शबनम से जलन होती शोलों की हिमायत ,
फूलों से चुभन होती काँटों की हिमायत !
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अपनों पे भरोसा नहीं गैरों से शिकायत ,
ऐसे नहीं चल पायेगी दुकान-ए-सियासत !
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तोहमत उन्ही के सिर पर जो क़त्ल हो गए ,
दिन-रात हो रही है कातिल की हिफाज़त !
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वे हाथ जोड़ मांगते वोट-नोट सब ,
हैरान खुदा देखकर गुंडों की शराफत !
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इंसानियत की बस्ती को आग लगाकर ,
'नूतन' करे दरिंदा मसीहा की खिलाफत !
शिखा कौशिक 'नूतन'
1 टिप्पणी:
क्या बात है.....सुन्दर ग़ज़ल..
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