दीवार से नीचे लटकती
''बेल ''
कभी स्थिर -कभी हवा
के झोंके से चंचल,
छोटे -बड़े पत्ते
मानों उसकी अभिलाषाओं
के प्रतीक ,
लम्बी लम्बी टहनियां
मानों उसकी जीवन
शक्ति क़ा संकेत ;
जब हिलती हैं
तो लगता है कि
मुस्कुरा रही हैं ;
जब ठहरी रहती हैं
तो मानो उदास हो जाती हैं ;
क्या इनमे भी जीवन है ?
ये एक जिज्ञासा सिर उठाती है ;
जो तुरंत ही शांत
भी हो जाती है ;
जब बेल की एक टहनी
लचक कर मेरे चेहरे
से छू जाती है ;
मानो यह कह जाती
है -हम भी तेरे जैसे ही है
''हम में भी है स्पंदन ''
शिखा कौशिक 'नूतन'
2 टिप्पणियां:
satya abhivyakti .badhai .
जीवन तो हर जगह है...उसे देखने वाली आँख चाहिए..सुंदर रचना
एक टिप्पणी भेजें