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सोमवार, 2 जून 2014

वो सियासत ही हमे ठगने लगी है

''सौप कर जिनपर हिफाजत मुल्क की ;
ले रहे थे साँस राहत की सभी ;
चलते थे जिनके कहे नक़्शे कदम पर ;
जिनका कहा हर लफ्ज तारीख था कभी ;
वो सियासत ही हमे ठगने   लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
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है नहीं अब शौक खिदमत क़ा किसी को ;
हर कोई खिदमात क़ा आदी हुआ है  ;
लूटकर आवाम क़ा चैन- ओ  -अमन ;
वो बन गए आज जिन्दा बददुआ हैं ;
वो ही कातिल ,वो ही हमदर्द ,ये कैसी दिल्लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी .
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कभी जो नजर उठते ही झुका देते थे;
हर एक बहन के लिए खून बहा देते थे ;
कोई फब्ती भी अगर कसता था ;
जहन्नुम  उसको  दिखा  देते थे ;
खुले बाजार पर अब अस्मतें लुटने लगी हैं ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
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शिखा कौशिक 'नूतन '

6 टिप्‍पणियां:

Rachana ने कहा…

कभी जो नजर उठते ही झुका देते थे;
हर एक बहन के लिए खून बहा देते थे ;
कोई फब्ती भी अगर कसता था ;
जहन्नुम उसको दिखा देते थे ;
खुले बाजार पर अब अस्मतें लुटने लगी हैं ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .

whah bahut khoob

समय चक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर बधाई

Unknown ने कहा…

great

Shalini kaushik ने कहा…

josh se bhari hui .

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुति..सादर..

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुति!!!