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बुधवार, 30 अप्रैल 2014

चुनावी मानसून के बादल ज्यों ही लगे गरजने!

चुनावी मानसून के बादल ज्यों ही लगे गरजने
सोये थे कूपों में जो पंचवर्षीय मेंढक
निकल बाहर देखो वो लगे फुदकने!

कोई फुदक कर इधर गया
कोई फुदक कर उधर गया
सत्ता के लालच में अंधे
खुद ना जाने इमां इनका किधर  गया
कितनी  बार बदलेंगे ये पार्टी
कुर्सी का मोह इनसे क्या क्या करवाएगा
बेदिलो  का हृदय हाय!
कितनी दफ़े परिवर्तन करवाएगा
इनकी इस रंग बदलने की अदा पर
अब तो गिरगिट भी लगे  शर्माने !

खुद की चलनी में है बहत्तर होल
फिर  भी लेकर अपनी ढपली अपना ढोल
खोलते एक दूजे की पोल
उल्लू अपना सीधा करने को
दिन-रात टर्र-टर्र कर लगे टर्राने!

ज्यो-ज्यो चरण गुजर रहे
ये भी अपनी अपनी हदों से गुजर रहे
लोकत्रंत की मर्यादा को करते तार-तार
कर रहे एक-दूजे पर विष की बौछार
करता अचरज विषधर भी
बैठा दुबक कर  कुंडली मार
इस कदर मुख से ज़हर ये लगे उगलने!

चुनावी समर का बिगुल जब बजा था
विकास है हमारा मुद्दा ये हर नेता ने कहा था
पर  जैसे जैसे देखो वक्त लगा गुजरने
एजेंडा इनका लगा बदलने
छोड़ विकास के मुद्दे
धर्म-जात-पात के नाम पर 
देखो अब लगे ये छलने!

जब तक चुनाव का दौर जारी है
हर प्रत्याशी की दावेदारी है
अपनी-अपनी जीत के खातिर
अपना रहे सब साम-दाम
कही बँट रही साडियां
कही छलक रहे जाम
नोटों के बंडल भी खुलकर लगे बरसने!

चुनाव-चुनाव नहीं बन गया एक तमाशा है
पशोपेश में हर मतदाता है
जिसको दे वो अपना वोट
अंधो में वो कनवा राजा है कौन
प्रश्न ये दिन-रात उसको लगा है छलने!
 
बस अब कुछ पल ही ये दौर है
जब फिजाओं में सुनाई दे रहा इनका शोर है
ज्यो ही परिणाम निकल आयेंगे
चुनावी मानसून के बादल छंट जायेंगे
जीते हारे सारे मेंढक एक-एक कर
फिर से कूपों में गुम हो जायेंगे
और व्याकुल ये नैन हमारे
इनके दर्शन को फिर से लगेंगे तरसने!

शिल्पा भारतीय "अभिव्यक्ति"
(१२/०४/१४)

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

बेटियाँ

सदियों से बेटों की चाहत में कोख में ही मिटती रही है बेटियाँ
धन-दौलत के लालच में दहेज की वेदियो पर जलती रही है बेटियाँ
हवस की आग में अंधे गुनाह करते है दरिंदे
और जमाने भर  दंड सहती रही है  बेटियाँ
रखती है वो दो कुलों का मान भी सम्मान भी 

और मान-सम्मान के नाम पर क़त्ल भी होती रही है बेटियाँ
 

लिख तो दी तूने  कहानी उसकी अपनी जुबानी 
पर भुला दिया इस कहानी में एक किस्सा उसका अपना भी है 
खुदा ने बख्शी है जो ये ज़मीं ये आसमां उसमे एक हिस्सा उसका भी
है ख्वाब कुछ आँखों में उसके भी दिले नादाँ में कुछ अरमां भी है
पर तोड़ दिए तूने सपने उसके अरमां सब उसके क़त्ल कर डाले
की उड़ने की जो चाहत उसने पंख तूने उसके कतर डाले
 मिटा दिया उसकी ही कहानी से किस्सा उसका
छीन लिया उसके हिस्से की वो ज़मीं वो आसमां उसका
और डाल दी पैरों में उसके बंदिशों की कितनी ही बेडियाँ
जिन बेडियो में जकड़ी मुद्दतों से घुटती है बेटियाँ

है सदियों से अनुत्तरित वो प्रश्न
जो आज भी चुभता है बनकर एक दंश
 है गर बेटो से चलता तुम्हारा वंश
तो क्या बेटियाँ है किसी गैर का अंश
जन्म जब माँ एक बच्चे को देती है
वो बेटा हो या बेटी पीड़ा उसको उतनी ही होती है
सदियाँ बदल गयी अब तुम भी बदलो अपनी सोच
नहीं बेटे-बेटियों में कोई अन्तर
ना ही बेटियाँ है कोई बोझ
 दो बेटी को भी उसका अधिकार
दो उसको भी अच्छी शिक्षा और संस्कार
 बेटो से कम नहीं होती है बेटियाँ
गर बेटा है कुल का दीपक
तो कुल की ज्योति होती है बेटियाँ
शिल्पा भारतीय "अभिव्यक्ति"
(२३/०४/२०१४)

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

दर्द से दिल मेरा फटने लगा



मेरे ख्वाबों का कद बढ़ने लगा मुझको सजा दो ,
मुझे घर जेल सा लगने लगा मुझको सजा दो !
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मिली तालीम मैंने भी पकड़ ली हाथ में कलम ,
मेरा हर दर्द बयां होने लगा मुझको सजा दो !
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लांघकर चौखटे रखा जो कदम मैंने हिम्मत से ,
खौफ दुनिया का है घटने लगा मुझको सजा दो !
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उठा पर्दा जो आँखों से दिखा अपना वज़ूद तब ,
सोया अरमान हर जगने लगा मुझको सजा दो !
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मुझे अब चीखना पुरजोर  'नूतन' इस ज़माने में ,
दर्द से दिल मेरा फटने लगा मुझको सजा दो !

शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

जसोदा बेन के तो अच्छे दिन आ ही गए !

मोदी ने कल भर था नामांकन
एक गाना आजकल बीजेपी की तरफ से खूब प्रचारित किया जा रहा है ''हम मोदी जी को लाने वाले हैं ..अच्छे दिन आने वालें हैं '' पर जसोदा बेन के लिए शायद जीवन का सबसे अच्छा दिन कल ''९अप्रैल २०१४'' था जब इन मोदी जी ने अपने बड़ोदरा से चुनाव नामांकन पत्र में पत्नी के कॉलम को खाली न छोड़कर 'जसोदा बेन ' का नाम भरा .
[गुजरात की वडोदरा लोकसभा सीट से नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अपना नामांकन दाखिल किया। मोदी अपने राजनीतिक करियर में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। ]
[मोदी ने नामांकन के साथ पेश किए गए हलफनामे में पहली बार अपनी पत्नी का जिक्र किया। पत्नी के कॉलम के आगे मोदी ने जसोदाबेन का नाम लिखा है। ]
चार बार विधायक का चुनाव लड़ते समय उन्होंने ये कॉलम खाली छोड़ा था .नैतिकता का झंडा उठाने वाले श्री मोदी में यदि थोड़ी सी भी नैतिकता होती तो विपक्षियों को ये मुद्दा उठाने की जरूरत ही न पड़ती .विश्व के इतिहास में शायद ये पहली बार हुआ होगा कि एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को पत्नी का दर्ज़ा देने में इतना समय लगाया हो .इतने वर्षों की मानसिक प्रताड़ना को जसोदा बेन ने कैसे सहा होगा ये केवल उनका दिल ही जान सकता है .एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं उन सभी लोगों का धन्यवाद अर्पित करती हूँ जिन्होंने इस मुद्दे को उठाया और इतने बड़े स्तर पर उठाया की श्री मोदी जैसे छली पति को आखिरकार जसोदा बेन को उसका हक़ देना ही पड़ा .

शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 7 अप्रैल 2014

मज़हब



मज़हब –एक ऐसा शब्द जो किसी आम इंसान की ज़िन्दगी बदलने के लिए काफी है ,क्यूंकि ये हमारा मज़हब है जो किसी को मंदिर तो किसी को मस्जिद भेजता है, हमारा मज़हब हमें सिखाता  है की हम बचपन से गीता पढेंगे ,कुरान पढेंगे या  फिर बाइबिल ??
मज़हब के नाम पे लोग दंगे फसाद करते हैं एक दूसरे को मारने काटने के लिए तैयार हो जाते हैं ,कोई तलवार निकाल लेता है तो कोई चाक़ू ,पर इतनी लडाई आखिर क्यूँ ...लोग कहते हैं खुदा एक है फिर भी राम बड़े या अल्लाह ये फैसला क्यूँ लिया जाता है..... हमेशा इंसान की एक ही फितरत होती है उसे रहने  के लिए एक घर ,खाने के लिए रोटी दाल और पहनने के लिए कपड़े  ही चाहिए होते हैं फिर चाहे वो हिन्दू हो ,सिख हो, मुसलमान हो या फिर इसाई
सबको खुदा ने ही बनाया है कोई धरती  पर हमेशा के लिए नहीं आया है, इतनी नफरत क्यूँ आखिर??
 भारत तो आज़ाद है पर यहाँ की सोच तो आज भी वहीँ हैं जहाँ अंग्रेजों ने इस सोच को पैदा करके इसका विकास किया मतलब नीव उन्होंने रखी बिल्डिंग बनाने का ठेका हमने लिया है वाह  भाई वाह !!!! काबिले तारीफ मेरे भारत के लोगों....  सोच को थोडा सा ऊपर ले जाइये....becz India  is said to be  a Country where ….!!!Every one is equal...


शिखा वर्मा "परी"

! रामनवमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !

! रामनवमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
किलकारी मारें बजाकर खन खन कंगना ,
नन्हें से राम लल्ला खेलें  दशरथ के अंगना !
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मैय्या कौशल्या उर आनंद लहरे उमड़े ,
पैय्या चले तो पकड़ने को वे दौड़े ,
लेती बलैय्या आँचल में हैं छिपती ललना !
नन्हें से राम लल्ला खेलें  दशरथ के अंगना !
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चारों भैय्या मिलकर माखन चुराते हैं ,
बड़े हैं भाई राम सबको खिलाते हैं ,
माटी के बर्तन फोड़ें आये पकड़ में ना !
नन्हें से राम लल्ला खेलें  दशरथ के अंगना !
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राम के मुख की शोभा बरनि न जाये है ,
सुन्दरता देख उन्हें खुद पर लजाये है ,
शोभा की खान राम किसी से क्या तुलना !
नन्हें से राम लल्ला खेलें  दशरथ के अंगना !
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शिखा कौशिक 'नूतन '