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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

एक अर्ज है तुझसे!

एक अर्ज है तुझसे  ऐ माली! 
नन्ही सी कली है जो तेरे उपवन की
तोड़ ना  देना इसे  डाली से
वरना खिलने से पहले ये मुरझा जायेगी 
इस  नन्ही कली को तुम खिलने देना  
रंग फिजा का इसमें  घुलने देना
देखना फूल बन खुश्बू से अपनी एक दिन
जीवन -उपवन तेरा ये महकायेगी|
एक अर्ज है तुझसे ऐ माली..!

नन्ही सी गौरैया है जो तेरे आँगन की
चहक-चहक आँगन में इसे  फुदकने देना 
इसके सपनो को तुम अपने हौसलों के पंख देना
आसमां से चुनने इसे इन्द्रधनुष के रंग  देना
देखना सतरंगी रंगों से  फिर एक  दिन
जीवन -आँगन तेरा ये रंग जायेगी|
एक अर्ज है तुझसे ऐ माली!

है पूछती अभिव्यक्ति ये मेरे अंतर्मन की 
जब  बेटी माँ का प्रतिरूप पिता का अंश है 
फिर  अपनी ही लाडली से उन्हें 
इतना  क्यों रंज है!

शिल्पा भारतीय "अभिव्यक्ति"(११.१०.१२)

2 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

सुंदर संदेश देती भाव पूर्ण रचना

Shikha Kaushik ने कहा…

फिर अपनी ही लाडली से उन्हें
इतना क्यों रंज है!
yahi to karodon ka prashn hai par javab ek bhi nahi !sarthak post ke sath aapka is blog par shubhgaman huaa hai .aabhar