तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम ,
मालिक सदा ही रखना बन्दों पे तू करम ,
नेकी के रास्तों पर बढ़ते रहे कदम ,
नफरत मिटा के दिल से भर देना तू रहम !
तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम !
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सबसे करो मोहब्बत मालिक ने हैं सिखाया ,
एक जैसा हम सभी को मालिक ने है बनाया ,
ना कोई ऊँचा-नीचा ना कोई हिन्दू-मुस्लिम ,
एक ही लहू खुदा ने जिस्मों में है बहाया ,
भूलें न उस खुदा को आओ लें ये कसम !
तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम
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मज़हब का नाम लेकर ना हम किसी को मारें ,
लब पर दुआ अमन की हर पल रहे हमारे ,
दिल न कभी दुखाएं मजबूर आदमी का ,
नज़रे उठा के देखो करता है 'वो' इशारे ,
ज़ख्मों पे हम किसी के आओ लगाएं मरहम !
तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम !
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करनी हमें हिफाज़त महबूब इस वतन की ,
होली जला दें आओ फिरकापरस्ती की ,
हो ईद या दीवाली मिलकर सभी मनाएं ,
रब की यही है मर्ज़ी फूलों से मुस्कुराएं ,
इंसानियत निभाएं जब तक हो दम में दम !
तेरा ही आसरा है , तेरी पनाह में हम !
शिखा कौशिक 'नूतन'
7 टिप्पणियां:
रचना बहुत अच्छी है !
sundar bhavabhivyakti .badhai
बहुत सुंदर संदेश देती भावपूर्ण रचना..
संदेश देती भावपूर्ण रचना..
संदेशपूर्ण और सार्थक!
vry-2 nice post......
बहुत सार्थक और प्रेरक रचना...बहुत सुन्दर..
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