सुश्री शांति पुरोहित की कहानी " कृष्ण सुदामा की महान दोस्ती "
सुदामा अपनी पत्नी सुशीला के कहने से अपने परम मित्र 'श्री कृष्ण, से मिलने द्वारिका नगरी गये,तो उनके मित्र भगवान श्री कृष्ण ने उनके आतिथ्य सत्कार के साथ -साथ उनके आत्म -सम्मान और उनके सवाभिमान का भी पूरा ध्यान रखा | जो भगवान श्री कृष्ण के अनुसार'' एक भक्त की भक्ति का सम्मान करना भगवान का परम कार्य है |,तो जैसे ही सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण के द्वार पर पहुंचे,कृष्ण ने सुदामा को 'हे मित्र सुदामा, कहकर गले से लगा लिया था | मित्र की ये दशा देख कर' करुणासागर ,ने अपने आंसुओ से ही उनके पैर धो दिए थे |सुदामा के फटे वस्त्र धोने के लिये दे दिए,और उन्हें अपने नए वस्त्र पहनाये | फिर सोने के थाल मे भोजन लाकर के कहा 'मित्र सुदामा अब आप भोजन करे ,तब सुदामा ने कहा 'आप भी मेरे साथ खाना खाहिए , नहीं सुदामा मै तुम्हारे साथ नहीं खाऊंगा , ऐसा इसलिए नहीं कहा कि भागवान कृष्ण अपने गरीब मित्र सुदामा के साथ नहीं खाना चाहते थे, वो तो उनका झूठा खाना चाहते थे | सुदामा गदगद हो गये जब कृष्ण ने कहा '' मित्र सुदामा तुम खाओ हम तुम्हारा झूठा बचा हुआ खाना खायेंगे | ये कोई अथिथि सत्कार नहीं था,ये सुदामा ब्राम्हण की तपस्या का सम्मान था | सुदामा रात दिन भजन करता था ये उनकी उसी भक्ति का सम्मान था| कितना सम्मान सुदामा का किया श्री कृष्ण ने | इतना ही नहीं जब सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलकर वापस अपने घर जाने लगे तो सुदामा के सवाभिमान की रक्षा के लिये जो नए वस्त्र दिए थे वो भी उतरवा लिये | अगर सुदामा नए वस्त्र पहन कर चले जाते तो लोग कहते कि अपने भगवान् मित्र के पास जाकर अपनी गरीबी को बता कर अपनी तपस्या के बदले मे एश्वर्य मांग कर लाये है | सुदामा की तपस्या -सुदामा का सवाभिमान कृष्ण को बहुत प्यारा था |सुदामा गरीब नहीं थे | उनके पास भक्ति थी | बड़ी भारी भक्ति की शक्ति थी | श्री कृष्ण नाम ही उनका आश्रय था | अपने मित्र श्री कृष्ण के पास जाकर भी उनसे कुछ नहीं माँगा और ना ही श्री कृष्ण की सुदामा को उनकी भक्ति के बदले मे जाते हुए सुदामा को कुछ देने का सोचा | हाँ उनके घर पहुँचने से पहले सब कुछ श्री कृष्ण ने पहुँचा दिया था |
सुदामा अपनी पत्नी सुशीला के कहने से अपने परम मित्र 'श्री कृष्ण, से मिलने द्वारिका नगरी गये,तो उनके मित्र भगवान श्री कृष्ण ने उनके आतिथ्य सत्कार के साथ -साथ उनके आत्म -सम्मान और उनके सवाभिमान का भी पूरा ध्यान रखा | जो भगवान श्री कृष्ण के अनुसार'' एक भक्त की भक्ति का सम्मान करना भगवान का परम कार्य है |,तो जैसे ही सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण के द्वार पर पहुंचे,कृष्ण ने सुदामा को 'हे मित्र सुदामा, कहकर गले से लगा लिया था | मित्र की ये दशा देख कर' करुणासागर ,ने अपने आंसुओ से ही उनके पैर धो दिए थे |सुदामा के फटे वस्त्र धोने के लिये दे दिए,और उन्हें अपने नए वस्त्र पहनाये | फिर सोने के थाल मे भोजन लाकर के कहा 'मित्र सुदामा अब आप भोजन करे ,तब सुदामा ने कहा 'आप भी मेरे साथ खाना खाहिए , नहीं सुदामा मै तुम्हारे साथ नहीं खाऊंगा , ऐसा इसलिए नहीं कहा कि भागवान कृष्ण अपने गरीब मित्र सुदामा के साथ नहीं खाना चाहते थे, वो तो उनका झूठा खाना चाहते थे | सुदामा गदगद हो गये जब कृष्ण ने कहा '' मित्र सुदामा तुम खाओ हम तुम्हारा झूठा बचा हुआ खाना खायेंगे | ये कोई अथिथि सत्कार नहीं था,ये सुदामा ब्राम्हण की तपस्या का सम्मान था | सुदामा रात दिन भजन करता था ये उनकी उसी भक्ति का सम्मान था| कितना सम्मान सुदामा का किया श्री कृष्ण ने | इतना ही नहीं जब सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलकर वापस अपने घर जाने लगे तो सुदामा के सवाभिमान की रक्षा के लिये जो नए वस्त्र दिए थे वो भी उतरवा लिये | अगर सुदामा नए वस्त्र पहन कर चले जाते तो लोग कहते कि अपने भगवान् मित्र के पास जाकर अपनी गरीबी को बता कर अपनी तपस्या के बदले मे एश्वर्य मांग कर लाये है | सुदामा की तपस्या -सुदामा का सवाभिमान कृष्ण को बहुत प्यारा था |सुदामा गरीब नहीं थे | उनके पास भक्ति थी | बड़ी भारी भक्ति की शक्ति थी | श्री कृष्ण नाम ही उनका आश्रय था | अपने मित्र श्री कृष्ण के पास जाकर भी उनसे कुछ नहीं माँगा और ना ही श्री कृष्ण की सुदामा को उनकी भक्ति के बदले मे जाते हुए सुदामा को कुछ देने का सोचा | हाँ उनके घर पहुँचने से पहले सब कुछ श्री कृष्ण ने पहुँचा दिया था |
एसी महान थी श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती |
| जय श्री कृष्ण |
4 टिप्पणियां:
bahut achchi kahani.. kitni bar suni hui par fir bhi padhna achcha lagta hai..
महान गाथा..
अनीता जी / नीता जी आभार
बहुत ही अच्छी गाथा.
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