''सौप कर जिनपर हिफाजत मुल्क की ;
ले रहे थे साँस राहत की सभी ;
चलते थे जिनके कहे नक़्शे कदम पर ;
जिनका कहा हर लफ्ज तारीख था कभी ;
वो सियासत ही हमे ठगने लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
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है नहीं अब शौक खिदमत क़ा किसी को ;
हर कोई खिदमात क़ा आदी हुआ है ;
लूटकर आवाम क़ा चैन- ओ -अमन ;
वो बन गए आज जिन्दा बददुआ हैं ;
वो ही कातिल ,वो ही हमदर्द ,ये कैसी दिल्लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी .
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कभी जो नजर उठते ही झुका देते थे;
हर एक बहन के लिए खून बहा देते थे ;
कोई फब्ती भी अगर कसता था ;
जहन्नुम उसको दिखा देते थे ;
खुले बाजार पर अब अस्मतें लुटने लगी हैं ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
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शिखा कौशिक 'नूतन '
6 टिप्पणियां:
कभी जो नजर उठते ही झुका देते थे;
हर एक बहन के लिए खून बहा देते थे ;
कोई फब्ती भी अगर कसता था ;
जहन्नुम उसको दिखा देते थे ;
खुले बाजार पर अब अस्मतें लुटने लगी हैं ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
whah bahut khoob
बहुत सुन्दर बधाई
great
josh se bhari hui .
बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुति..सादर..
बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुति!!!
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