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बुधवार, 4 जून 2014

वृक्ष की पुकार !

वृक्ष की पुकार !





वृक्ष करता है पुकार 
न जाने कितनी बार ?
हे मानव !तुमने इस निर्मम कुल्हाड़ी से 
मुझ  पर किया वार .


अब तक सहता रहा मैं 
तुम्हारा अत्याचार                           

तुम करते रहे मुझ से नफरत 
मैं करता रहा तुम से प्यार .

मैं देता तुम्हे ऑक्सीजन 
जिससे तुम्हे मिलता जीवन 
हटा कर प्रदूषण 
स्वच्छ बनता पर्यावरण .

यदि मैं न होता तो 
होती  ये  भूमि  बेकार  
तब  होती न फसल  
और  न होता व्यापार  

इस देश की जनसँख्या है अपार 
उसके लिए लाते कहाँ से खाद्यान 
का भंडार ?

'कहते हैं प्रकृति माँ है !
और इन्सान उसका बेटा है '
माँ सदा देती है प्यार 
पर बेटा करता उसी पर अत्याचार !

वृक्ष आगे बताता है 
क्यों वह हरा सोना कहलाता है?

मिटटी का कटाव कम कर 
उपजाऊपन  बढाता हूँ ;

वायु मंडल को नम कर 
वर्षा भी करवाता हूँ ;

औषधियां देकर 
राष्ट्रीय आय बढाता हूँ ;
लकड़ी देकर अनेक व्यापार 
चलवाता हूँ , 

बेंत;चन्दन,कत्था   ,गोंद  
इनसे चलते  हैं जो  व्यापार 
वे  ही  तो है देश की प्रगति  
का आधार  .

बाढ़ जब आती है 
सारा पानी पी जाता हूँ ;
देश को लाखों की हानि
 से बचाता हूँ .


भूमि के अन्दर का 
जल  -स्तर   ऊंचा  करता जाता हूँ 
रेगिस्तान के विस्तार पर 
मैं ही तो रोक लगाता   हूँ .

ईधन,फल -फूल ;चारा 
मैं ही तो देता हूँ 
लेकिन कभी तुमसे 
कुछ नहीं लेता हूँ 

 
यद्  रख मानव यदि तू 
मुझको काटता जायेगा 
तो तू अपने जीवन को भी 
नहीं बचा पायेगा ;
ऑक्सीजन;फल-फूल;औषधियां 
कहाँ से लायेगा ?

किससे फर्नीचर ;स्लीपर 
रेल के डिब्बे बनाएगा ?

न जाने कितने उद्योग 
मुझ पर हैं आधारित ?
उन्हें कैसे  चलाएगा ?
ये सब जुटाते-जुटाते 
क्या तू अपना अस्तित्व 
बचा पायेगा ?

कार्बन डाई ऑक्साइड  का काला बादल
जब आकाश में छाएगा 
तब हे मानव ! तुझे अपना 
काल स्पष्ट नज़र आएगा . 

 तुम्हारी होने वाली 
संतानों में कोई 
देख;सुन;चल नहीं पायेगा
उस समय उनके लिए 
वस्त्र,आहार 
कहाँ से लायेगा ?


हे मानव !मुझे अपने नष्ट 
होने का डर नहीं है ,
मुझे डर है कि मेरे 
नष्ट होने से 
तू भी नष्ट हो जायेगा !
तू भी नष्ट हो जायेगा !
तू भी नष्ट हो जायेगा !

                            शिखा कौशिक 
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