फिर कैसा फ़तवा ?-लघु कथा |
मौलाना साहब को आते देखकर मैं उठकर खड़ा हो गया .दुआ -सलाम के बाद मैंने उनसे बैठने का आग्रह किया .इधर -उधर की बातों के बाद मैंने उनसे जिज्ञासावश पूछ ही डाला -' एक बात बताइए आप लोग विभिन्न मुद्दों पर मौत का फ़तवा जारी करते रहते हैं पर जब कोई मुसलमान एक हिन्दू पार्टी -जो मस्जिद ध्वस्त कर मंदिर निर्माण की खुले आम वकालत करती है ...ज्वाइन करता है ....पदाधिकारी बनता है.. तब आप लोग उस शख्स के खिलाफ फ़तवा जारी क्यों नहीं करते ?'' मौलाना साहब मुस्कुराते हुए बोले -'' पंडित जी हम ऐसे इन्सान को ईमान बेचने वाला मानते हैं बिलकुल फिल्मों में काम करने वाली मुस्लिम औरतों की तरह ..फिर कैसा फ़तवा ?'' मौलाना साहब ये कहते हुए उठ कर खड़े हो गए और ''ख़ुदा हाफिज '' कर चल दिए .
शिखा कौशिक 'नूतन'
2 टिप्पणियां:
jabardast kataksh
कुछ सच कभी नहीं बदलते..
सुंदर रचना..
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