सुना है
समाप्ति की कगार पर खड़ा
अपने ख़त्म होने का
विह्वल हो देख रहा
लोगों में
दम तोडती संवेदनाएँ
बीच सड़क, निर्वस्त्र पड़ी
घायल लड़की के
जिस्म से टपक रहे खून को
नज़रंदाज़ कर
आगे बढ़ गई थी तब
आज क्यों उबाल पर हैं
इस कायर समाज की
नपुंसक संवेदनाएँ
अबोध बालिका के साथ
बलात्कार की खबर को ,
सरसरी निगाह से पढ़कर
अखबार में छपी
अधनंगी तस्वीरों पर
आँखों से लार टपकाती
कुत्सित भावनाएँ
बीच सड़क, निर्वस्त्र पड़ी
घायल लड़की के
जिस्म से टपक रहे खून को
नज़रंदाज़ कर
आगे बढ़ गई थी तब
आज क्यों उबाल पर हैं
इस कायर समाज की
नपुंसक संवेदनाएँ
अबोध बालिका के साथ
बलात्कार की खबर को ,
सरसरी निगाह से पढ़कर
अखबार में छपी
अधनंगी तस्वीरों पर
आँखों से लार टपकाती
कुत्सित भावनाएँ
खाने की मेज़ पर ,
जायकों के बीच
जायकों के बीच
टी.बी. पर आते समाचारों में
बम धमाके में घायल हुए
लोगों की चीखों को
निर्मम हो सुन रहीं
बहरी संवेदनाएँ
सड़क पर पड़े
घायल अधमरे इंसान के
घायल अधमरे इंसान के
चारों ओर इकट्ठे हुजूम में
किसी एक हाथ के बढ़ने के इंतज़ार में
आँख मूँद रही ज़िन्दगी के साथ
अंतिम साँसें गिन रहीं
मरणासन्न संवेदनाएँ
मरणासन्न संवेदनाएँ
बम धमाके से उड़ते चीथड़ों पर ,
आग में जले सुलगते जिस्मों पर,
निज क्षुद्र स्वार्थ की रोटियां सेकते नेताओं की
10 टिप्पणियां:
samvednao se bhari behad gambhir prastuti
शालिनी जी सही कहा संवेदनाएं दम तोड़ रही हैं पर क्यूँ ???इसकी जड़ों को खोजना है और निवारण ढूँढना है बहुत अच्छा लिखा बधाई आपको
सही है कि आज संवेदनाएं दम तोड़ रही हैं..पर आज भी निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले हजारों हैं..हमें ज्योति से ज्योति जलानी होगी..
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
संवेदनाओं को झकझोरती हुयी रचना !!
'हिंसा','इंसानियत के विकास में वाधा है | यौन-हिंसा शरीर के साथ, मनोर आत्मा का भी हनन करती है !
रचना को पसंद करने व मनोबल बढ़ाने के लिए आप सब का बहुत बहुत आभार!
एक संवेदनशील रचना ,जो सोचने पर मजबूर कर दे
बहुत संवेदन शील लिखा है ...संवेदनाएं मर नहीं सकतीं ....ये और बात है मशीनी जिंदगी ने संवेदनाओं को गलत दिशा दे दी है ...
इसलाम कहता है कि जो लड़का गर्भाधान में प्राकृतिक रूप से सक्षम है, वह बालिग़ है।
दिल्ली के जघन्य रेप कांड के सबसे बड़े शैतान को कल अदालत ने नाबालिग़ क़रार दे दिया है। मनुष्य की बुद्धि अपूर्ण है और ईश्वर की पूर्ण। ईश्वर ने मनुष्य बनाया है तो उसके लिए विधि-विधान भी बनाय है। मनुष्य ने उसके विधि-विधान को नकार दिया और अपने लिए अपनी बुद्धि से कुछ जुगाड़ किया। इसीलिए उसने प्राकृतिक रूप से गर्भाधान में सक्षम बालिग़ व्यक्ति को भी बालक ही बताया। यह ग़लत है। इस बात को ग़लत केवल इसलाम कहता है और कुछ लोगों को इसलाम के नाम से ही चिढ़ है। इसलाम कहता है कि जो लड़का गर्भाधान में प्राकृतिक रूप से सक्षम है, वह बालिग़ है।
आज दुनिया भी यही मानना चाहती है। इसलाम जन मन की स्वाभाविक इच्छा है। इसे दबाया जाएगा तो दुनिया में कभी न्याय नहीं हो पाएगा।
इसलाम का नाम लेकर किसी बादशाह ने आपको इतिहास में कभी कुचल डाला है तो उस बादशाह का विरोध कीजिए। न कि नफ़रत और प्रतिशोध में अंधे होकर आजीवन उसके धर्म का भी विरोध करते रहें ,चाहे वह आपकी समस्याओं का वास्तविक हल ही क्यों न हो !
कृप्या विचार कीजिए, इसी में आपके लोक परलोक की भलाई है।
यह कमेंट निम्न पोस्ट पर दिया गया है, जिसका लिंक व शीर्षक यह है- http://commentsgarden.blogspot.in/2013/01/blog-post_28.html
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