साकेत खंडर हो रहा लंका का नव श्रृंगार है ,
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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लक्ष्मण -भरत सम भ्रात न सीता के सम हैं भार्या ,
मर्यादी अब पुरुष नहीं न शीलमयी नारियां ,
आनंद जीवन में नहीं हर ओर हाहाकार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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क्रोध ,लोभ ,माया-मोह संयम पे हावी हो गए ,
भरी तिजोरी पाप की पुण्य भिखारी भये ,
झूठ के समक्ष सत्य की सर्वत्र हार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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हैं कहाँ गुरु वशिष्ठ जो भरते संस्कार ,
हो रहे विद्यालयों में भी आज दुराचार ,
सदाचरण क्षत -विक्षत मन में चीत्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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दंड देगा कौन राजा बन गए खुद चोर हैं ,
लूटकर सबको मचाता खुद लुटेरा शोर है ,
है कोई भोला कहाँ हर कोई अब मक्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
शिखा कौशिक 'नूतन'
5 टिप्पणियां:
very right and nice .
nice
क्रोध ,लोभ ,माया-मोह संयम पे हावी हो गए
भरी तिजोरी पाप की पुण्य भिखारी भये ,
झूठ के समक्ष सत्य की सर्वत्र हार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
तमो प्रधान कलियुग का मतलब समझा गई ये रचना। बधाई सशक्त लेखन को।
तुलसी के पत्ते सूखे हैं और कैक्टस आज हरे हैं ,
आज राम को भूख लगी है रावण के भण्डार भरे हैं।
कोयला खाता आज आदमी चरागाह सब मरे पड़े हैं ,
सेकुलर चीं चीं चों चों करते भारत धर्मी अलग पड़े हैं।
aap sabhi ka hardik aabhar
बहुर सुन्दर प्रस्तुति
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