चला काटने किसको बन्दे चल पहले तू मुझको काट ,
ना हिन्दू को ना मुस्लिम को सबसे पहले मुझको काट !
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जिस दिल में ज़ज्बात भरे हैं जिस दिल में है रहम भरा ,
नफरत की तलवारे लेकर काट सके तो उसको काट !
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इसकी माता ,तेरी भाभी ,उसकी बेटी ,बहन मेरी ,
चले लूटने अस्मत इनकी पहले उन हाथों को काट !
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आपस में ही क़त्ल हो रहे गैरों के भड़काने से ,
ज़हर उगलती रहती है जो ऐसी हरेक जुबां को काट !
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मैं मंदिर में ,मैं मस्ज़िद में ,मैं गिरिजा -गरुद्वारे में ,
सब मुझमें हैं ,मैं सबमे हूँ ,'नूतन' मज़हब में ना बाँट !
शिखा कौशिक 'नूतन'
1 टिप्पणी:
सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति ... न जाने इन्सान को का समझ आयेगी ...
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