मैं स्वछन्द ,नीर की बदरी हूँ जहां चाहे बरस जाऊँगी
मैं कोई धागा तो नहीं कि सुई के पीछे -पीछे आऊँगी|
मैं मस्त पवन कि खुशबू हूँ जहां चाहे बिखर जाऊँगी
मैं कोई काजल तो नहीं कि पलकों में सिमट जाऊँगी |
मैं उन्मुक्त सशक्त पतंग हूँ उच्च गगन में लहराऊँगी
मैं कोई मैना तो नहीं कि पिंजरे में कैद हो जाऊँगी|
मैं पाषाण हिय कि नारी हूँ अपनी क्षमता दिखलाऊंगी
मैं कोई शुष्क लकड़ी तो नहीं कि आरी से कट जाऊँगी|
मैं आज की शिक्षित नारी हूँ कभी शीश नहीं झुकाउँगी
नारी अबला होती है मैं यह प्रचलित कथन मिटाऊँगी|
4 टिप्पणियां:
मैं आज की शिक्षित नारी हूँ कभी शीश नहीं झुकाउँगी
नारी अबला होती है मैं यह प्रचलित कथन मिटाऊँगी|
..yah kathan mitana hi hoga ..bahut ho chali ..
sundar prerak prastuti..
bahut ojpoorn aahvan .aabhar
nice presentation. आजादी ,आन्दोलन और हम
मैं पाषाण हिय कि नारी हूँ अपनी क्षमता दिखलाऊंगी
मैं कोई शुष्क लकड़ी तो नहीं कि आरीसे कटजाऊँगी|
वाह! सुंदर मज़बूत/द्रढ विचार
एक टिप्पणी भेजें