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शनिवार, 7 मार्च 2015

गर्व करो खुद पर कि स्त्री हो तुम !

चुप क्यों रहती हो तुम
घाव क्यों सहती हो तो
क्या दर्द नहीं होता तुम्हे
क्या कोई तकलीफ नहीं होती
आखिर किस मिट्टी की बनी हो तुम
या सिर्फ मिट्टी की ही बनी हो तुम
या इस देह के भीतर कोई आत्मा भी है
क्या वो तुम्हे धिक्कारती नहीं
क्या सम्वेदनाएँ तुम्हारी
कभी तुम्हे खुद के लिये पुकारती नहीं
जानती हो कि जुल्म करने वाले से बड़ा गुनाहगार
जुल्म सहने वाला होता है
फिर क्यों जुल्म किसी के सहती हो तुम
कुछ तो बोलो
लब तो खोलो
बोलो कि तुम मात्र एक देह नहीं हो
दिल है तुम्हारे सीने में जो धड़कता है
एक आत्मा बसती तुममे भी
बोलो कि दर्द तुम्हे भी होता है
जब बिन बात सताई जाती हो
बेवजह कोख में मिटाई जाती हो
जब दहेज की आग में जलाई जाती हो
हवस भरी गिद्ध नजरे
जब तुम्हारे जिस्म को भेदती है
वासना के पंजो तले
जब देह से लेकर आत्मा तक रौंदी जाती है
और उँगलियाँ जमाने की गुनाहगारो की बजाय
तुम्हारे ही चरित्र पर उठाई जाती है
तब किन किन तकलीफों से गुजरती हो तुम
ये सब क्यों नहीं कहती हो तुम
अरे क्यों चुप रहती हो तुम
अरे हाँ बोलोगी भी कैसे
लब खोलोगी कैसे
बचपन से तो तुमने ये ही सीखा है
शर्म स्त्री का गहना है
कोई कुछ भी कहे कुछ भी करे
तुम्हे अपनी मर्यादा में रहना है
संस्कारो की बेडियाँ डाले
घुट घुट के मर जाना
पर आवाज मत उठाना
वरना लोग क्या कहेंगे
क्या सोचेंगे क्या समझेंगे
अरे कोई कुछ नही सोचता तुम्हारे बारे में 
न ही कोई तुम्हे कुछ समझता है
क्योकि खुद को कुछ नही समझती हो तुम
कभी देवी बनाकर मंदिरों में बिठाई गयी
कभी कोठो पर नचाई गयी
कभी डायन कहकर
सरेआम निर्वस्त्र घुमाई गयी
जब चाहा इन ज़मीं के देवताओ ने
व्यक्तित्व से तुम्हारे खिलवाड़ किया
स्वार्थ के लिये जैसे चाहा रूप तुम्हारा गढ़ दिया
और उसे ही अपना मुकद्दर मानबैठी हो तुम
माँ हो बेटी हो
बहन हो बीवी हो
हर रिश्ते तुम्हे याद रहते है
पर तुम्हारा खुद से भी है इक रिश्ता
ये क्यों भूल जाती हो तुम
इन सबसे परे खुद का भी
इक अस्तित्व है तुम्हारा
कि इन सबसे जुदा
इक व्यक्तित्व है तुम्हारा
 आखिर किस बात की कमी है तुममे 

क्यों खुद को औरो से हीन समझती हो तुम 
महसूस तो करो जरा कि देखो 
दुनिया के इस चमन अपने हुनर की खुश्बू लिये 
किस कदर खिलती हो तुम
अरे पहले ढूंढो तो खुद को फिर देखो
 धरती से लेकर अंतरिक्ष तक 
कामयाबी की दास्ताँ लिखती हुई मिलती हो तुम
रचा है तुम्हे भी खुदा ने अपने हाथो से
कि उस ईश्वर की सबसे खूबसूरत कृति हो तुम
गर्व करो खुद पर कि स्त्री हो तुम!

शिल्पा भारतीय"अभिव्यक्ति"

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2015) को "मेरी कहानी,...आँखों में पानी" { चर्चा अंक-1912 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

बेनामी ने कहा…

बहुत ही प्रेरणादायक रचना।

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बेह्तरीन अभिव्यक्ति

Shikha Kaushik ने कहा…

very relevant post .thanks to share with us .