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गुरुवार, 16 अगस्त 2012

आज की शिक्षित नारी


मैं स्वछन्द ,नीर की बदरी हूँ जहां चाहे बरस जाऊँगी
मैं कोई धागा तो नहीं कि सुई के पीछे -पीछे आऊँगी|
मैं मस्त पवन कि खुशबू हूँ जहां चाहे बिखर जाऊँगी 
मैं कोई काजल तो नहीं कि पलकों में सिमट जाऊँगी |
मैं उन्मुक्त सशक्त पतंग हूँ उच्च गगन में लहराऊँगी 
मैं  कोई    मैना तो नहीं कि पिंजरे में कैद हो जाऊँगी
मैं पाषाण हिय कि नारी हूँ अपनी क्षमता  दिखलाऊंगी   
मैं कोई शुष्क  लकड़ी तो नहीं कि आरी से कट जाऊँगी|
मैं आज की शिक्षित नारी हूँ कभी शीश नहीं झुकाउँगी
नारी अबला होती है  मैं यह प्रचलित कथन मिटाऊँगी

4 टिप्‍पणियां:

KAVITA ने कहा…

मैं आज की शिक्षित नारी हूँ कभी शीश नहीं झुकाउँगी
नारी अबला होती है मैं यह प्रचलित कथन मिटाऊँगी|
..yah kathan mitana hi hoga ..bahut ho chali ..
sundar prerak prastuti..

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut ojpoorn aahvan .aabhar

Shalini kaushik ने कहा…

nice presentation. आजादी ,आन्दोलन और हम

रज़िया "राज़" ने कहा…

मैं पाषाण हिय कि नारी हूँ अपनी क्षमता दिखलाऊंगी
मैं कोई शुष्क लकड़ी तो नहीं कि आरीसे कटजाऊँगी|
वाह! सुंदर मज़बूत/द्रढ विचार