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शनिवार, 4 जनवरी 2014

सुकून

कितने साल इन्तजार किया था,ये दिन देखने के लिए ,तब जाके मालती की शादी तय हुई| दुनिया मे कितने सारे लोग होंगे जिनको इस बारे मे पता ही नहीं होगा, आज अचानक पता नहीं क्यों मेरे मन मे मालती का ख्याल आ गया | मालती हमारे पडौस मे रहने वाले रमाशंकर जी की बेटी थी|
             ''मावली, ''गुलाबपूरा, मे रहती थी मालती| गाँव मे हर परिवार मे पांच से छ बच्चे थे,पर मालती अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी |  उसके माँ-पिताजी को बहुत दुःख था बेटा नहीं होने का,पर उपरवाले की मर्जी को अपनी किस्मत मान लिया और बेटी को ही सब कुछ मान कर चैन से जीने लगे|
              बड़े प्यार से फूल की तरह बेटी को रखते थे|बेटी के पैदा होते ही बाप की कमाई दोगुनी हो गयी थी| तो उसके पापा, रमाशंकर प्यार से उसे लक्ष्मी बुलाने लगे| इतने छोटे गाँव की लड़की के लिए कोई अच्छा रिश्ता नहीं आ रहा था | मालती के पापा,मालती को पुराने रीती- रिवाज मानने वालो के घर नहीं ब्याहना चाहते थे,क्युकी उन्होंने अपनी बेटी को दसवी तक शिक्षा दिलाई थी| साथ ही मालती सुन्दर भी बहुत थी,जैसे -उपरवाले ने उसे बहुत फुर्सत मे बनाया हो| जो भी देखता उसे,बस देखता ही रह जाता
                    गाँव से उसको शहर भेजने की लिए परिवार और गाँव के ना जाने कितने लोगो को समझाना पड़ा, तब कहीं जाकर वो मालती को शहर भेजकर दसवी तक पढ़ा सके थे |
                     पास के शहर ''उदयपुर''के एक एक पढ़े-लिखे लड़के के साथ अब रिश्ता तय हुआ है| क्युकी लड़के के माता-पिता की ये इच्छा थी कि, लड़की सुन्दर और संस्कारी होनी चाहिए,तो ये लड़की मालती उनको भा गयी| लड़के की सोच थी कि दोनों पढ़े -लिखे होंगे तो अहम टकराएगा,घर मे रोज की कलह होगी सुन्दर तो वो थी, ,इसलिए उसे भी कोई एतराज नहीं था इस रिश्ते से|
                      लड़के वाले स्वतंत्र विचारो के थे,दकियानूस बिलकुल भी नहीं थे| मालती के पापा -मम्मी बहुत खुश थे| बहुत अच्छी शादी की,सब जमा-पूंजी लगा दी| रमाँशंकर जी ने मालती और उसके ससुराल वालो को बहुत कुछ दिया;लडके के परिवार वालो को इतनी उम्मीद नहीं थी| वो लोग तो अपनी पसंद की बहु पा लेने भर से ही बहुत खुश थे ;उस पर इतना सत्कार भी ....
                         बारात वापस रवाना होने का समय आ गया,तो रमाशंकर जी ने समधी जी से विनय पूर्वक निवेदन किया ,''हम चाहते है ,आप अभी नहीं सुबह चले जाओ|, पर लडके के पिताजी ने कहा ''आपने बहुत सत्कार किया,कोई कसर नहीं छोड़ी ;अब हम अपने घर जाकर अपनी बहु का सत्कार करना चाहते है,इसलिए हमे अभी जाना होगा |, और वो चले गये | सुना है ,होनी को कौन टाल सकता है, अभी बारात को रवाना हुए एक घंटा ही हुआ था कि अचानक रमाशंकर जी के पास किसी बाराती का फोन आया ''बस दुर्घटना ग्रस्त हो गयी,और दुल्हे पक्ष के पांच रिश्तेदार दुर्घटना स्थल पर ही मारे गये|,
                            रमाशंकर जी के होश उड गये,ये दुखद समाचार सुनकर| पत्नी को अलग बुलाकर कहा '' बारात की बस दुर्घटना ग्रस्त हो गयी है,मुझे अभी जाना होगा|,पत्नी ने कहा ''आप अकेले नहीं जा सकते मै भी चलूंगी|,मालती की माँ के दिमाग मे पुरे राश्ते यही चल रहा था कि अब मेरी मालती का क्या होगा?मालती को अब घर मे सब घ्रणा की नजर से देखेंगे| घटना स्थल पर पहुँच कर देखा,हाहाकार मचा हुआ था| सब लोगो के चेहरे उदासी मे घिरे हुए थे ;पोस्ट-मार्टम के लिए लडके के पिताजी वहीं रुक गये और बाकी सब लोगो को दूसरी बस से घर के लिए रवाना किया|
                          घर मे भी ये दुखद समाचार पहुँच गया था,वहां भी मातम छाया हुआ था| घर मे इक्कठा लोगो ने दबी जुबान मे नई बहु को अभागी,भाग्यहीन कहना शुरू कर दिया था| ''बहु के पैर घर मैं पड़ते ही घर की ख़ुशी मातम और रोने धोने मे तब्दील हो गयी ;आगे जाकर पता नहीं क्या होगा इस घर का ? ''मालती की सास नैना देवी ने जब अपने कानो ऐ लोगो को ये कहते हुए सुना, तो वो अपना सब दुःख भुलाकर जोर से बोली ''कोई इस दुःख की घड़ी मे हमारे साथ रहना चाहे, तो ठीक ,पर कोई भी हमारी नई बहु के बारे मे कुछ भी उल्टा सुलटा नहीं बोलेगा;इसमें उस मासूम का कोई कसूर नहीं| किसी के भी करने से कभी किसी का कोई अनिष्ट नहीं होता है|ये तो सब किस्मत का लिखा होता है |''
                       जैसे ही बारात वापस दुल्हे के दादा कृपा शंकर जी ने अपनी रोबीली आवाज मे अपनी बड़ी बहु से कहा ''नैना बहु,नई बहु का विधिवत स्वागत करो'बाद मे रोना धोना होगा|'' दुर्घटना मे कृपाशंकर जी ने अपना छोटा पोता,और चार अन्य रिश्तेदार खोये थे | बहु रोने लगी थी ;कहीं न कहीं वो अपने को इन सबका जिम्मेदार मानने लगी थी |दादाजी और कोई भी घर का व्यक्ति बहु को इसका कारण बिलकुल ही नहीं मान रहे थे| नैना देवी ने अपनी बहु का  स्वागत किया' बहु -बेटे की आरती उतारी;तब बहु का गृह-प्रवेश कराया| तो लोगो को बड़ा आश्चर्य हुआ! बहु के माता-पिता भी ये सब देख रहे थे| रामशंकर जी ने अपनी पत्नी से कहा ''हमने वाकई अच्छे विचारो वाले घर मे अपनी बेटी का ब्याह किया है इस घर मे हमारी बेटी हमेशा खुश रहेगी और वो सुकून से अपने घर चले गये |
     शांति पुरोहित
               
           
                     
               

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Shukriya sar

बेनामी ने कहा…

shanti ji bahut hi achchha sandesh diya hai is kahani ke madhyam se aapne .aabhar

Unknown ने कहा…

शिखा जी उत्साह बढ़ाने के लिए बहुत शुक्रिया

nayee dunia ने कहा…

bahut achhi kahani ... nayee bahu ka kya dosh honi to kabhi bhi ho sakti hai ..