अरे विमला ! ये क्या लगा रखा है ? पुरे दिन बस लिखती रहती हो,जैसे कोई बहुत बड़ी लेखिका बन जाने वाली हो.....सास ने जोर से चिल्लाकर कहा|
विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
शांति पुरोहित
अरे विमला ! ये क्या लगा रखा है ? पुरे दिन बस लिखती रहती हो,जैसे कोई बहुत बड़ी लेखिका बन जाने वाली हो.....सास ने जोर से चिल्लाकर कहा|
विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
शांति पुरोहित
विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
शांति पुरोहित
अरे विमला ! ये क्या लगा रखा है ? पुरे दिन बस लिखती रहती हो,जैसे कोई बहुत बड़ी लेखिका बन जाने वाली हो.....सास ने जोर से चिल्लाकर कहा|
विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
शांति पुरोहित
4 टिप्पणियां:
जैसे को तेसा.....बहुत सुंदर
sarthak sandsh preshit karti kahani .aabhar
रोशी आपका शुक्रिया
शिखा जी आपका शुक्रिया
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