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शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

फिर हुई मुलाकात

  'क्या वक्त आया है,रिटायर जिला-शिक्षा अधिकारी को अब टीचर नहीं पहचानता है | मैडम शर्मा ने ये मैडम माथुर को नहीं कहा,पर मन ही मन सोच रही है |'जब वो कैमेस्ट्री की टीचर माथुर के पास अपनी पोती रश्मि को टयूसन पढ़ाने की बात करने को गयी |'
                               'क्या आप अपने तीन ग्रुप मे एक और, लड़की को नहीं पढ़ा सकती,ये तो बड़ी हैरानी की बात है|...आपसे इस जवाब की अपेक्षा कतई नहीं थी |'मैडम शर्मा ने कहा |
                                 'अब आपसे क्या कहूँ मैडम ,टाइम होता तो आपको निराश नहीं करती | स्कूल से आने के बाद घर की,बच्चो की जिम्मेदारी,पूरी करने के बाद ये तीन ग्रुप को मुश्किल से पढ़ा पाती हूँ | और, एक लड़की की जिम्मेदारी नहीं ले सकती |'मैडम माथुर ने अपनी सफाई दे दी और चुप होगयी |
                                     'आपका कहना अपनी जगह पर बिलकुल सही है,पर मै भी, अपनी विवशता के कारण आपके पास आई| मेरी अब वृद्धा अवस्था है |.....रोग ने जकड़ लिया है | कुछ समय पहले दिल का दौरा पढ़ा तो डॉ. ने आराम करने को बोल दिया | नहीं तो मै आपको तकलीफ देने नहीं आती |' खैर,जाने दो टाइम-टाइम की बात है,मेरी जगह अभी आपका कोई परिचित होता तो ,टाइम का बहाना बना कर टाल देती आप ?
                                   थैंक्स टॉक टू मी,और वर्दधा अपनी पोती का हाथ पकड कर धीरे-धीरे कमरे से बाहर आ गयी |
                                    लम्बा-गोरा,पतला शरीर ,चौड़ा ललाट,चेहरे पर गजब का तेज,मैडम शर्मा अपनी पोती के साथ आकर गाड़ी मे बैठ कर चली गयी |
                                      घर आकर थकान के कारण पलंग पर तकिये के सहारे लेट गयी | विचारो की श्रंखला शुरू हो गयी |अपने ज़माने की मशहूर कैमेस्ट्री की टीचर,मिस शाह ने बी. एस. सी. किया ऍम.एस. सी.किया | पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं होने से जल्दी ही सरकारी टीचर की नौकरी करनी पड़ी | सपना तो कॉलेज लेक्चरर बनने का था | पर अगर कोई किसी चीज को पाने की ठान ले तो पाकर रहता है | मिस शाह ने कड़ी मेहनत करके ''लोक सेवा आयोग'' से फर्स्ट ग्रेड परीक्षा पास करी और स्कूल लेक्चरर बन गयी |
                            स्कूल मे एक-एक लड़की को कैमेस्ट्री समझाती और सवालों का हल करती थी | दिन भर वो अपने घर मे भी लडकियों को पढने को बुलाती थी | जो लडकिया पढने मे कमजोर होती उन पर तो विशेष ध्यान देती | लडकिया भी निसंकोच मैडम के घर पढने के लिए जाती थी | किसी से कोई पैसा नहीं लेती | विधा-दान करना ठीक समझती,बजाय विधा को बेचने |
                              उन्ही दिनों उसके लिए लड़के की तलाश भी होने लगी | वो अभी शादी नहीं करना चाहती थी ,पर माता-पिता के आग्रह को टाल भी नहीं सकती थी | और वन-विभाग के फारेस्ट-अधिकारी मिस्टर शर्मा के साथ उसकी शादी हो गयी |अब वो मिस शाह से मिसेज शर्मा बन गयी |
                               जहाँ भी जिस भी स्कूल मे उसकी पोस्टिंग हुई,वहां लडकियों की सबसे अच्छी टीचर बन कर रही | बड़ी कुशलता के साथ पढ़ाती थी | अपनी मेहनत के कारण उसने खूब नाम कमाया |अब वो सीनियर स्कूल की प्रिंसिपल है | हर साल उसके स्कूल की लडकियों ने राज्य मे पोजीशन हासिल करी| साथ ही स्कूल की अन्य गतिविधियों मे भी लडकियों ने अपना और स्कूल का नाम रौशन किया | अंत मे मैडम शर्मा प्रमोशन लेते-लेते जिला-शिक्षा अधिकारी की पोस्ट से रिटायर हुई |
                          अब ढलती उम्र मे अपने परिवार के साथ सुख-चैन का जीवन अपने अपनों के साथ बसर कर रही है | एक पुत्र- और एक पुत्री,पति बस यही उनका परिवार;पुत्री अपने ससुराल और पुत्र अपने परिवार के साथ ही रहता है | एक पौत्र-पौत्री है जो इनकी आँखों के तारे,इनके जीने का सुखद अहसास भी है | पुत्र अकाउंटेंट है| पुत्र-वधु कुशल गृहणी के साथ एक अच्छी बहु,पत्नी और माँ है |
                         पौत्री रश्मि अपनी दादी से ही पढना चाहती थी | अपनी तकलीफ के कारण अभी नहीं पढ़ा सकती इसलिए उसकी स्कूल की टीचर के पास बात करने गयी | पर सब बेकार ! रश्मि ने कहा 'आप कब तक ठीक होगी?' 'क्या बताऊ , बेटा डॉ . ने और, एक महिना आराम करने को कहा है | तब तक तुम रुक जाओ फिर मै सारा कोर्स करवा दूंगी |' मिसेज शर्मा ने कहा | ' पलंग पर लेटी है मिसेज शर्मा, और सोच रही है कि मैंने पहले ही कहा था बेटे से कि अब रिटायर होने के बाद कौन पहचानेगा मुझे ! विचारो की श्रंखला उसे अतीत की यादो मे ले गयी |
                                पापा के पास कितने सारे लड़के-लडकिया दिन भर आते रहते थे | कभी किसी को नहीं निराश नहीं किया सबको गणित सीखने मे उनकी भरपुर मदद करते थे | गणित पर उनका बहुत कंट्रोल था | बहुत सारे पढने वाले बच्चो को गणित मे निपुण किया था | बिना कोई पैसा लिए |
                              माँ बहुत नेक दिल और धरम-परायण थी | पति से उनको कभी कोई शिकायत नहीं रही ,जो कुछ पति ने लाकर दिया,उसी मे संतोष के साथ अपना गुजरा किया | ये सब सोचते-सोचते कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला | उठी तब तक शाम हो गयी थी |
                               मिसेज शर्मा मिसेज माथुर की माँ की कॉलेज टाइम की दोस्त थी ,जब मिसेज शर्मा उनके घर से निकल रही थी,तो उन्होंने बात करनी चाही ,पर तब तक मिसेज शर्मा निकल गयी थी | 'बेटा मिसेज शर्मा जो तुम्हारी गुरु भी है, आज इनके आने से तुम्हे गुरु सेवा करने का मौका मिला | तुम बहुत भाग्यशाली हो |' 'वो अपनी पोती के लिए टयूसन की बात करने आई,मैंने तो पहचाना नहीं और मना भी कर दिया |'कहा मैडम माथुर ने | और अब मुझे उनके घर जाकर माफ़ी मंगनी होगी |' 'माफ़ी तो तुझे माँगनी पड़ेगी,जब तुम उनकी स्टूडेंट थी ,तो कितनी मेहनत की,कि तुम्हे अच्छी पोजीशन मिले ! अब जब तुम्हे अपना फर्ज अदा करने का अवसर मिला तो तुमने उन्हें पहचाना तक नहीं |'
                              मैडम माथुर शाम होने का बेसब्री से इन्तजार करने लगी | ठीक छ बजे वो मैडम शर्मा के घर पहुँच गयी | डोर बेल बजने पर नौकर ने दरवाजा खोला 'कहिये किससे मिलना है|'मैडम से , वो उसे मैडम के कमरे मे ले गया | मैडम माथुर अपनी गुरु के पैरो मे गिर कर माफ़ी मांगने लगी | अरे ! आप , माफ़ी क्यों मांग रही है,आपने पढाने से इंकार करके कोई गुनाह नहीं किया ,मै समझ सकती हूँ वक्त की कमी के कारण ऐसा किया है आपने ,मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा | बल्कि अच्छा लगा कि आपने पता चलते ही अपनी गलती मान कर माफ़ी मांगने मेरे पास आयी,
                             'आपने मेरी कितनी मदद करी कि,मै कैमेस्ट्री मे विशेष योग्यता हासिल कर सकू,आज मै जो कुछ हूँ,आपके कारण हूँ | 'आप अपनी रश्मि को अपनी इस शिष्या के पास पढने को जरुर भेजना | तभी मै समझूंगी कि,आपने मुझे माफ़ कर दिया है | जो पहले कहा उसे भूल समझ कर माफ़ करना | 'इसमें माफ़ी मांगने जैसी कोई बात नहीं है | पर एक बात आपसे कहना चाहती हूँ |' 'जी , कहिये , मै चाहती हूँ कि आप हर साल कम-से-कम दस लडकियों को निशुल्क पढाये | जो पैसा भर नहीं सकती | मैंने पता लगाया है कि आपके पास जितनी लड़कियां आती है ,उनमे से कुछेक को छोड़ कर बाकी सब माध्यम परिवारों से है | आप खुद
सोचिये,कितनी मुश्किल से उनके माँ-बाप पैसो का इंतजाम करते होंगे |'
                       'ठीक है मैडम, अगले साल से दस लडकियाँ बिना पैसो के पढाऊगी ,और ये आपको मेरी गुरु दक्षिणा होगी | आप अपनी पौत्री को कल से जरुर भेजना, और हां आप से मै पैसा नहीं लुंगी |
                       ''अब ये सब छोड़ो चाय-नाश्ता करो,जब से आयी हो माफ़ी मांग रही हो | तुम अपनी गुरु के घर पहली बार आयी हो ,मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है | 'तुम्हे याद है,तुम मेरी सबसे चहेती छात्रा थी | पर तुम्हे कैमेस्ट्री मे रूचि कम थी,मेरे कहने से ही तुमने लिया था,और खूब मेहनत करके विशेष योग्यता भी हासिल करी |' तब तक रश्मि के पापा -मम्मी भी आ गये थे | सब ने मिलकर चाय-नाश्ता किया , थोड़ी देर मैडम शर्मा ने मैडम माथुर से बाते की,इतने सालो बाद मिलकर दोनों बहुत खुश थी | बहुत ही खुशनुमा माहौल से दोनों की मुलाकात खत्म हुई |
              शांति पुरोहित

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति।
साझा करने के लिए धन्यवाद।

Unknown ने कहा…

मेरी रचना को मान देने के लिए बहुत सुक्रिया

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

उम्दा कहानी