महिला सशक्तिकरण का दौर चल रहा है .महिलाएं सशक्त हो रही हैं .सभी क्षेत्रों में महिलाएं अपना परचम लहरा रही हैं .२०१२ की शुरुआत ज्योतिषियों के आकलन ''शुक्र ग्रह का प्रभुत्व रहेगा ''फलस्वरूप महिलाएं ,जो कि शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करती हैं ,प्रभावशाली होंगी .सारे विश्व में दिखाई भी दिया कहीं महिला पहली बार राष्ट्रपति हो रही थी तो कहीं प्रधानमंत्री बन रही थी .अरब जैसे देश से पहली बार महिला एथलीट ओलम्पिक में हिस्सा ले रही थी .सुनीता विलियम्स के रूप में महिला दूसरी बार अन्तरिक्ष में जा रही थी और पता नहीं क्या क्या .चारों ओर महिलाओं की सफ़लता के गुणगान गाये जा रहे थे कि एकाएक ढोल बजते बजते थम गए ,,पैर ख़ुशी में नाचते नाचते रुक गए ,आँखें फटी की फटी रह गयी और कान के परदे सुनने में सक्षम होते हुए भी बहरे होने का ही मन कर गया जब वास्तविकता से दो चार होना पड़ा और वास्तविकता यही थी कि महिला होना ,लड़की होना एक अभिशाप है .सही लगी अपने बड़ों की ,समाज की बातें जो लड़की के पैदा होने पर की जाती हैं .सही लगी वो हरकत जिसका अंजाम कन्या भ्रूण हत्या होता है .जिस जिंदगी को इस दुष्ट दुनिया में जीने से पहले ही घोट दिया जाये जिस पंछी के पर उड़ने से पहले ही काट दिया जाएँ उसकी तमन्ना भी कौन करेगा ,वह इस दुनिया में आने की ख्वाहिश ही क्यों करेगा ?
दिल्ली में फिजियोथेरेपिस्ट मासूम छात्रा के साथ जिस बर्बरता से बलात्कार की घटना को अंजाम दिया गया उससे शरीर में एक सिहरन सी पैदा हो गयी .ये ऐसा मामला था जो सुर्ख़ियों में आ गया और इसलिए इसके लिए जनता जनार्दन उठ खड़ी हुई ,वही जनता जो एक घंटे तक सड़क पर सहायता को पुकारती उस मासूम की मदद को आगे न बढ़ सकी ,वही जनता जो रोज ये घटनाएँ अपने आस पास देखती है किन्तु अनदेखा कर आगे बढ़ जाती है .ये जनता के ही हाल हैं जो एक भुगत भोगी कहती है कि ''गली में उसे दो आदमियों ने कुछ गलत कहा और वे उसके जानकर ,उसके गहरे हमदर्द ऊपर उसकी आवाज को सुनकर भी पहचान कर भी खिड़की बंद कर अन्दर बैठ गए .''ये जनता ही है जो कि एक आदमी जो गरीब तबके का है उसकी बेटी को अमीर तबके के लोगों द्वारा छेड़खानी किये जाने पर पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से रोकती है और सुलह करने का दबाव बनाती है .ये जनता ही है जो कि एक ५५ वर्ष की महिला को एक २५ साल के लड़के से जो कि प्रत्यक्ष रूप में एक चोर व् अनाचारी है ,पिटते देखती है न उसकी सहायतार्थ आगे आती है और न ही गवाही को तैयार होती है क्योंकि वह महिला अकेली बेसहारा है किसी गलत काम में किसी का साथ नहीं देती .ये जनता आज एक महिला के लिए इंसाफ की मांग कर रही है जबकि महिला को सताने वाली भी जनता ही है और ऐसा नहीं कि जनता में सिर्फ पुरुष ही हैं महिलाएं भी हैं और महिला होकर महिला पर तंज कसने में आगे भी महिलाएं ही हैं .
महिलाओं में करुणा और दया होती है सुना भी है और महसूस भी किया है किन्तु ईर्ष्या का जो ज्वालामुखी महिला में नारी में होता है वह भी देखा है ,नहीं बढ़ते देख सकती किसी अन्य महिला को अपने से आगे और इसलिए उसकी राहों में कांटे भी बो सकती है और शरीर में अपने और उसके आग भी लगा सकती है .स्वयं इस पुरुष सत्तात्मक समाज के अत्याचार झेलने के बावजूद उसे कमी नज़र आती है महिला में ही ,कि यदि फलां लड़की के साथ कोई गलत हरकत हुई है तो दोष उसी का होगा और इसलिए आज तक पुरुष वर्चस्व बना हुआ है .क्यों ताकना पड़ता है महिलाओं को सहायता के लिए पुरुष के मुख की ओर और क्यों एक लड़की स्वयं २०-२५ साल की होते हुए भी ४-५ साल के लड़के के साथ कहीं जाकर सुरक्षित महसूस करती है .प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती ,दिल्ली गैंगरेप घटनाक्रम के समय लड़की के साथ लड़का भी था ,उससे बड़ा भी था कहाँ बचा पाया उसे अपने ही वर्ग के पुरुष रुपी दरिंदों से .
ऐसे में यदि महिलाओं को स्वयं की स्थिति सुदृढ़ करनी है तो सबसे पहले अपने दिमाग से ये नितांत शरीर पर आधारित इज्ज़त जैसी व्यर्थ की बातें निकालनी होंगी जिसे शिकार समझ पुरुष अपने शरीर का इस्तेमाल हथियार की तरह करता है और इस तरह सारे में ये धारणा बलवती करता है कि पीड़ित नारी का शरीर दूषित हो गया है जबकि दूषित है वह मनोवृति जो महज शरीर से किसी व्यक्ति का आकलन करती है .नारी महज एक शरीर नहीं है और यह मनोवृति नारी को स्वयं बनानी होगी .गलत काम जो पुरुष करता है उसकी मनोवृति गलत उसका शरीर दूषित ये धारणा ही सबको अपनानी होगी .नारी को नारी का साथ देने को ,उसके साथ हुए अन्याय अत्याचार का बदला लेने को एकजुट होना होगा ,प्रत्येक नारी को ,दूसरी नारी को जो आज झेलना पड रहा है उसे अपना भी कल सोच उस स्थिति का दमन करने को सबल बनना पड़ेगा .बलात्कार जैसी घटनाएँ नारी को तोड़ने के लिए या उसके परिजनों पर कलंक लगाने के लिए की जाती हैं इसे मात्र एक अपराध के दायरे में लाना होगा और अपनी इज्ज़त सम्मान के लिए नारी को शरीर का सहारा छोड़ना होगा ..
कवि रैदास कह गए है -
''मन चंगा तो कठौते में गंगा .''
तो जिसका मन पवित्र है उसका शरीर दूषित हो ही नही सकता .ये मात्र एक अपराध है और अपराधी को कानून से सजा दिलाने के लिए महिलाओं को स्वयं को मजबूत करना होगा तभी महिला सशक्तिकरण वास्तव में हो सकता है .यदि महिलाएं ऐसे नहीं कर सकती तो वह कभी आन्दोलन करने वाली ,तो कभी मूक दर्शक बन तमाशा देखने वाली जनता की जामत में ही शामिल हो सकती हैं इससे बढ़कर कुछ नहीं .अब महिलाओं को इस स्थिति पर स्वयं ही विचार करना होगा .
शालिनी कौशिक
4 टिप्पणियां:
sahi baat hai.
purush bhi kewal jeb nahi hai.
बहुत अच्छा व सार्थक लेख ... वास्तव में इस दिशा में और गहन विमर्श की आवश्यकता है...
विचारणीय बिंदु...... सार्थक लेख
बहुत प्रभाव शाली आलेख लिखा है जिसकी आज के वक्त जरूरत भी है बहुत बहुत बधाई शालिनी जी
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