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मंगलवार, 24 जून 2014

स्पंदन

green leaf closeup

दीवार से नीचे लटकती 
      ''बेल ''
कभी स्थिर -कभी हवा 
के झोंके से चंचल,
छोटे -बड़े पत्ते 
मानों उसकी अभिलाषाओं 
के प्रतीक ,
लम्बी लम्बी टहनियां  
मानों उसकी जीवन 
शक्ति क़ा संकेत ;
जब हिलती हैं 
तो लगता है कि 
मुस्कुरा रही हैं ;
जब ठहरी  रहती हैं
तो मानो  उदास हो जाती  हैं ;
क्या इनमे भी जीवन है ?
ये एक जिज्ञासा सिर उठाती है ;
जो तुरंत ही शांत
भी हो जाती है ;
जब बेल की एक टहनी
लचक कर मेरे चेहरे
से छू जाती है ;
मानो यह कह जाती
है -हम भी तेरे जैसे ही है
''हम में भी है स्पंदन ''

शिखा कौशिक 'नूतन'

2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

satya abhivyakti .badhai .

Anita ने कहा…

जीवन तो हर जगह है...उसे देखने वाली आँख चाहिए..सुंदर रचना