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बुधवार, 3 दिसंबर 2014

''दलित देवो भव:''-कहानी



घर का सैप्टिक टैंक लबालब भर गया था .सारू का दिमाग बहुत परेशान था .कोई सफाईकर्मी नहीं मिल पा रहा था .सैप्टिक टैंक घर के भीतर ऐसी जगह पर था जहाँ से मशीन द्वारा उसकी सफाई संभव न  थी .सारू को याद आया कि उसके दोस्त अजय की जानकारी में ऐसे सफाईकर्मी हैं जो सैप्टिक टैंक की सफाई का काम करते हैं .उसने अजय को दोपहर में फोन मिलाया तो अजय ने उसे आश्वासन दिया कि वो अपनी जानकारी के सफाईकर्मियों को उसके घर सैप्टिक टैंक की सफाई हेतु भेज देगा .सारू की चिंता कुछ कम हुई .
                      शाम होते होते तीन सफाईकर्मी सारू के घर पर आ पहुंचें ..सैप्टिक टैंक का ढक्कन हटाकर  एक  सफाईकर्मी ने देखा तो सैप्टिक टैंक मल से भरा पड़ा था .झानू  नाम के उस सफाईकर्मी  ने सारू को सैप्टिक टैंक दिखाते हुए कहा -'' बाऊ जी  तीन हज़ार रूपये लगेंगे   .इसमें तो मलबा ही मलबा भरा पड़ा है .उठाकर  बाहर फेंकना होगा सड़क पर .पानी तो कतई नहीं है जो नाली में बहा देते ..'' झानू की बात पर सहमति जताते हुए सारू बोला -''ठीक है भाई ...पर इसे कल साफ़ कर दो .....दुर्गन्ध के कारण घर में रहना मुश्किल हो गया है .'' झानू सारू को विश्वास दिलाता हुआ बोला -'' सवेरे ही आ लेंगे हम अपनी बाल्टियां लेकर ....कुछ एडवांस मिल जाता तो ...'' झानू के ये  कहते ही सारू ने पेंट की अगली दायीं जेब में रखा अपना पर्स निकला और पांच सौ का नोट झानू के हाथ में थमा दिया .तीनों सफाईकर्मी हाथ उठाकर माथे के पास लेकर सारू को सलाम करते हुए वहां से चले गए .
सारू ने उनके जाने के बाद अजय को फोन मिला और सारी बात बता दी .अजय ने सारी बात सुनकर कहा -''पता है तुझे पांच सौ रूपये क्यों ले गए झानू हर एडवांस में ....रात को दारू पीकर पड़ जायेंगें साले .'' सारू अजय की बात का जवाब देते हुए बोला -'' दारू पीकर न पड़ें  तो और क्या करें ?ऐसा गन्दा  काम ये ही कर रहे  हैं ...कोई दुनिया की सारी दौलत भी तुम्हें दे दे तो भी क्या तुम ये काम कर पाओगे ? '' सारू के इस सवाल पर अजय सहमति देता हुआ बोला -'' हां सारू ये बात तो हैं ..तू सच कह रहा हैं ..जानता हैं झानू देवी के मंदिर में ढोल बजाता हैं और एक पैसा तक नहीं लेता .चल कल को काम हो जाये तब फोन कर के बता देना .'' ये कहकर अजय ने फोन काट दिया .
 अगले दिन सुबह नौ बजे करीब झानू और उसके दोनों साथ अपनी बाल्टियां लेकर सैप्टिक टैंक की सफाई हेतु सारू के घर आ पहुंचें .सैप्टिक टैंक के चारों ढक्कन हटते ही जहरीली गैसों की ऐसी दुर्गन्ध फैली कि सारू का वहां खड़ा रहना मुश्किल हो गया .झानू  सारू को वहां से जाने के लिए कहता हुआ बोला -'' बाऊ जी आप जाओ..जब काम हो जायेगा मैं आपको बुला लूँगा .'' झानू के ये कहने पर सारू एक कमरे में चला गया .झानू ने एक बांस से सैप्टिक टैंक की गहराई नापी और अपने  साथियों से बोला -एक को इसमें  उतरना होगा .झानू के ये कहते ही उसका एक साथी पेंट को घुटनों तक मोड़ कर उसमें उतर गया .लगभग दो घंटे के कठोर परिश्रम से झानू और उसके साथियों ने सैप्टिक टैंक की सफाई कर दी .सफाई के बाद झानू ने सारू को आवाज़  लगाई -'' बाऊ जी अब आ जाइये .'' सारू कमरे से निकल कर वहां पहुंचा .सैप्टिक टैंक साफ़ हो चूका था .सैप्टिक टैंक में उतरे हुए सफाईकर्मी ने सैप्टिक टैंक में आये हुए पाइपों में हाथ घुसाकर दिखाया कि पाइप पूरी तरह से खुले हुए हैं .सारू के मन में आया -'' सफाईकर्मियों को विशेष प्रकार के दस्ताने व्  मुंह-नाक पर लगाने के लिए सेफ्टी कैप दिए  जाने चाहियें ताकि वे  इस खतरनाक काम को करते हुए अपने स्वास्थ्य के साथ कोई खिलवाड़  न करें पर इस सब पर ध्यान ही किसका है ?'' सारू के ये सोचते हुए ही झानू बोला -''बाऊ जी अब हमारी बाल्टियां व् हमारे हाथ-पैर साफ़ पानी से धुलवा दीजिये .'' सारू ने पास ही भरी एक टंकी से मग्घे द्वारा पहले बाल्टियां धुलवाई फिर  एक एक कर तीनों के हाथ पैर धुलवाए .

उनके हाथ पैर धुलवाते हुए उनके चेहरे पर दीन-हीन भाव देखकर  सारू विचारमग्न हो उठा -'' ये झानू और उसके साथी सामान्य जन नहीं हैं ...ये धरती पर भगवान हैं ..जैसे भगवान शिव ने समुन्द्र-मंथन के समय निकले कालकूट महाविष को पीकर पूरे ब्रह्माण्ड को उसके महाघातक जहरीले कुप्रभाव से बचाया था ऐसे ही ये शिवदूत हमें मल-मूत्र के घातक जहरीली गैसों के कुप्रभावों से बचाते हैं .ये क्यों दीन भाव चेहरे पर लिए रहते हैं ?ये तो हमारे पूज्य हैं !इनके आगे हम सिर उठाकर बात करने लायक भी कहाँ हैं !इनके सामने तो हमें हाथ जोड़कर खड़े रहना चाहिए .ये तो जन्म देने वाली माँ से भी बढ़कर हैं .वो भी अपने जने बच्चे के ही पोतड़े धोती है पर ये ..ये तो पूरे समाज की गंदगी साफ़ करते हैं ..सैप्टिक टैंक के भीतर गंदगी में घुसे सफाईकर्मी को देखकर जब मैंने आँखें बंद की तब मुझे शमशान  में चिता की राख के बीच  तांडव करते काल-भैरव नज़र आये ......हां ये ही भगवान को सबसे ज्यादा प्रिय होंगें और हम इनके ही मंदिरों में प्रवेश पर रोक लगाते हैं ! इनके हाथ से हमारा हाथ छू  जाये तो घृणा करते हैं ...मुझे अच्छी तरह याद है दादी किसी भी सफाईकर्मी को कुछ देते समय इतनी एहतियात बरतती थी कि उनके हाथ की   ऊँगली सफाईकर्मी की ऊँगली से छु भर न जाये और अगर  गलती से मैं किसी ऐसी चीज़ को छेड़ देता जिसे किसी सफाईकर्मी ने छेड़ा हो तो मुझे ''चूड़े का हो गया '' कहकर चिढ़ाया  जाता .कितने नीच हैं हम !सैप्टिक टैंक के भीतर घुसे झानू के साथी को देखकर कितनी लज्जा आ रही थी खुद पर ..क्या दे देते हैं हम ..हज़ार..दो हज़ार..तीन हज़ार ..पर ये देखो अपने शरीर पर झेलते हैं जहरीली गैसों को  ..गंदगी को और हद तो ये है कि तब भी इन्हें नीच समझा जाता है और ये भी खुद को दीन-हीन समझते हैं .मानव मानव में इतना भेद पैदा करने वाले विद्वान पूर्वजों ने क्या कभी सोचा कि यदि ये गंदगी की सफाई न करते तो चारों ओर फैली दुर्गन्ध के बीच वे वेद-पाठ कैसे कर पाते ?इनके शरीर से आने वाली दुर्गन्ध पर नाक से कपडे ढँक लेने वाले समाज ने कभी सोचा कि इस दुर्गन्ध के जिम्मेदार तुम ही श्रेष्ठ जाति के जन हो ! जब तुम इनके प्रति घृणा का प्रदर्शन करते हो तब एक बार भी सोचते हो कि जिन पाख़ानों में तुम मल-मूत्र का विसर्जन कर  ,थूककर बाहर निकल आते हो उन्ही पाख़ानों को तुम्हारे जैसे मानव अपना कार्यक्षेत्र समझकर साफ़ करते हैं .घृणा तो उन्हें करनी चाहिए तुमसे ! गंदगी की सफाई कर उसे स्वच्छ बनाने वाले घृणा नहीं पूजा के अधिकारी हैं !'' सारू ने ऐसे ही निर्मल भावों से झानू और उसके साथियों के हाथ-पैर धुलवाले .और उसके पश्चात उनके शेष पच्चीस सौ रूपये देकर हाथ जोड़कर उन्हें विदा किया .घर से विदा हुए उन तीनों को जाते देखकर सारू को लगा जैसे त्रिदेव आज उसके घर आये थे और न केवल सैप्टिक टैंक की सफाई हुई थी आज बल्कि उसका मन भी पहले से ज्यादा निर्मल हो गया था .

शिखा कौशिक 'नूतन'

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