थोड़े आंसू बचा के रखना ,
दर्द दबा लेना इस दिल में ,
नहीं आखिरी गम ये अपना ,
सपने अभी और टूटेंगे !
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किसे मनाएं मिन्नत कर के ,
कब तक मांगें रोज़ दुआएं ,
मौत के आगे बेबस होकर ,
अपने अभी कई छूटेंगें !
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नए ज़ख्म मिलते जाते हैं ,
पिछले भरते कहाँ यहाँ !
आहें रख सँभाल के अपनी ,
टीसों पर कब तक चीखेँगेँ !
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ज़िंदा रहना है तो सुन लो ,
दिल को अपने सख़्त बना लो ,
हर एक हादसे पर ये बोलो ,
झुककर घुटने ना टेकेंगें !
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खिल्ली खूब उड़ा ले मौत ,
हमको भी आता है जीना ,
जब तक साँस चलेगी अपनी ,
जीने की मौज़े लूटेंगें !
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घुट-घुट कर न रोज़ मरेँगेँ ,
गम को नाक चिढ़ाएंगें ,
भले ज़िंदगी रूठे हमसे
हरगिज़ न पर हम रूठेंगें !
शिखा कौशिक 'नूतन'
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-12-2014) को "कौन सी दस्तक" (चर्चा-1835) पर भी होगी।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सलाम जीजिविषा को।
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