चाय की खाली प्याली चारपाई के नीचे रखते हुए चारपाई पर बैठी रमा ने उमा के कंधें पर हाथ रखते हुए कहा -'' सच कहूँ जीजी तुम ही बड़े भाग वाली हो ....ऐसी सेवाभावी बहू जो मिली है ....मेरी बहू ने तो मेरा जीना मुश्किल कर रखा है .मेरा कोई जानकर घर आ जाये तो चाय पिलाना दूर पानी को भी नहीं पूछती ...गलती मेरी ही है ...मैं बहू देखने गई तब दान-दहेज़ कितना मिलेगा इस पर ही ध्यान रहा ..बहू सेवा करेगी या नहीं ये सोचा ही नहीं .'' उमा रमा का हाथ कंधे से हटाकर अपनी हथेली में लेते हुए बोली -तुम्हारे सुभाष के ब्याह के तीन मास पीछे ही हुआ था मेरे विनोद का ब्याह .सुभाष के ब्याह में आये दान-दहेज़ के चर्चे पूरी बिरादरी में थे पर विनोद के पिता जी ने अपने मित्र की बेटी की सीरत देखकर उसे बहू बनाना तय कर दिया .बहुत झगड़ी थी मैं .समाज में थू थू होगी अपनी हैसियत से गिरकर ब्याह करने पर बस यही सोचकर दम पी लिए थे मैंने उनके ....पर उनका फैसला अटल था ....और कितना सही था ....ये तुम देख ही रही हो .चाय-पानी की बात छोडो विनोद के पिता जी को जब फ़ालिश पड़ा बहू ने जी जान से सेवा की .मुझे तक घिन्न आती थी पर बहू ने कभी उन्हें गंदे में न पड़ा रहने दिया .पड़े पड़े जख्म हो गए थे उन्हें ...बहू खुद जख्मों पर दवा लगाती .उनकी मौत पर विनोद से भी ज्यादा रोई थी .सच कहूँ दीपक लेकर भी ढूंढ ने निकल जाती तो ऐसी बहू न मिल पाती . मैं तो निश्चिन्त हूँ यदि बिस्तर पकड़ना भी पड़ गया तो मेरी बहू मुझे गंदे में न सड़ने देंगी .''...ये कहते-कहते उमा की आँख भर आई .रमा उदास होते हुए बोली -'' ...पर जीजी मैं तो भगवान् से यही मनाती हूँ हाथ-पैर चलते हुए ही चल बसूँ सुभाष के पिता जी की तरह ....अच्छा जीजी चलती हूँ .'' ये कहते हुए सीधे पल्ले की धोती पहने रमा चारपाई से उठकर पास रखी बेंत लेकर धीरे धीरे वहाँ से चल दी !
शिखा कौशिक 'नूतन'
4 टिप्पणियां:
बहुत सशक्त संदेश देती है यह प्रस्तुति दहेज़ खोरों को जो अपने लौंडे को नीलाम करते हैं।कर्तम सो भोगतम। अभिव्यक्ति और लहजा आंचलिकता लिए हुए। अर्थगर्भित।
उम्दा कहानी
उम्दा कहानी
सही बात है सूरत चार दिन अच्छी लगती है बाद में सीरत ही काम आती है ,सीरत अच्छी न हो तो खूबसूरत भी बदसूरत नजर आने लगती है ,बहुत सुन्दर शिक्षा प्रद कहानी
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