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शनिवार, 28 दिसंबर 2013

नई शुरुआत

अरे विमला ! ये क्या लगा रखा है ? पुरे दिन बस लिखती रहती हो,जैसे कोई बहुत बड़ी लेखिका बन जाने वाली हो.....सास ने जोर से चिल्लाकर कहा|
           विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो  कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
          उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
            विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
             विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
            सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
             शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
 शांति पुरोहित
           
              अरे विमला ! ये क्या लगा रखा है ? पुरे दिन बस लिखती रहती हो,जैसे कोई बहुत बड़ी लेखिका बन जाने वाली हो.....सास ने जोर से चिल्लाकर कहा|
           विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो  कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
          उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
            विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
             विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
            सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
             शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
 शांति पुरोहित
           
              

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

कुंवारी लड़कियां नहीं रख पाएंगीं मोबाइल-साभार 'अमर उजाला' से

हर बार लड़कियों पर ही प्रतिबन्ध क्यों लगाये जा रहे हैं ?लड़कियों की तुलना में अगर लड़कों पर आधे भी प्रतिबन्ध लगाये जाते तो आज तस्वीर कुछ और होती .पढ़िए एक और खबर जो प्रदर्शित करती है कि हम अपनी सोच बदलना ही नहीं चाहते -
कुंवारी लड़कियां नहीं रख पाएंगीं मोबाइल
टीम डिजिटल बुधवार, 25 दिसंबर 2013
अमर उजाला, दिल्लीUpdated @ 11:49 AM IST
बिहार की एक पंचायत ने कुंवारी लड़कियों के मोबाइल रखने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है और साथ ही पकड़े जाने पर आर्थिक दंड का भी प्रावधान भी बना दिया है।मामला पश्चिमी चंपारण के नरकटियागंज प्रखंड की सोमगढ़ पंचायत का है जहां सिरिसिया गांव में मंगलवार को एक महापंचायत लगाई गई। महापंचायत में लड़कियों के मोबाइल रखने पर पाबंदी लगाने का फैसला लिया गया। महापंचायत के फरमान के अनुसार जिन लड़कियों की शादी नहीं हुई है या जो नाबालिग हैं, उन्हें मोबाइल रखने पर पाबंदी लगा दी जाए। उनका तर्क था कि मोबाइल से छेड़खानी की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। उनके इस प्रस्ताव पर वहां उपस्थित ग्रामीणों ने मुहर लगा दी।इसके साथ ही यह फैसला भी हुआ कि वह परिवार, जिसके घर की बच्ची मोबाइल रखेगी, उसे दंडित किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी पिछले तीन महीने में राज्य भर की करीब दर्जन भर ग्राम पंचायतें लड़कियों और महिलाओं के मोबाइल फोन इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगा चुकी हैं और उन्हें भड़काऊ कपड़े नहीं पहनने के लिए कहा है।इससे पहले सीवान जिले के पचरुखी थाना क्षेत्र में तीन लड़कियों के कथित अपहरण के बाद ग्रामीणों ने लड़कियों को जींस, टी-शर्ट पहनने और मोबाइल फोन रखने पर पाबंदी लगा दी थी। फरमान नहीं मानने पर लड़कियों के अभिभावक से बतौर जुर्माना 10 हजार रुपये वसूलने का फैसला भी लिया गया।
     शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !

Muslim_bride : Beautiful asian girl with black veil on face  Stock Photo
ज़हरीली सोच कितना परेशान कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
....................................................
जो सबसे पहले जागती सोती है सबके बाद ,
दिन-रात ख़िदमतों में तमाम कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
................................................................
बच्चें हो या हो शौहर सबको ज़रूरी काम ,
वो गैर-ज़रूरी बन बेगार कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
................................................................
बर्तनों को मांजना कालिख उतारना ,
मल मल के राख खुद को बीमार कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
........................................................
क्या क्या किया शौहर ने सब कुछ गिना रहा ,
'नूतन' खड़ी चुप बेग़म इक़रार कर रही है !
बेग़म तो घर के भीतर आराम कर रही है !
शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

मेरी शिकस्त को मौत मान बैठा है !


दिया जीने का नया मकसद, है अहसान किया ,
मेरे मक्कार मुख़ालिफ़ ने है अहसान किया !
....................................................
मेरे आंसू पे ज़रा हंसकर मुख़ालिफ़ ने मेरे ,
गिर के उठने का है तोहफा मुझे ईनाम दिया !
........................................................
मेरी शिकस्त को मौत मान बैठा है ,
मुख़ालिफ़ है रहमदिल मैय्यत का इंतज़ाम किया !
..........................................................
हादसे झेल जाऊं मुख़ालिफ़ ने दी हिम्मत मुझको ,
मुझे उकसाकर ज़र्रे से आसमान किया !
...........................................................
मैं तो मर जाता अगर मुख़ालिफ़ न होता मेरा ,
मैंने हर जीत पर 'नूतन' उसे सलाम किया !

शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

आकर्षक कवयित्री -लघु कथा

''अरे वाह ! माँ कितनी सुन्दर लग रही हो ......पर लिपिस्टिक थोडा डार्क लग रही है ....और बालों का आपका ये स्टाइल तो बिजली ही गिरा रहा है ...पर ये बैंगिल तो मेरी है ...आपने क्यूँ ली माँ ! आप किसी पेज थ्री पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रही हैं क्या ?'' किशोरी रिया की बात पर ड्रेसिंग टेबिल के आईने में अपने को ऊपर से नीचे तक निहारते हुए उसकी माँ चहकते हुए बोली - '' अरे नहीं ...पार्टी में नहीं आज मुझे कवि-सम्मलेन में कविता-पाठ करने जाना है .लोग कविता थोड़े ही सुनने आते हैं ???वरना निर्मला जी की तुलना में मेरी कविताओं की ज्यादा वाह-वाहवाही कोई करता क्या ? निर्मला जी ठहरी गाँधीवादी महिला .साधारण रहन-सहन !अब कौन समझाए उन्हें कवयित्री का आकर्षक दिखना भी कितना जरूरी होता है ! '' ये कहकर रिया की माँ ने अपने पर परफ्यूम का स्प्रे किया और अपने को महकाने के साथ साथ सारे वातावरण को बहका दिया .
शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

चला काटने किसको बन्दे ?

As communal violence continued for the third day in Muzaffarnagar and its surrounding areas, five more deaths were reported on September 9, taking the toll to 31, while at least 50 were reported to be injured. While police said violence had shifted away from villages that were affected over the last 48 hours, senior officials said mobs were targeting those trying to flee their villages. (IE Photo: Ravi Kanojia)
चला काटने किसको बन्दे चल पहले तू मुझको काट ,
ना हिन्दू को ना मुस्लिम को सबसे पहले मुझको काट !
..................................................................
जिस दिल में ज़ज्बात भरे हैं जिस दिल में है रहम भरा ,
नफरत की तलवारे लेकर काट सके तो उसको काट !
............................................................
इसकी माता ,तेरी भाभी ,उसकी बेटी ,बहन मेरी ,
चले लूटने अस्मत इनकी पहले उन हाथों को काट !
.............................................................................
आपस में ही क़त्ल हो रहे गैरों के भड़काने से ,
ज़हर उगलती रहती है जो ऐसी हरेक जुबां को काट !
.......................................................................
मैं मंदिर में ,मैं मस्ज़िद में ,मैं गिरिजा -गरुद्वारे में ,
सब मुझमें हैं ,मैं सबमे हूँ ,'नूतन' मज़हब में ना बाँट !
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

क्या वारिस कभी बन पाएंगी मासूम बेटियां ?

मासूम बेटियां

कब तक कत्ल की जाएँगी मासूम बेटियां ?
कब हक़ से जन्म पाएंगी मासूम बेटियां ?
..............................................
इनको चटककर खिलने का हक़ कैसे मिलेगा ?
कब तक मसल दी जाएँगी मासूम बेटियां ?
.............................................................
कब गूंजेंगी किलकारियां बेख़ौफ़ हो इनकी ?
क्या वारिस कभी बन पाएंगी मासूम बेटियां ?
......................................................
माता के रूप में तो गायी जाती है महिमा ,
पूजी मगर कब जाएँगी मासूम बेटियां ?
......................................................
ये चाँद की हैं चांदनी 'नूतन' सीप का मोती ,
सौगात कब कहलाएंगी मासूम बेटियां ?

शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

अपने शहर में हम मगर गुमनाम रह गए !


शहर शहर मशहूर हुए ;नहीं गुमनाम रह गए ,
अपने शहर में हम मगर गुमनाम रह गए !
....................................................
गैरों ने दी इज्जत बहुत सिर पर बिठा लिया ,
अपनों की नज़र में मगर बदनाम रह गए !
.........................................................................
हमने बचाया ऐब से अपना सदा दामन ,
हमको मगर ज़ालिम कई बेईमान कह गए !
........................................................
हादसे सब झेलकर दिल बन गया फौलाद ,
आँखों के रास्ते मगर अरमान बह गए !
.....................................................................
हम दर्द अपना कह न पाये अपनी जुबां से ,
'नूतन' यूँ ही चुप रह के सब इल्ज़ाम सह गए !

शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 9 नवंबर 2013

माँ के लिए ..........

                                                                                                                                                                                                 
Cover Photo
                                                                                                                                                                                                                                       शोर्य को स्कूल और पति संजय के ऑफिस जाने के बाद संगीता, लोन मे बैठ कर चाय के साथ अख़बार पढ़ती थी,ये उसकी रोज की आदत थी | अन्दर का पेज जैसे ही खोला एक समाचार पर नजर पड़ी ,पूरी खबर पढने लगी जो इस प्रकार थी| सेठ दीनानाथ की दूकान का वफादार मुनीम, बीस हजार रुपया ले कर फरार हो गया |
            ये कैसे हो सकता है?, इतना ईमानदार था ,मुनीम रामसिंह ,फिर उसने ऐसा क्यों किया ?, संगीता हैरान रह गयी ये खबर पढकर ! दीनानाथ जी संगीता के पडौसी होने के नाते उनका एक दुसरे के घर आना -जाना होता रहता था | फिर उनकी पत्नी संगीता की सहेली भी थी |
            उस दिन दीनानाथ जी के घर उनके पौत्र चिन्मय की जन्म दिन की पार्टी का अवसर था | रिश्तेदारों के आलावा, शहर की जानी -मानी हस्तिया पार्टी मे शिरकत करने वाली थी | सेठ दिनानाथ जी शहर के रसूखदर आदमी थे | उनका तैयार वस्त्रो का बहुत बड़ा शो रूम था | परिवार मे दो बेटे और एक प्यारी सी बेटी दिव्या थी |
                  बेटी ने M.B.B.S.किया और अपने साथ ही पढने वाले डॉ. विक्रम से उसकी शादी कर दी | और वो अपने ससुराल चली गयी | छोटा बेटा कमलेश पढने के लिए विदेश गया, वहीं पर काम करने लगा, वहीँ की गौरी लड़की के साथ ब्याह कर लिया | दीनानाथ जी और उनकी पत्नी ने बेटे की जिद के आगे समझोता कर लिया | बड़ा बेटा विमलेश, ही परिवार सहित इनके पास रहता था | यहाँ का सारा काम -धंधा ,ये दोनों बाप -बेटे मिलकर सम्भालते थे |
               आज तो सुबह से ही हवेली के सभी नौकर हवेली को सजाने मे लगे हुए थे | दीनानाथ जी के पर -दादा के ज़माने की बहुत बड़ी हवेली थी | रख -रखाव के लिए नौकरों की फौज लगी रहती है |
                    शाम के सुहाने वक्त मे पार्टी शुरू हो चुकीं है | दीनानाथ जी आगन्तुको के स्वागत के लिए दरवाजे पर खड़े,उनका अभिवादन स्वीकार कर रहे है | पास ही खड़े उनके बेटे विमलेश की गोद मे चिन्मय को तोहफा भी दे रहे थे | पार्टी मे खाने -पीने के साथ नाच -गाने का भी प्रोग्रेम था| पार्टी अरेंज करने मे पैसा पानी की तरह लगाया था | सभी लोग पार्टी का आनंद ले रहे थे, वहीँ सेठ का एक नौकर रामसिंह, ये सब देख कर दुखी हो रहा था | उसका सोचना था कि,दिखावे के लिए ये बड़े लोग इतना पैसा खर्च कर सकते है,और एक जरूरत मंद इंसान को पैसा उधार भी नहीं दे सकते है?,
               पिछले दस दिनों से रामसिंह सेठ से अपनी माँ के इलाज़ के लिए बीस हजार रुपया उधार मांग रहा था ,पर सेठ के कान मे जैसे ये बात गयी ही नहीं हो | पैसा पास मे नहीं है, तो क्या माँ को बिना इलाज मर जाने तो नहीं दे सकता ? एक के बाद एक विचार रामसिंह के दिमाग मे आ- जा रहे है | आखिर उसने मन ही मन कुछ निश्चय किया ,और मौका पाकर सेठ की दुकान की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए | दुकान के गल्ले मे से रुपया निकाला और घर चला गया |
              दुसरे ही दिन अपनी माँ को इलाज के लिए शहर ले गया | डॉक्टर के प्रयास और रामसिंह की सेवा से माँ जल्दी ही अच्छी होने लगी | एक दिन माँ ने पूछा 'मेरे इलाज के लिए इतने पैसे कहाँ से लाया बेटा ?' माँ सेठ से पेशगी लाया हूँ | पर सच्चाई तो कुछ और ही थी , जिसे सिर्फ वो ही जानता था |
              दुसरे दिन सेठ ने दूकान के गल्ले मे देखा तो पैसे कम मिले |,और आज रामसिंह भी अभी तक नहीं आया | सेठ को समझते देर नहीं लगी कि रामसिंह ही रुपया लेकर फरार हुआ है | सेठ ने पुलिस थाने मे रिपोर्ट लिखवानी चाही पर सेठानी ने रामसिंह की माली -हालत और परेशानी का सोच कर पुलिस थाने मे रिपोर्ट लिखवाने से मना किया |  सेठ ने इस घटना को फिलहाल भूल जाने मे ही अपना भला समझा | कहीं ना कहीं सेठ अपने को ही इस घटना का जिम्मेदार समझ रहा था | काश ! मुझे  रामसिंह की मदद कर देनी चाहिए थी |
              रामसिंह की मेहनत रंग लाई, माँ अब ठीक हो गयी तो रामसिंह अपने खेत को ओने -पोंने भाव मे बेच कर , बीस हजार रुपयों के साथ सेठ के सामने हाजिर हो गया | विनम्र  भाव से बोला ' मैं गुनाह गार हूँ मैंने आपका विस्वास तोडा है | जो सजा देंगे भुगतने को तैयार हूँ | माँ को बचाने के लिए मुझे ये सब करना पडा | मेरी नौकरी ,मेरी बदनामी से ज्यादा मुझे अपनी माँ की जान ज्यादा प्यारी थी | जिसे बचाने के लिए मुझे ये सब करने पर विवश होना पडा | और सेठ को पैसा लौटा कर माफ़ी मांगने लगा | सेठ को पहले तो गुस्सा आया पर खुद को भी जिम्मेदार मानते हुए आगे से फिर कभी ऐसा मत करना बोलकर उसे माफ़ कर दिया |साथ ही ये भी सन्तोष था कि इतने रुपयों मे से केवल बीस हजार रुपया ही ले कर भागा है | पर रामसिंह ने विश्वास तोडा ये सेठ के लिए सोचने वाली बात थी | और उसकी माँ के प्रति एसी भावना देख कर मन ही मन बहुत खुश हुआ | रामसिंह अपनी माँ के सामने किसी भी चीज को तुच्छ समझता है | तो मालिक के फायदे लिए भी कुछ भी कर सकता है | और उसे वापस काम पर रख लिया |
 शांति पुरोहित 

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

दीपोत्सव महापर्व की हार्दिक शुभकामनायें

दीपोत्सव


एक नहीं ले पांच पर्व , दीपोत्सव संग में लाया है ,
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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पांच पर्व का महापर्व ,जन-जन सर्वत्र मनाता है ,
कार्तिक मास की त्रयोदशी से ये आरम्भ हो जाता है ,
नीरस जीवन में रस भर दे इस उत्सव की ये माया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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त्रयोदशी का पर्व महा ;धनतेरस रूप में प्रचलित है ,
पूजे जाते धन्वन्तरी हैं ;आयुर्वेद के जनक जो है ,
स्वस्थ रहो -दीर्घायु हो वरदान इन्ही से पाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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चतुर्दशी पर नरकासुर के वध का उत्सव मनता है ,
दीप जलाये जाते हैं ; यम का दीपक भी जलता है ,
वनवास काट आते रघुवर इस पर्व ने याद दिलाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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आती है तिथि अमावस की इस पर होता लक्ष्मी -पूजन ,
तम पर प्रकाश की जीत का पर्व ,श्री राम आगमन हर्षित जन ,
चीर निशा -तम-जाल को ये प्रकाशित करने आता है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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अन्नकूट का पर्व महा आयोजित होता अगले दिन ,
इंद्र-कोप से रक्षा हित कृष्ण उठायें गोवर्धन ,
सामूहिक रूप से जन-जन ने अन्नकूट को खाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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इस महापर्व का अंतिम पर्व 'यम द्वितीया' कहलाता है,
बहन यमी के भ्रातृ प्रेम की सबको याद दिलाता है ,
हो दीर्घायु भाई मेरा बहनों ने तिलक लगाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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आओ जानें अब कारण भी दीवाली पर्व आयोजन के ,
आये थे राम वनवास काट तब दीप जले घर-आँगन में ,
घोर निशा को दीपों से आलोकित कर चमकाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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कहते हैं हुआ इसी दिन था सर्वज्ञात समुद्र मंथन ,
क्षीरोदधि से निकले थे रत्न ;माँ लक्ष्मी प्रकट हुई तत्क्षण ,
इसीलिए लक्ष्मी-पूजन का अटल विधान बनाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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सिक्खों में भी इस दिन जन-जन खुश होकर दीप जलाता है ,
औरंगजेब की कैद से मुक्त गुरु जी की याद दिलाता है ,
अत्याचारों के आगे कब वीरों ने भाल झुकाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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कहते हैं कृष्ण कन्हैय्या ने इस दिन ही वरा कन्याओं को ,
दुष्ट असुर के चंगुल से छुड्वाया था राजाओं को ,
अंत पाप का करें प्रभु ये विश्वास जगाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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महावीर,दयानंद ने इस दिन परम -धाम प्रस्थान किया ,
भक्तों ने दीप जला हर वर्ष नम्र ह्रदय से याद किया ,
सत्य-अहिंसा अपनाने का मार्ग हमें दिखलाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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इसी दिवस पर रचना की विक्रमादित्य ने संवत की ,
किया पराजित शकों को व् शक्ति हर ली थी हूर्णों की ,
भारत-वीरो ने भुजबल से माता का मान बढाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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महाराज बलि व् वामन की कथा लोक में कहें सुनें ,
पाताल लोक जब गया बलि देवों को राहत तभी मिले ,
तब हर्षित हो जलाये दीप ऐसा ही सुना-सुनाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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प्रहलाद पिता हिरण्यकश्यप ; ऋषियों को अकारण कष्ट दिए ,
पुत्र ने पूजा विष्णु को ,उस पर भी अत्याचार किये ,
नृसिंह ने मारा आकर जब चहुँ हर्ष तब छाया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
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दीपोत्सव संग जुडा ये सब हमको प्रतिपल सिखलाता है ,
नन्हे प्रज्वलित एक दीपक से अंधकार मिट जाता है ,
झूठ की सत्ता मिली धूल में सत्य आज मुस्काया है !
उत्साह असीम ,प्रफुल्ल ह्रदय ,उर में आनंद समाया है !
शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

सच को बेपर्दा होने दो !


अब डरो नहीं अंजाम से तुम
जो होना है वो होने दो ,
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
................................................
सच नहीं किसी की बेग़म है
जो रहे सात पर्दों में छिप ,
है नहीं किसी की लौंडी ये
जो हुक्म बजाये रहकर चुप ,
खामोश न रह अब खोल ले लब
सच्चाई इनको कहने दे !
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
..................................
घुट घुट कर अब सांसे न लो
खुलकर हुंकार भरो प्यारो ,
सिर कलम आज हो जाने दो
पर झुको नहीं हरगिज़ यारो ,
ज़ुल्म मिटाने को दिल में
आक्रोश का तांडव होने दो !
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
..................................
ऊँचा रुतबा ,श्रद्धा-भक्ति ,
लालच व् भय की बंदूके ,
सच के सीने पर तनी हुई
धमकाती मद की मय पी के ,
मर मिटने को तैयार रहो
शर्मिंदा झूठ को होने दो ,
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

फिर हुई मुलाकात

  'क्या वक्त आया है,रिटायर जिला-शिक्षा अधिकारी को अब टीचर नहीं पहचानता है | मैडम शर्मा ने ये मैडम माथुर को नहीं कहा,पर मन ही मन सोच रही है |'जब वो कैमेस्ट्री की टीचर माथुर के पास अपनी पोती रश्मि को टयूसन पढ़ाने की बात करने को गयी |'
                               'क्या आप अपने तीन ग्रुप मे एक और, लड़की को नहीं पढ़ा सकती,ये तो बड़ी हैरानी की बात है|...आपसे इस जवाब की अपेक्षा कतई नहीं थी |'मैडम शर्मा ने कहा |
                                 'अब आपसे क्या कहूँ मैडम ,टाइम होता तो आपको निराश नहीं करती | स्कूल से आने के बाद घर की,बच्चो की जिम्मेदारी,पूरी करने के बाद ये तीन ग्रुप को मुश्किल से पढ़ा पाती हूँ | और, एक लड़की की जिम्मेदारी नहीं ले सकती |'मैडम माथुर ने अपनी सफाई दे दी और चुप होगयी |
                                     'आपका कहना अपनी जगह पर बिलकुल सही है,पर मै भी, अपनी विवशता के कारण आपके पास आई| मेरी अब वृद्धा अवस्था है |.....रोग ने जकड़ लिया है | कुछ समय पहले दिल का दौरा पढ़ा तो डॉ. ने आराम करने को बोल दिया | नहीं तो मै आपको तकलीफ देने नहीं आती |' खैर,जाने दो टाइम-टाइम की बात है,मेरी जगह अभी आपका कोई परिचित होता तो ,टाइम का बहाना बना कर टाल देती आप ?
                                   थैंक्स टॉक टू मी,और वर्दधा अपनी पोती का हाथ पकड कर धीरे-धीरे कमरे से बाहर आ गयी |
                                    लम्बा-गोरा,पतला शरीर ,चौड़ा ललाट,चेहरे पर गजब का तेज,मैडम शर्मा अपनी पोती के साथ आकर गाड़ी मे बैठ कर चली गयी |
                                      घर आकर थकान के कारण पलंग पर तकिये के सहारे लेट गयी | विचारो की श्रंखला शुरू हो गयी |अपने ज़माने की मशहूर कैमेस्ट्री की टीचर,मिस शाह ने बी. एस. सी. किया ऍम.एस. सी.किया | पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं होने से जल्दी ही सरकारी टीचर की नौकरी करनी पड़ी | सपना तो कॉलेज लेक्चरर बनने का था | पर अगर कोई किसी चीज को पाने की ठान ले तो पाकर रहता है | मिस शाह ने कड़ी मेहनत करके ''लोक सेवा आयोग'' से फर्स्ट ग्रेड परीक्षा पास करी और स्कूल लेक्चरर बन गयी |
                            स्कूल मे एक-एक लड़की को कैमेस्ट्री समझाती और सवालों का हल करती थी | दिन भर वो अपने घर मे भी लडकियों को पढने को बुलाती थी | जो लडकिया पढने मे कमजोर होती उन पर तो विशेष ध्यान देती | लडकिया भी निसंकोच मैडम के घर पढने के लिए जाती थी | किसी से कोई पैसा नहीं लेती | विधा-दान करना ठीक समझती,बजाय विधा को बेचने |
                              उन्ही दिनों उसके लिए लड़के की तलाश भी होने लगी | वो अभी शादी नहीं करना चाहती थी ,पर माता-पिता के आग्रह को टाल भी नहीं सकती थी | और वन-विभाग के फारेस्ट-अधिकारी मिस्टर शर्मा के साथ उसकी शादी हो गयी |अब वो मिस शाह से मिसेज शर्मा बन गयी |
                               जहाँ भी जिस भी स्कूल मे उसकी पोस्टिंग हुई,वहां लडकियों की सबसे अच्छी टीचर बन कर रही | बड़ी कुशलता के साथ पढ़ाती थी | अपनी मेहनत के कारण उसने खूब नाम कमाया |अब वो सीनियर स्कूल की प्रिंसिपल है | हर साल उसके स्कूल की लडकियों ने राज्य मे पोजीशन हासिल करी| साथ ही स्कूल की अन्य गतिविधियों मे भी लडकियों ने अपना और स्कूल का नाम रौशन किया | अंत मे मैडम शर्मा प्रमोशन लेते-लेते जिला-शिक्षा अधिकारी की पोस्ट से रिटायर हुई |
                          अब ढलती उम्र मे अपने परिवार के साथ सुख-चैन का जीवन अपने अपनों के साथ बसर कर रही है | एक पुत्र- और एक पुत्री,पति बस यही उनका परिवार;पुत्री अपने ससुराल और पुत्र अपने परिवार के साथ ही रहता है | एक पौत्र-पौत्री है जो इनकी आँखों के तारे,इनके जीने का सुखद अहसास भी है | पुत्र अकाउंटेंट है| पुत्र-वधु कुशल गृहणी के साथ एक अच्छी बहु,पत्नी और माँ है |
                         पौत्री रश्मि अपनी दादी से ही पढना चाहती थी | अपनी तकलीफ के कारण अभी नहीं पढ़ा सकती इसलिए उसकी स्कूल की टीचर के पास बात करने गयी | पर सब बेकार ! रश्मि ने कहा 'आप कब तक ठीक होगी?' 'क्या बताऊ , बेटा डॉ . ने और, एक महिना आराम करने को कहा है | तब तक तुम रुक जाओ फिर मै सारा कोर्स करवा दूंगी |' मिसेज शर्मा ने कहा | ' पलंग पर लेटी है मिसेज शर्मा, और सोच रही है कि मैंने पहले ही कहा था बेटे से कि अब रिटायर होने के बाद कौन पहचानेगा मुझे ! विचारो की श्रंखला उसे अतीत की यादो मे ले गयी |
                                पापा के पास कितने सारे लड़के-लडकिया दिन भर आते रहते थे | कभी किसी को नहीं निराश नहीं किया सबको गणित सीखने मे उनकी भरपुर मदद करते थे | गणित पर उनका बहुत कंट्रोल था | बहुत सारे पढने वाले बच्चो को गणित मे निपुण किया था | बिना कोई पैसा लिए |
                              माँ बहुत नेक दिल और धरम-परायण थी | पति से उनको कभी कोई शिकायत नहीं रही ,जो कुछ पति ने लाकर दिया,उसी मे संतोष के साथ अपना गुजरा किया | ये सब सोचते-सोचते कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला | उठी तब तक शाम हो गयी थी |
                               मिसेज शर्मा मिसेज माथुर की माँ की कॉलेज टाइम की दोस्त थी ,जब मिसेज शर्मा उनके घर से निकल रही थी,तो उन्होंने बात करनी चाही ,पर तब तक मिसेज शर्मा निकल गयी थी | 'बेटा मिसेज शर्मा जो तुम्हारी गुरु भी है, आज इनके आने से तुम्हे गुरु सेवा करने का मौका मिला | तुम बहुत भाग्यशाली हो |' 'वो अपनी पोती के लिए टयूसन की बात करने आई,मैंने तो पहचाना नहीं और मना भी कर दिया |'कहा मैडम माथुर ने | और अब मुझे उनके घर जाकर माफ़ी मंगनी होगी |' 'माफ़ी तो तुझे माँगनी पड़ेगी,जब तुम उनकी स्टूडेंट थी ,तो कितनी मेहनत की,कि तुम्हे अच्छी पोजीशन मिले ! अब जब तुम्हे अपना फर्ज अदा करने का अवसर मिला तो तुमने उन्हें पहचाना तक नहीं |'
                              मैडम माथुर शाम होने का बेसब्री से इन्तजार करने लगी | ठीक छ बजे वो मैडम शर्मा के घर पहुँच गयी | डोर बेल बजने पर नौकर ने दरवाजा खोला 'कहिये किससे मिलना है|'मैडम से , वो उसे मैडम के कमरे मे ले गया | मैडम माथुर अपनी गुरु के पैरो मे गिर कर माफ़ी मांगने लगी | अरे ! आप , माफ़ी क्यों मांग रही है,आपने पढाने से इंकार करके कोई गुनाह नहीं किया ,मै समझ सकती हूँ वक्त की कमी के कारण ऐसा किया है आपने ,मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा | बल्कि अच्छा लगा कि आपने पता चलते ही अपनी गलती मान कर माफ़ी मांगने मेरे पास आयी,
                             'आपने मेरी कितनी मदद करी कि,मै कैमेस्ट्री मे विशेष योग्यता हासिल कर सकू,आज मै जो कुछ हूँ,आपके कारण हूँ | 'आप अपनी रश्मि को अपनी इस शिष्या के पास पढने को जरुर भेजना | तभी मै समझूंगी कि,आपने मुझे माफ़ कर दिया है | जो पहले कहा उसे भूल समझ कर माफ़ करना | 'इसमें माफ़ी मांगने जैसी कोई बात नहीं है | पर एक बात आपसे कहना चाहती हूँ |' 'जी , कहिये , मै चाहती हूँ कि आप हर साल कम-से-कम दस लडकियों को निशुल्क पढाये | जो पैसा भर नहीं सकती | मैंने पता लगाया है कि आपके पास जितनी लड़कियां आती है ,उनमे से कुछेक को छोड़ कर बाकी सब माध्यम परिवारों से है | आप खुद
सोचिये,कितनी मुश्किल से उनके माँ-बाप पैसो का इंतजाम करते होंगे |'
                       'ठीक है मैडम, अगले साल से दस लडकियाँ बिना पैसो के पढाऊगी ,और ये आपको मेरी गुरु दक्षिणा होगी | आप अपनी पौत्री को कल से जरुर भेजना, और हां आप से मै पैसा नहीं लुंगी |
                       ''अब ये सब छोड़ो चाय-नाश्ता करो,जब से आयी हो माफ़ी मांग रही हो | तुम अपनी गुरु के घर पहली बार आयी हो ,मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है | 'तुम्हे याद है,तुम मेरी सबसे चहेती छात्रा थी | पर तुम्हे कैमेस्ट्री मे रूचि कम थी,मेरे कहने से ही तुमने लिया था,और खूब मेहनत करके विशेष योग्यता भी हासिल करी |' तब तक रश्मि के पापा -मम्मी भी आ गये थे | सब ने मिलकर चाय-नाश्ता किया , थोड़ी देर मैडम शर्मा ने मैडम माथुर से बाते की,इतने सालो बाद मिलकर दोनों बहुत खुश थी | बहुत ही खुशनुमा माहौल से दोनों की मुलाकात खत्म हुई |
              शांति पुरोहित

श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !


साकेत खंडर हो रहा लंका का नव श्रृंगार है ,
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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लक्ष्मण -भरत सम भ्रात न सीता के सम हैं भार्या ,
मर्यादी अब पुरुष नहीं न शीलमयी नारियां ,
आनंद जीवन में नहीं हर ओर हाहाकार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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क्रोध ,लोभ ,माया-मोह संयम पे हावी हो गए ,
भरी तिजोरी पाप की पुण्य भिखारी भये ,
झूठ के समक्ष सत्य की सर्वत्र हार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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हैं कहाँ गुरु वशिष्ठ जो भरते संस्कार ,
हो रहे विद्यालयों में भी आज दुराचार ,
सदाचरण क्षत -विक्षत मन में चीत्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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दंड देगा कौन राजा बन गए खुद चोर हैं ,
लूटकर सबको मचाता खुद लुटेरा शोर है ,
है कोई भोला कहाँ हर कोई अब मक्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

MAN IS ‘A’ -WOMAN IS ‘Z’

MAN IS 'A' -WOMAN IS 'Z'

THOUGH I AM
ABJECT
BARBARIC
CRUEL
DECEITFUL
EGOTIST
FAITHLESS
GREEDY
HAUGHTY
IMPATIENT
JEALOUS
KNAVE
LIAR
MADCAP
NEFARIOUS
OPPRESSOR
PIG-HEADED
QUARRELER
RASCAL
SNOB
TYRANT
UNFEELING
VILE
WICKED
XANTHIUM
YAHOO
ZOO ZOO
BUT THIS IS LOUD & CLEAR
YOU HAVE TO BEAR WITH ME
BECAUSE I AM 'A' AND YOU ARE 'Z'
I AM APEX & YOU ARE ZERO
I MEAN
I AM HUSBAND
&
YOU ARE WIFE

SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

आज विवशता की लंका को आग लगाना है !!


संकट और विपत्ति से नहीं आँख चुराना है ,
जीवन की हर बाधा से सीधे टकराना है !
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निज भुज बल पर हो विश्वास ,सबल मनोबल हो अपना ,
हम यथार्थ में परिणत कर दें ,देखा है जो भी सपना ,
आज विवशता की लंका को आग लगाना है !!
जीवन की हर बाधा से सीधे टकराना है !!
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उमड़-घुमड़ कर आँखों से न हो अब अश्रु-वर्षा ,
कातरता का कटे शीश , ले हस्त शौर्य-फरसा ,
निज दुर्बलता के वध हेतु चंडी बन जाना है !
जीवन की हर बाधा से सीधे टकराना है !!
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हँसे आसुरी शक्ति हम पर , सदा दुर्वचन बोलें ,
नहीं पलायन संघर्षों से , विश्वास न किंचित डोले ,
दुःख-अर्णव पर आशा सेतु हमें बनाना है !
जीवन की हर बाधा से सीधे टकराना है !!
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शिखा कौशिक 'नूतन'