आक्रोश का ज्वार
बन कर न रह जाए कहीं
मौसमी ज्वर
कहीं कम न हो जाए
तपिश इस ज्वाला की
है नारी अस्मिता का यज्ञ
दो आहुति
अपने आक्रोश की
प्रज्वलित रहे
जब तक कि
प्रचंड ज्वाला
न लील जाए
विकृत वीभत्स विचारों को
यह लहू जो खौल रहा
रगों में
उबाल में इसके
ठंडक न आने पाए
कुत्सित विकृतियाँ
बीमार दिमागों की
छिपती रहेंगी कब तक
कानून की ओट में
बेनकाब दरिंदगी का चेहरा
सरेआम कराया जाए
बन कर न रह जाए कहीं
मौसमी ज्वर
कहीं कम न हो जाए
तपिश इस ज्वाला की
है नारी अस्मिता का यज्ञ
दो आहुति
अपने आक्रोश की
प्रज्वलित रहे
जब तक कि
प्रचंड ज्वाला
न लील जाए
विकृत वीभत्स विचारों को
यह लहू जो खौल रहा
रगों में
उबाल में इसके
ठंडक न आने पाए
कुत्सित विकृतियाँ
बीमार दिमागों की
छिपती रहेंगी कब तक
कानून की ओट में
बेनकाब दरिंदगी का चेहरा
सरेआम कराया जाए
शालिनी रस्तोगी
12 टिप्पणियां:
सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्तिनसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले
आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
आक्रोश सुफल हो..
बहुत बहुत धन्यवाद शालिनी जी,अनिता जी एवं श्रीराम रॉय जी!
इस संवेदनशील रचना के लिए बधाई आपको
बहुत सुन्दर रचना ....
जीवन के सही रूप को दर्शाती
बहुत कहीं गहरे तक उतरती कविता ------बधाई
ये ज्वाला ठंडी ना होने पाए ,बहुत सशक्त सार्थक अभिव्यक्ति हेतु बधाई शालिनी जी
रचना के अनुमोदन के लिए आप सभी का ह्रदय से आभार !
सहमत हूं ... दरिंदों को बेनकाब करना जरूरी है ... अभी तक पहचान सार्वजनिक होनी चाहिए ...
सशक्त आक्रोश ...!!
धन्यवाद दिगंबर जी एवं हरकीरत जी!
बिलकुल सही कहा बहुत अच्छा लिखा बधाई आपको ये आक्रोश यूँ ही कायम रहे
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