मत बहको इतना कवि-कलम,
मर्यादित हो करना वर्णन ,
श्रृंगार -भाव की आड़ में तुम ,
नारी को मत यूँ करो नग्न !
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कामदेव के दास नहीं ,
तुम मात शारदा-तनय हो ,
न हो प्रधानता रज-तम की ,
अब सत्व-गुणों की प्रलय हो !
अनुशासित होकर करो सृजन !
नारी को मत यूँ करो नग्न !
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नारी-तन के भीतर जो उर ,
उसमें भावों का अर्णव है ,
कुच-केश-कटि-नयनों से बढ़ ,
उन भावों में आकर्षण है ,
नारी का मन है सुन्दरतम !
नारी को मत यूँ करो नग्न !
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श्रंगारिक रचना एक मात्र ,
कवियों का कर्म न रह जाये ,
नख-शिख वर्णन में डूब कहीं ,
न नारी -गरिमा मिट जाये ,
मत करना ऐसा कभी यत्न !
नारी को मत यूँ करो नग्न !
शिखा कौशिक 'नूतन'
4 टिप्पणियां:
गंगा-स्नान/नानक-जयन्ती(कार्त्तिक-पूर्णिमा) की सभी मित्रों को वधाई एवं तन-मन-रूह की शुद्धि हेतु मंगल कामना !
यह बहुत ही आवश्यक संदेश है !
badhai
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति.... आभार।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति.... आभार।
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