आज भी कई
होते चीरहरण
कहाँ हो कृष्ण
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रही चीखती
क्यों नहीं कोई आया
उसे बचाने
***
निर्ममता से
तार-तार इज्ज़त
करें वहशी
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हुआ वहशी
खो दी इंसानियत
क्यों आदमी ने
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तमाम भय
असुरक्षित हम
कैसा विकास
***
कैसी ये व्यथा
क्यों रहे जानवर
पढ़-लिख के
***
वामा होने की
कितनी ही दामिनी
भोगतीं सज़ा
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बेबस नारी
अजीब-सा माहौल
कैसा मखौल
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ओ रे मानव
कई युग बदले
हुआ ना सभ्य
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Dr. Sarika Mukesh
http://hindihaiku.blogspot.com
6 टिप्पणियां:
आपकी इस उत्कृष्ट रचना का प्रसारण कल रविवार, दिनांक 25/08/30 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी| कृपया पधारें |
साभार सूचनार्थ
उत्कृष्ट रचना! हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी हाइकु....
बहुत सटीक हाइकु
सटीक ... सामयिक हाइकू ...
स्पष्ट सन्देश लिए ...
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