होगी सुबह ,
दिनकर उदित होगा पुनः ,
निज रथ पे हो सवार !
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हर लेगा तम ,
होगा सुगम ,
जीवन का सब व्यापार !
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छोडो न आशा ,
हो व्यथित ,
किंचित करो विचार !
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मानव हो तुम ,
निज बुद्धि -बल की,
तेज करो धार !
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गिर कर उठो ,
उठकर बढ़ो ,
हो तीव्र नित रफ़्तार !
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होकर हताश ,
यूँ निराश ,
मान लो मत हार !
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तेरी धरा ,
तेरा गगन ,
सृष्टि का कर श्रृंगार !
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दानवी बाधा कुचल ,
ब्रह्माण्ड में हो अब सकल ,
मानव की जय -जयकार !
शिखा कौशिक 'नूतन '
2 टिप्पणियां:
बहुत खूब. बधाई.
अत्यंत ऊर्जादायी रचना !!!
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