श्री राम का वाण लगा जाकर ,
नाभि का अमृत गया सूख ,
फिर कटे दश-आनन् एक एक कर ,
गिरा राम चरण में दम्भी -मूर्ख !
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अंतिम श्वासें भरता-भरता
करता प्रायश्चित बोला रावण ,
श्री राम किया उपकार बड़ा ,
मैं हाथ जोड़ता इस कारण !
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वध आज हुआ पर हे भगवन !
मृत उस दिन से है मेरा मन ,
जब पंचवटी से हर लाया ,
जगजननी माँ सीता पावन !
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ये तन तो आज मैं त्यागूंगा ,
करता रहा जिससे पाप कर्म ,
पर यश फैले सीता माँ का ,
जो रही निभाती पत्नी-धर्म !
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मेरे वैभव ,शक्ति-बल से
विचलित न हुई किसी भी क्षण ,
उन सीता माँ का उर से मैं ,
करता हूँ शत-शत अभिनन्दन !
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श्री राम आप हैं परमपिता ,
इस दम्भी पुत्र पर दया करें ,
चिर संग आपके रहें सिया ,
मुझ पापी को अब क्षमा करें !
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श्री राम-सिया की युगल छवि ,
मेरे प्राणों में बसी रहे ,
युग-युग तक जब भी जन्म मिले
जिह्वा सियाराम सियाराम कहे !
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ये कहते कहते रावण ने ,
उस कलुषित देह को दिया त्याग ,
सब पाप कटे ; धुला काम-मैल ,
सियाराम का है अनुपम प्रताप !
शिखा कौशिक 'नूतन'
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