अनजानी राह
सतविंदर कभी अपनी माँ से एक दिन के लिए भी दूर नही गया।
स्कूल भी जाता तो वापस आकर माँ से लिपट जाता था।
बेहद शर्मीले स्वभाव का लड़का था सतविंदर।
बुरे दोस्तों की संगत में ऐसा पड़ा कि घर से रिश्ता ही टूट गया ।
दोस्तों ने उसे एक अनजानी राह पर भटकने के लिए छोड़ दिया।
अभी तक उसने ऐसा कोई काम नही किया जिससे वो जीवन की मुख्य धारा में फिर से न लौट सके ।
यह सब सोचते-सोचते सतविंदर के पिता को एक राह सूझी जिससे उनका बेटा अनजानी राह से फिर से सही राह पर आ सके।
उन्होंने पेपर में यह छपवा दिया कि "सतविंदर की माँ नही रही पिता बहुत परेशान है तुम जहाँ भी हो आ जाओ ।
चाचा जी एक लड़के ने आपके लिए यह लिफाफा दिया है।
खोल कर देखा तो उसमे कुछ रुपये निकले और फटा हुआ कागज का टुकड़ा जिसमे लिखा था ' माँ के अंतिम संस्कार के लिए कुछ पैसे भेज रहा हूँ अपना ख्याल रखियेगा ,आपका बेटा शतविन्दर
शान्ति पुरोहित
स्कूल भी जाता तो वापस आकर माँ से लिपट जाता था।
बेहद शर्मीले स्वभाव का लड़का था सतविंदर।
बुरे दोस्तों की संगत में ऐसा पड़ा कि घर से रिश्ता ही टूट गया ।
दोस्तों ने उसे एक अनजानी राह पर भटकने के लिए छोड़ दिया।
अभी तक उसने ऐसा कोई काम नही किया जिससे वो जीवन की मुख्य धारा में फिर से न लौट सके ।
यह सब सोचते-सोचते सतविंदर के पिता को एक राह सूझी जिससे उनका बेटा अनजानी राह से फिर से सही राह पर आ सके।
उन्होंने पेपर में यह छपवा दिया कि "सतविंदर की माँ नही रही पिता बहुत परेशान है तुम जहाँ भी हो आ जाओ ।
चाचा जी एक लड़के ने आपके लिए यह लिफाफा दिया है।
खोल कर देखा तो उसमे कुछ रुपये निकले और फटा हुआ कागज का टुकड़ा जिसमे लिखा था ' माँ के अंतिम संस्कार के लिए कुछ पैसे भेज रहा हूँ अपना ख्याल रखियेगा ,आपका बेटा शतविन्दर
शान्ति पुरोहित
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