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शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

मानव तुम ना हुए सभ्य




आज भी कई
होते चीरहरण
कहाँ हो कृष्ण
                ***
रही चीखती
क्यों नहीं कोई आया
उसे बचाने
                ***
निर्ममता से
तार-तार इज्ज़त
करें वहशी
                ***
हुआ वहशी
खो दी इंसानियत
क्यों आदमी ने
                ***
तमाम भय
असुरक्षित हम
कैसा विकास
                ***
कैसी ये व्यथा
क्यों रहे जानवर
पढ़-लिख के
                ***
वामा होने की
कितनी ही दामिनी
भोगतीं सज़ा
                ***
बेबस नारी
अजीब-सा माहौल
कैसा मखौल
                ***
ओ रे मानव
कई युग बदले
हुआ ना सभ्य
                ***


Dr. Sarika Mukesh
http://hindihaiku.blogspot.com

6 टिप्‍पणियां:

shalini rastogi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
shalini rastogi ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट रचना का प्रसारण कल रविवार, दिनांक 25/08/30 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी| कृपया पधारें |
साभार सूचनार्थ

बेनामी ने कहा…

उत्कृष्ट रचना! हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी हाइकु....

Onkar ने कहा…

बहुत सटीक हाइकु

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सटीक ... सामयिक हाइकू ...
स्पष्ट सन्देश लिए ...