शौहर की शर्ते ! |
न कुछ कहने की हो आदत तभी बनना मेरी बेगम !
निकाह के वक़्त जब कबूल करने को कहें काजी ,
हमेशा कर सको खिदमत तभी बनना मेरी बेगम !
मेरे हर हुक्म को शबोरोज़ अगर कर सको पूरा ,
न हो और दिल में बगावत तभी बनना मेरी बेगम !
मेरी इज्ज़त बचाना जान देकर इस ज़माने में ,
हो तुममे मिटने की हिम्मत तभी बनना मेरी बेगम !
हदों में रहना तुम 'नूतन' यहीं हैं मर्द की शर्ते ,
रहो औकात में औरत तभी बनना मेरी बेगम !
शिखा कौशिक 'नूतन'
4 टिप्पणियां:
हर शेर लाजवाब है
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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आज भी औरत मजबूर है ....या कहे खुद से बहुत दूर है .
सुन्दर रचना !
वाह-वाह..क्या कह दिया आपने..!! पौरुष-दंभ के आगे कोई टिका है भला??
That's interesting! Can you please share more about it? Thank you.
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