मिटने की हिम्मत तभी बनना मेरी बेगम !

हदों में रहना तुम 'नूतन' यहीं हैं मर्द की शर्ते ,
रहो औकात में औरत तभी बनना मेरी बेगम !

शिखा कौशिक 'नूतन'

माँ और सासू माँ में अंतर -एक लघु कथा

Talking on mobile phone Stock ImagesIndian woman talking on phone Stock Photo   

माँ और सासू माँ में अंतर -एक लघु कथा 

साल भर के लम्बे अन्तराल के बाद स्नेहा की सहेली कनक का फोन आया तो स्नेहा ने उलाहना देते हुए कहा -'' आ गई सहेली की याद ?'' कनक माफ़ी मांगते हुए बोली -''...अरे ऐसा क्यों कह  रही हो ! ....तुम भी तो कर सकती थी फोन ....चल छोड़ ...बता कैसा चल रहा है तेरा घर-संसार ?'' स्नेहा उदास स्वर में बोली -'' क्या बताऊँ ,,छह महीने पहले माँ चल बसी और तीन महीने पहले सासू माँ .'' कनक लम्बी आह भरते हुए बोली -.ओह ..सो सेड ...आंटी एक्पायर  हो गयी .....उनकी कमी तो तेरे जीवन में कोई भी पूरी नहीं कर सकता ...माँ तो माँ ही होती है.... .तेरी सासू माँ को क्या हो गया था ?'' स्नेहा ने खुद को सँभालते हुए बताया -'' वे बीमार थी .'' कनक सांत्वना देते हुए बोली ''...चल अब तो रानी बनकर राज कर ससुराल में ..अकेली बहू है वहाँ तू .''  स्नेहा कनक को डांटते  हुए बोली -''कैसी बाते कर रही है तू ...मेरे लिए माँ और सासू माँ में कोई अंतर नहीं था और फिर यदि मेरी भाभी भी मेरी माँ की मृत्यु पर राहत  की साँस ले तो मुझे कैसा लगेगा ? ये कहकर स्नेहा ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया .

शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 2 जून 2013

धरोहर एक गुरु की

सूश्री शांति पुरोहित की कहानी    (  धरोहर एक गुरु की  )





     सदर बाजार मे पीपल के पेड़ के गटे पर टाट-पट्टी बिछा कर बैठता है पन्ना लाल ! उसके दाई और एक लकड़ी कि पेटी रखी रहती है,जिसमे उस्तरा,कैंची मशीन और कंघा रहता है | पास मे ही पानी कि बाल्टी रखी है,वो  बाल काटते वक्त पानी उसी मे से लेता है |
                                          उन दिनों आज की तरह ''ब्यूटीपार्लर'' का चलन नहीं हुआ करता था |लोग-बाग़ यहाँ नाई के पास आकर बाल कटवा लिया करते, हजामत भी करवा लेते थे | पुरे दिन खटने के बाद भी पन्ना की कमाई दो-तीन रुपया ही होती थी | शहर से दूर कच्ची बस्ती मे कच्चे मकान बस्ती वाले लोगो के बने है,वही  पर पन्नालाल का भी घर है | घर की दीवारे गारे-गोबर की,और छत खपरेल की बनी थी | घर की औरते फर्श को गारे से लीप लेती थी |
                                पन्ना ने सोचा ''खाली बैठने से तो बैगार ही भली'' ये लोग जहाँ ज्यादा घर होते है,वही किसी गली के मोड़ पर या किसी दरख्त के नीचे बने गटे को अपना ठिकाना बना लेते है | आस- पास के घरो के लोग इनके पास आते रहते है जिनसे इनकी रोजी-रोटी चलती रहती है,और लोगो को अपने इस काम के लिए ज्यादा दूर भी नहीं जाना पड़ता है |
                                गाँव मे कोई मरता है, तो ये वहां जाना पहले पसंद करते है,क्योंकि वहां एक ही दिन मे अच्छी कमाई हो जाती है | बाप का जो काम,वही पन्ना का काम, और अब अपने बेटे को भी पन्ना इसी काम मे लगाना चाहता था | कई बार अपने बेटे सोहन को दूकान पर बैठा कर पन्ना घरो मे लोगो के कटिंग करने जाता था | सोहन ने काम तो अभी तक कुछ भी नहीं सीखा था |
                                जहाँ पन्ना बैठा करता था,वहा सामने बने आलिशान घर मे सीनियर सेकंड्री स्कूल के प्रिंसिपल साहब अपने परिवार सहित रहते थे | तेज गर्मी,सर्दी और बरसात मे पन्ना उन्ही के घर के आगे बने बरामदे मे बैठ जाया करता था |
                                  पन्ना की इतनी आमदनी नहीं थी कि वो सोहन की पढाई चलने दे;पांचवी पास करते ही सोहन का स्कूल से नाम कटवा लिया और धंधे पर लगा लिया | पर एक बार सोहन स्कूल क्या गया उसका मन अब पढने के सिवा किसी और काम मे नहीं लगता | अक्सर सोहन पिंसिपल जी के घर से पढने के लिए कोई किताब मांग कर ले आता और दुकान पर पढता रहता | पिंसिपल जी की नजर से ये छुप नहीं सका कि सोहन को पढने का मौका मिले, तो ये पढ़-लिख कर बहुत बड़ा आदमी बन सकता है |
                                   सोहन की पढने की लगन देख कर प्रिंसिपल साहब ने एक दिन पन्ना से पूछा ''तुमने सोहन को पढने से क्यों रोका वो बहुत होशियार है, पढने मे उसकी बहुत रूचि है,मै चाहता हूँ तुम उसे पढाने के बारे मे एक बार फिर से सोचो ?'' मै मदद करने को तैयार हूँ, तुम ठीक समझो तो जरुर बताना, मै तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा करूँगा |
                                 '' कैसे हां भरू साहब...अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए पन्ना बोला, सुबह से शाम तक खटता हूँ तो भी बच्चो के पेट पालने तक की कमाई नहीं होती है......तो इसकी फीस,किताबे,कापियों का खर्चा कहाँ से निकालूगा |'' ये तो प्रिंसिपल साहब जानते ही थे कि पन्ना की मुख्य समस्या यही रही होगी |प्रिंसिपल साहब ने कहा ''देखो बच्चे को पढ़ते हुए तो तुम भी देखना चाहते होगे,तो ये खर्च की चिंता तुम मुझ पर छोड़ दो ,ये सब मै देख लूँगा....अगर सोहन का मन पढने मे वापस लगता है तो इसके पढने का खर्च मै करूँगा |
                                  पन्ना लाल बहुत खुश हुआ और कहा ''आप मेरे बच्चे के लिए इतना सब करने के लिए तैयार है,तो ये बहुत बड़ी मदद होगी सोहन के भविष्य के लिए,मेरे सारे परिवार के लिए बहुत बड़ी बात है | आप बड़े दयालु हो...आपके दिल मे हम जैसो के लिए इतनी दयालुता देख कर मै आपमें भगवान के दर्शन कर रहा हूँ |आपको भगवान खूब बरकत दे |
                                   सोहन ने उसी दिन प्रिंसिपल साहब को अपना गुरु माना;उनके निर्देशन मे उसने दसवी क्लास मे दूसरी पोजीशन लाकर साबित कर दिया कि प्रिंसिपल साहब ने उस पर विश्वास करके कोई गलती नहीं की है उसने उनकी उम्मीद पर खरा उतरना शुरू कर दिया है | गाँव और स्कूल का नाम रौशन किया |पन्ना के कुटुम्ब,परिवार मे यहाँ तक पूरी जात मे सोहन पहला बच्चा है, जिसने दसवी पास की,वो भी पोजीशन के साथ | प्रिंसिपल साहब आज से दस साल पहले कलकता से आये थे,तब से इसी हाई स्कूल के प्रिंसिपल है | गरीब,होनहार, प्रतिभाशाली बच्चो को सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओ से मदद दिला कर उन्हें आगे बढ़ने मे हमेशा मदद की है | अब तक सैकड़ो बच्चो को वो पढने के अवसर उपलब्ध करा चुके है | और एसी प्रतिभाओ को तराशने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते है |उदारमना, जो है गाँव वाले उनकी बहुत इज्जत करते है |
                                 अपनी मेहनत और लगन से सोहन ने सीनियर भी अच्छे अंक के साथ उतीर्ण कर ली | अब पन्ना उसे अपने पुस्तैनी काम मे लगाना चाहता था | चाहता था कि सोहन काम मे मदद करेगा तो कमाई ज्यादा होगी | पर प्रिंसिपल साहब को ये पता चला तो कहा ''पन्ना पहले तुम सोहन की राय तो जान लो,वो क्या चाहता है| ''सोहन को पूछा तो उसने कहा ''मेरा फर्ज बनता है कि मै पिता की मदद करू, पर अपनी पढाई बंद करके नहीं,मै टयुसन पढ़ा कर पिताजी की मदद  करने के साथ अपनी पढाई जरी रखूँगा |''
                               पढने के साथ सोहन पिताजी की मदद भी करने लगा था | पन्ना खुश था बेटे से मदद पाकर | एक दिन प्रिंसिपल साहब ने सोहन से कहा ''तुम जितना चाहो पढो,कभी इंकार नहीं करूंगा,पर मेरी एक छोटी सी इच्छा है वो तुम्हे पूरी करनी है|''
                                 'जी, कहिये क्या करना है आपके लिए,''इच्छा सिर्फ इतनी सी है कि जब तुम पढ़-लिख कर कुछ बन जाओ तो अपनी जात-बिरादरी,भाई ,बहन और परिवार जन को भूल तो नहीं जाओगे ना| जो गरीब और आर्थिक रूप से पीड़ित हो उनकी मदद जरुर करना ,अपनी पढाई को अपने करियर तक सीमित  मत रखना | सब को तुम्हारी पढाई का फायदा मिलना चाहिये |''
                                 सोहन ने कभी नहीं सोचा कि प्रिंसिपल एसी कोई इच्छा उसके सामने रखेंगे | इसमें उनका तो कोई निजी फायदा भी नहीं था | अगर मै हां बोलू ,तो उनको आत्मसंतुस्टी होगी,और यही वो शायद मुझसे चाहते है | बहुत मायना रखती थी उनकी ये इच्छा सोहन के लिए| थोड़ी देर सोचने के बाद बोला ''सर पूरी कोशिश करूँगा आपकी इच्छा पूरी करने की |'' प्रिंसिपल साहब आश्वासन पाकर खुश हो गये |ढेरो आशीर्वाद दिया | तुम्हारी शिक्षा का लाभ सब को मिले नहीं तो सब बेकार हो जायेगा | कोशिश यही करना प्रतिभा संपन्न बच्चो की हर तरह से मदद करना | मैंने देखा है कि तुम्हारी जाती-बिरादरी के लड़के-लडकिया बहुत पिछड़े हुए है | सोहन ने हां कहा |
                               अगले तीन सालो मे ग्रेजुएसन हो गयी | ऍम.बी.ए. के लिए सोहन ने आई.आई.ऍम बंगलौर मे फॉर्म भरा हुआ था, चयन तो होना ही था,पढने मे तेज जो था | सोहन ने बैगलोर जाकर वहां की युनिवर्सिटी के बारे मे अपने सर,प्रिंसिपल साहब को सब बताया और उनका आशीर्वाद ले कर अपनी पढाई मे व्यस्त हो गया |दिन,महीने, साल बीतते गये;अब प्रिंसिपल साहब को बुढ़ापा-जनित रोगों ने घेर लिया था वो रिटायर हो कर अपने गाँव चले गये थे | उनका बेटा प्रशांत उनकी अच्छी तरह से सेवा-चाकरी कर रहा था | पर थोडा ठीक होते ही वो समाज-सेवा को निकल जाते थे |
                                   कुछ ही समय बाद सोहन सबका चहेता बन गया क्योंकि हर सेमेस्टर मे अव्वल आता था | यूनिवर्सिटी मे ही पढ़ाने का ऑफर मिला सोहन को और उसी वक्त फोरेंन की टॉप कंपनी से ऑफ़र आया | सोहन अच्छा पैकेज और विदेश मे रहने के लालच के लिए उस कंपनी का ऑफ़र स्वीकार कर लिया,और प्रिंसिपल साहब को पत्र द्वारा सूचना भेज दी | पत्र पाकर खुश हुए प्रिंसिपल साहब की ख़ुशी पत्र मे लिखा ये पढ़ कर गायब हो गयी कि ''सर मै विदेश जॉब के लिए जा रहा हूँ | ''ओह नो '' इतना बड़ा धोखा मेरे साथ किया सोहन ने,कोई बात नहीं ! पर मैंने तुमसे ये तो नहीं चाहा था | अब आगे कुछ नहीं कहूँगा और वो उदास हो गये थे |
                                उन्होंने सोहन को एक पत्र लिखा ''तुम मुझे धोखा कैसे दे सकते हो ? तुमने मुझसे मेरी इच्छा पूरी करने का वादा किया था | पर कोई बात नहीं अब से तुम् अपने फैसले खुद ले सकते हो | मै अब कुछ नहीं कहूँगा |'' पत्र पढ़ कर सोहन को जैसे एक झटका सा लगा,प्रिंसिपल का चेहरा आँखों के सामने घुमने लगा | और वो सब याद आया जो उसे सर ने कहा था | मन ही मन मे कुछ तय करते हुए सब से पहले उस विदेशी कंपनी को अपने नहीं आने की सूचना भेजी और प्रिंसिपल साहब को लिखा ''सर मुझे माफ़ करना मै लुभावने पेकेज के लालच मे आ गया था | अब अपने घर आ रहा हूँ, अपने पिताजी की और आपकी इच्छा जो पूरी करनी है | जैसे  ही सोहन का पत्र प्रिंसिपल साहब के घर पहुंचा उनके बेटे ने उनको पढ़ कर सुनाया | उन्होंने पत्र को अपने हाथ मे लिया और काँपते हाथो से उस पर लिखा ''शाबाश बेटे मुझे तुमसे यही तो आशा थी |'' और ढेरो आशीर्वाद दिया |
                         अंत मे प्रिसिपल साहब ने सोहन के आ जाने के बाद उसे बहुत कुछ समझा कर , उससे जी भर कर बाते कर लेने के बाद अंतिम साँस ली | सोहन रो पडा | सामाजिक सरोकार के कारण सोहन दस दिन तक प्रिंसिपल साहब के बेटे के साथ रहा और फिर अपने घर अपने गुरु प्रिंसिपल साहब से किये गये वादे को  पूरा करने आ गया था | साथ मे उनका लिखा वो पत्र भी ले कर आया जो सोहन के लिए प्रिंसिपल साहब की धरोहर के रुप मे था और हमेशा उसके पास रहेगा | उनकी धरोहर को संभालना अब सोहन के लिए उसके जीने का उद्देश्य बन गया था |
                                 शांति पुरोहित 


शनिवार, 1 जून 2013

तेजाबी हमले में घायल प्रीति की मौत-www.jagran.com

Acid attack victim Preety Rathi dies at Bombay Hospital
तेजाबी हमले में घायल प्रीति की मौत
from-www.jagran.com
मुबंई [जासं]। पिछले माह दो मई को दिल्ली से मुंबई पहुंचते ही तेजाब डालकर घायल की गई 25 वर्षीया नर्स प्रीति राठी का निधन हो गया। प्रीति पर हमला करने वाला व्यक्ति अभी पकड़ा नहीं जा सका है।
दिल्ली की रहने वाली प्रीति पिछले माह अपने पिता एवं मौसा-मौसी के साथ मुंबई के मिलिट्री अस्पताल में नर्स की नौकरी करने आई थी। गरीब रथ ट्रेन से मुंबई के बांद्रा टर्मिनस स्टेशन पर उतरते ही एक नकाबपोश युवक उसके चेहरे पर तेजाब फेंक कर फरार हो गया था। उसके बाद से ही प्रीति का मुंबई में इलाज चल रहा था। पहले उसे भायखला स्थित मसीना अस्पताल में भर्ती किया गया था। फिर उसका यहां के एक निजी अस्पताल में इलाज शुरू हुआ था। हमले के ठीक एक माह बाद आज अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई। उसके पिता अमर सिंह राठी के अनुसार शाम करीब चार बजे डॉक्टरों ने उन्हें प्रीति के निधन की सूचना दी।
प्रीति पर हमले के बाद से ही रेलवे पुलिस मुंबई से दिल्ली तक उसके हमलावरों की तलाश कर रही है । लेकिन उसे अभी तक सफलता नहीं मिली है। पुलिस ने यह आरोप भी लगाया था कि प्रीति का परिवार जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। कुछ दिनों पहले इस कांड में दो लोगों हिरासत में लिया गया था। लेकिन उनसे हमले के सिलसिले में कोई विशेष जानकारी नहीं मिल सकी थी।
       MY MESSAGE 
चुप नहीं रहना है अब पुरजोर आज चीख लो ,
साथ अपने लड़कियों तेजाब रखना सीख लो !

 मूक दर्शक बन के ये सारा समाज देखता ,
साथ देंगें ये नपुंसक ? मत दया की भीख लो !

 है नहीं कोई व्यवस्था  छोड़ दो बैसाखियाँ ,
अपनी सुरक्षा करने को मुट्ठियाँ अब भींच लो !

कमजोर हैं नाज़ुक हैं हम इन भ्रमों में मत रहो ,
काली तुम चंडी हो तुम पापी का रक्त चूस लो !

तुम डराओगे हमें ! हम भी डरा सकते तुम्हे ,
आर पार की ये रेखा हौसलों से खींच लो !

शिखा कौशिक 'नूतन'