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सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

सच को बेपर्दा होने दो !


अब डरो नहीं अंजाम से तुम
जो होना है वो होने दो ,
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
................................................
सच नहीं किसी की बेग़म है
जो रहे सात पर्दों में छिप ,
है नहीं किसी की लौंडी ये
जो हुक्म बजाये रहकर चुप ,
खामोश न रह अब खोल ले लब
सच्चाई इनको कहने दे !
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
..................................
घुट घुट कर अब सांसे न लो
खुलकर हुंकार भरो प्यारो ,
सिर कलम आज हो जाने दो
पर झुको नहीं हरगिज़ यारो ,
ज़ुल्म मिटाने को दिल में
आक्रोश का तांडव होने दो !
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
..................................
ऊँचा रुतबा ,श्रद्धा-भक्ति ,
लालच व् भय की बंदूके ,
सच के सीने पर तनी हुई
धमकाती मद की मय पी के ,
मर मिटने को तैयार रहो
शर्मिंदा झूठ को होने दो ,
हो जाये क़त्ल भले ही हम
सच को बेपर्दा होने दो !
शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

फिर हुई मुलाकात

  'क्या वक्त आया है,रिटायर जिला-शिक्षा अधिकारी को अब टीचर नहीं पहचानता है | मैडम शर्मा ने ये मैडम माथुर को नहीं कहा,पर मन ही मन सोच रही है |'जब वो कैमेस्ट्री की टीचर माथुर के पास अपनी पोती रश्मि को टयूसन पढ़ाने की बात करने को गयी |'
                               'क्या आप अपने तीन ग्रुप मे एक और, लड़की को नहीं पढ़ा सकती,ये तो बड़ी हैरानी की बात है|...आपसे इस जवाब की अपेक्षा कतई नहीं थी |'मैडम शर्मा ने कहा |
                                 'अब आपसे क्या कहूँ मैडम ,टाइम होता तो आपको निराश नहीं करती | स्कूल से आने के बाद घर की,बच्चो की जिम्मेदारी,पूरी करने के बाद ये तीन ग्रुप को मुश्किल से पढ़ा पाती हूँ | और, एक लड़की की जिम्मेदारी नहीं ले सकती |'मैडम माथुर ने अपनी सफाई दे दी और चुप होगयी |
                                     'आपका कहना अपनी जगह पर बिलकुल सही है,पर मै भी, अपनी विवशता के कारण आपके पास आई| मेरी अब वृद्धा अवस्था है |.....रोग ने जकड़ लिया है | कुछ समय पहले दिल का दौरा पढ़ा तो डॉ. ने आराम करने को बोल दिया | नहीं तो मै आपको तकलीफ देने नहीं आती |' खैर,जाने दो टाइम-टाइम की बात है,मेरी जगह अभी आपका कोई परिचित होता तो ,टाइम का बहाना बना कर टाल देती आप ?
                                   थैंक्स टॉक टू मी,और वर्दधा अपनी पोती का हाथ पकड कर धीरे-धीरे कमरे से बाहर आ गयी |
                                    लम्बा-गोरा,पतला शरीर ,चौड़ा ललाट,चेहरे पर गजब का तेज,मैडम शर्मा अपनी पोती के साथ आकर गाड़ी मे बैठ कर चली गयी |
                                      घर आकर थकान के कारण पलंग पर तकिये के सहारे लेट गयी | विचारो की श्रंखला शुरू हो गयी |अपने ज़माने की मशहूर कैमेस्ट्री की टीचर,मिस शाह ने बी. एस. सी. किया ऍम.एस. सी.किया | पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं होने से जल्दी ही सरकारी टीचर की नौकरी करनी पड़ी | सपना तो कॉलेज लेक्चरर बनने का था | पर अगर कोई किसी चीज को पाने की ठान ले तो पाकर रहता है | मिस शाह ने कड़ी मेहनत करके ''लोक सेवा आयोग'' से फर्स्ट ग्रेड परीक्षा पास करी और स्कूल लेक्चरर बन गयी |
                            स्कूल मे एक-एक लड़की को कैमेस्ट्री समझाती और सवालों का हल करती थी | दिन भर वो अपने घर मे भी लडकियों को पढने को बुलाती थी | जो लडकिया पढने मे कमजोर होती उन पर तो विशेष ध्यान देती | लडकिया भी निसंकोच मैडम के घर पढने के लिए जाती थी | किसी से कोई पैसा नहीं लेती | विधा-दान करना ठीक समझती,बजाय विधा को बेचने |
                              उन्ही दिनों उसके लिए लड़के की तलाश भी होने लगी | वो अभी शादी नहीं करना चाहती थी ,पर माता-पिता के आग्रह को टाल भी नहीं सकती थी | और वन-विभाग के फारेस्ट-अधिकारी मिस्टर शर्मा के साथ उसकी शादी हो गयी |अब वो मिस शाह से मिसेज शर्मा बन गयी |
                               जहाँ भी जिस भी स्कूल मे उसकी पोस्टिंग हुई,वहां लडकियों की सबसे अच्छी टीचर बन कर रही | बड़ी कुशलता के साथ पढ़ाती थी | अपनी मेहनत के कारण उसने खूब नाम कमाया |अब वो सीनियर स्कूल की प्रिंसिपल है | हर साल उसके स्कूल की लडकियों ने राज्य मे पोजीशन हासिल करी| साथ ही स्कूल की अन्य गतिविधियों मे भी लडकियों ने अपना और स्कूल का नाम रौशन किया | अंत मे मैडम शर्मा प्रमोशन लेते-लेते जिला-शिक्षा अधिकारी की पोस्ट से रिटायर हुई |
                          अब ढलती उम्र मे अपने परिवार के साथ सुख-चैन का जीवन अपने अपनों के साथ बसर कर रही है | एक पुत्र- और एक पुत्री,पति बस यही उनका परिवार;पुत्री अपने ससुराल और पुत्र अपने परिवार के साथ ही रहता है | एक पौत्र-पौत्री है जो इनकी आँखों के तारे,इनके जीने का सुखद अहसास भी है | पुत्र अकाउंटेंट है| पुत्र-वधु कुशल गृहणी के साथ एक अच्छी बहु,पत्नी और माँ है |
                         पौत्री रश्मि अपनी दादी से ही पढना चाहती थी | अपनी तकलीफ के कारण अभी नहीं पढ़ा सकती इसलिए उसकी स्कूल की टीचर के पास बात करने गयी | पर सब बेकार ! रश्मि ने कहा 'आप कब तक ठीक होगी?' 'क्या बताऊ , बेटा डॉ . ने और, एक महिना आराम करने को कहा है | तब तक तुम रुक जाओ फिर मै सारा कोर्स करवा दूंगी |' मिसेज शर्मा ने कहा | ' पलंग पर लेटी है मिसेज शर्मा, और सोच रही है कि मैंने पहले ही कहा था बेटे से कि अब रिटायर होने के बाद कौन पहचानेगा मुझे ! विचारो की श्रंखला उसे अतीत की यादो मे ले गयी |
                                पापा के पास कितने सारे लड़के-लडकिया दिन भर आते रहते थे | कभी किसी को नहीं निराश नहीं किया सबको गणित सीखने मे उनकी भरपुर मदद करते थे | गणित पर उनका बहुत कंट्रोल था | बहुत सारे पढने वाले बच्चो को गणित मे निपुण किया था | बिना कोई पैसा लिए |
                              माँ बहुत नेक दिल और धरम-परायण थी | पति से उनको कभी कोई शिकायत नहीं रही ,जो कुछ पति ने लाकर दिया,उसी मे संतोष के साथ अपना गुजरा किया | ये सब सोचते-सोचते कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला | उठी तब तक शाम हो गयी थी |
                               मिसेज शर्मा मिसेज माथुर की माँ की कॉलेज टाइम की दोस्त थी ,जब मिसेज शर्मा उनके घर से निकल रही थी,तो उन्होंने बात करनी चाही ,पर तब तक मिसेज शर्मा निकल गयी थी | 'बेटा मिसेज शर्मा जो तुम्हारी गुरु भी है, आज इनके आने से तुम्हे गुरु सेवा करने का मौका मिला | तुम बहुत भाग्यशाली हो |' 'वो अपनी पोती के लिए टयूसन की बात करने आई,मैंने तो पहचाना नहीं और मना भी कर दिया |'कहा मैडम माथुर ने | और अब मुझे उनके घर जाकर माफ़ी मंगनी होगी |' 'माफ़ी तो तुझे माँगनी पड़ेगी,जब तुम उनकी स्टूडेंट थी ,तो कितनी मेहनत की,कि तुम्हे अच्छी पोजीशन मिले ! अब जब तुम्हे अपना फर्ज अदा करने का अवसर मिला तो तुमने उन्हें पहचाना तक नहीं |'
                              मैडम माथुर शाम होने का बेसब्री से इन्तजार करने लगी | ठीक छ बजे वो मैडम शर्मा के घर पहुँच गयी | डोर बेल बजने पर नौकर ने दरवाजा खोला 'कहिये किससे मिलना है|'मैडम से , वो उसे मैडम के कमरे मे ले गया | मैडम माथुर अपनी गुरु के पैरो मे गिर कर माफ़ी मांगने लगी | अरे ! आप , माफ़ी क्यों मांग रही है,आपने पढाने से इंकार करके कोई गुनाह नहीं किया ,मै समझ सकती हूँ वक्त की कमी के कारण ऐसा किया है आपने ,मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा | बल्कि अच्छा लगा कि आपने पता चलते ही अपनी गलती मान कर माफ़ी मांगने मेरे पास आयी,
                             'आपने मेरी कितनी मदद करी कि,मै कैमेस्ट्री मे विशेष योग्यता हासिल कर सकू,आज मै जो कुछ हूँ,आपके कारण हूँ | 'आप अपनी रश्मि को अपनी इस शिष्या के पास पढने को जरुर भेजना | तभी मै समझूंगी कि,आपने मुझे माफ़ कर दिया है | जो पहले कहा उसे भूल समझ कर माफ़ करना | 'इसमें माफ़ी मांगने जैसी कोई बात नहीं है | पर एक बात आपसे कहना चाहती हूँ |' 'जी , कहिये , मै चाहती हूँ कि आप हर साल कम-से-कम दस लडकियों को निशुल्क पढाये | जो पैसा भर नहीं सकती | मैंने पता लगाया है कि आपके पास जितनी लड़कियां आती है ,उनमे से कुछेक को छोड़ कर बाकी सब माध्यम परिवारों से है | आप खुद
सोचिये,कितनी मुश्किल से उनके माँ-बाप पैसो का इंतजाम करते होंगे |'
                       'ठीक है मैडम, अगले साल से दस लडकियाँ बिना पैसो के पढाऊगी ,और ये आपको मेरी गुरु दक्षिणा होगी | आप अपनी पौत्री को कल से जरुर भेजना, और हां आप से मै पैसा नहीं लुंगी |
                       ''अब ये सब छोड़ो चाय-नाश्ता करो,जब से आयी हो माफ़ी मांग रही हो | तुम अपनी गुरु के घर पहली बार आयी हो ,मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है | 'तुम्हे याद है,तुम मेरी सबसे चहेती छात्रा थी | पर तुम्हे कैमेस्ट्री मे रूचि कम थी,मेरे कहने से ही तुमने लिया था,और खूब मेहनत करके विशेष योग्यता भी हासिल करी |' तब तक रश्मि के पापा -मम्मी भी आ गये थे | सब ने मिलकर चाय-नाश्ता किया , थोड़ी देर मैडम शर्मा ने मैडम माथुर से बाते की,इतने सालो बाद मिलकर दोनों बहुत खुश थी | बहुत ही खुशनुमा माहौल से दोनों की मुलाकात खत्म हुई |
              शांति पुरोहित

श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !


साकेत खंडर हो रहा लंका का नव श्रृंगार है ,
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
...................................................................
लक्ष्मण -भरत सम भ्रात न सीता के सम हैं भार्या ,
मर्यादी अब पुरुष नहीं न शीलमयी नारियां ,
आनंद जीवन में नहीं हर ओर हाहाकार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
..................................................................
क्रोध ,लोभ ,माया-मोह संयम पे हावी हो गए ,
भरी तिजोरी पाप की पुण्य भिखारी भये ,
झूठ के समक्ष सत्य की सर्वत्र हार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
.....................................................................
हैं कहाँ गुरु वशिष्ठ जो भरते संस्कार ,
हो रहे विद्यालयों में भी आज दुराचार ,
सदाचरण क्षत -विक्षत मन में चीत्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
...............................................................
दंड देगा कौन राजा बन गए खुद चोर हैं ,
लूटकर सबको मचाता खुद लुटेरा शोर है ,
है कोई भोला कहाँ हर कोई अब मक्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

MAN IS ‘A’ -WOMAN IS ‘Z’

MAN IS 'A' -WOMAN IS 'Z'

THOUGH I AM
ABJECT
BARBARIC
CRUEL
DECEITFUL
EGOTIST
FAITHLESS
GREEDY
HAUGHTY
IMPATIENT
JEALOUS
KNAVE
LIAR
MADCAP
NEFARIOUS
OPPRESSOR
PIG-HEADED
QUARRELER
RASCAL
SNOB
TYRANT
UNFEELING
VILE
WICKED
XANTHIUM
YAHOO
ZOO ZOO
BUT THIS IS LOUD & CLEAR
YOU HAVE TO BEAR WITH ME
BECAUSE I AM 'A' AND YOU ARE 'Z'
I AM APEX & YOU ARE ZERO
I MEAN
I AM HUSBAND
&
YOU ARE WIFE

SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

आज विवशता की लंका को आग लगाना है !!


संकट और विपत्ति से नहीं आँख चुराना है ,
जीवन की हर बाधा से सीधे टकराना है !
........................................................
निज भुज बल पर हो विश्वास ,सबल मनोबल हो अपना ,
हम यथार्थ में परिणत कर दें ,देखा है जो भी सपना ,
आज विवशता की लंका को आग लगाना है !!
जीवन की हर बाधा से सीधे टकराना है !!
........................................................
उमड़-घुमड़ कर आँखों से न हो अब अश्रु-वर्षा ,
कातरता का कटे शीश , ले हस्त शौर्य-फरसा ,
निज दुर्बलता के वध हेतु चंडी बन जाना है !
जीवन की हर बाधा से सीधे टकराना है !!
..................................................
हँसे आसुरी शक्ति हम पर , सदा दुर्वचन बोलें ,
नहीं पलायन संघर्षों से , विश्वास न किंचित डोले ,
दुःख-अर्णव पर आशा सेतु हमें बनाना है !
जीवन की हर बाधा से सीधे टकराना है !!
..................................................
शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

मेरी बहू -लघु कथा

Indian Village Life Royalty Free Stock Photo
चाय की खाली प्याली चारपाई के नीचे रखते हुए चारपाई पर बैठी रमा ने उमा के कंधें पर हाथ रखते हुए कहा -'' सच कहूँ जीजी तुम ही बड़े भाग वाली हो ....ऐसी सेवाभावी बहू जो मिली है ....मेरी बहू ने तो मेरा जीना मुश्किल कर रखा है .मेरा कोई जानकर घर आ जाये तो चाय पिलाना दूर पानी को भी नहीं पूछती ...गलती मेरी ही है ...मैं बहू देखने गई तब दान-दहेज़ कितना मिलेगा इस पर ही ध्यान रहा ..बहू सेवा करेगी या नहीं ये सोचा ही नहीं .'' उमा रमा का हाथ कंधे से हटाकर अपनी हथेली में लेते हुए बोली -तुम्हारे सुभाष के ब्याह के तीन मास पीछे ही हुआ था मेरे विनोद का ब्याह .सुभाष के ब्याह में आये दान-दहेज़ के चर्चे पूरी बिरादरी में थे पर विनोद के पिता जी ने अपने मित्र की बेटी की सीरत देखकर उसे बहू बनाना तय कर दिया .बहुत झगड़ी थी मैं .समाज में थू थू होगी अपनी हैसियत से गिरकर ब्याह करने पर बस यही सोचकर दम पी लिए थे मैंने उनके ....पर उनका फैसला अटल था ....और कितना सही था ....ये तुम देख ही रही हो .चाय-पानी की बात छोडो विनोद के पिता जी को जब फ़ालिश पड़ा बहू ने जी जान से सेवा की .मुझे तक घिन्न आती थी पर बहू ने कभी उन्हें गंदे में न पड़ा रहने दिया .पड़े पड़े जख्म हो गए थे उन्हें ...बहू खुद जख्मों पर दवा लगाती .उनकी मौत पर विनोद से भी ज्यादा रोई थी .सच कहूँ दीपक लेकर भी ढूंढ ने निकल जाती तो ऐसी बहू न मिल पाती . मैं तो निश्चिन्त हूँ यदि बिस्तर पकड़ना भी पड़ गया तो मेरी बहू मुझे गंदे में न सड़ने देंगी .''...ये कहते-कहते उमा की आँख भर आई .रमा उदास होते हुए बोली -'' ...पर जीजी मैं तो भगवान् से यही मनाती हूँ हाथ-पैर चलते हुए ही चल बसूँ सुभाष के पिता जी की तरह ....अच्छा जीजी चलती हूँ .'' ये कहते हुए सीधे पल्ले की धोती पहने रमा चारपाई से उठकर पास रखी बेंत लेकर धीरे धीरे वहाँ से चल दी !
शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

एसबीआई की नई चेयरमैन अरुधंती भट्टाचार्य को बधाई...

Jayprakash Manas जी ने फेसबुक पर यह साझा किया है .....
आखिर भारतीय रिजर्व बैंक के बाद देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के 207 साल के इतिहास में एक महिला को चेयरमैन बनने का सुनहरा मिल ही गया। एसबीआई की नई चेयरमैन अरुधंती भट्टाचार्य को बधाई...आप भारत की युवतियों की प्रेरणा बनेगीं....

For the first time
After all, the Reserve Bank of India after the country's largest bank State Bank of India's 207-year history a woman has become a golden find Chairman. the SBI's new Chairman arudhanti Bhattacharya ...The issue of motivation you India banegin .... (Translated by Bing)
भारतीय नारियां इसी तरह देश के प्रमुख पदों पर आसीन होती रहे और देश को तरक्की के पथ पर आगे बढाती रहे .
शिखा कौशिक 'नूतन '

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

तेजाबी मानसिकता -लघु कथा


तेजाबी हमले की शिकार युवती अस्पताल में जिंदगी व् मौत के बीच जूझ रही थी .युवती के माता -पिता का रो-रोकर बुरा हाल था .पुलिस के साथ मजिस्ट्रेट साहब पीड़ित युवती का बयान लेकर अस्पताल से बाहर निकले तो मीडिया-कर्मियों ने मजिस्ट्रेट साहब को घेर लिया और प्रश्नों की बौछार कर दी - '' सर लड़की का नाम क्या है ?' ''सर लड़की की उम्र क्या है ?'' ''सर लड़की के पिता कौन हैं ?'' ''सर लड़की यही शहर की है या कही और से आई थी ?'' ''सर क्या लड़की ने बताया कि उसके साथ बलात्कार क्यूँ हुआ ? '' सर लड़की ने क्या पहन रखा था ?'' ....प्रश्नों की इस बौछार के बीच कड़कती हुई दामिनी की सी आवाज़ में मजिस्ट्रेट साहब चिल्लाये -'' स्टॉप दिस नॉनसेंस ...आप लोगों ने एक बार भी ये नहीं पूछा कि वे दरिन्दे कौन थे ? कितने थे ?शराब पिए थे या नहीं ?...बस लड़की..लड़की ...लड़की ....ये लड़की कल आपकी बहन..बेटी भी हो सकती है .जिस दिन आप अपनी ये तेजाबी मानसिकता पलट देंगें कि बलात्कार की ख़बरों को चटपटी बनाकर अपने चैनल व् अख़बार बेंचे जाये चाहे इसके बदले पीड़ित लड़की की अस्मिता की धज्जियाँ उड़ाई जाये उस दिन आप लोगो के हर एक सवाल का जवाब दूंगा मैं .'' ये कहकर मजिस्ट्रेट साहब तेजी से अपनी गाड़ी की और बढ़ चले और मीडिया -कर्मी अपने सवालों पर शर्मिंदा हो उठे .
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013

परिवर्तन                           शांति पुरोहित की कहानी
   प्रतीक का आज छ सालो बाद दुबई से अपने देश भारत आने का हुआ था | वहां जाकर तो जैसे वो बदल ही गया था | जब प्रतीक दुबई गया तब तो पूरा देहाती था,और अब लौटा है तो पूरा विदेशी बन कर | प्रतीक ने फाइनेंस मे ऍम.बी.ए.किया था | वहां जाकर उसे एक प्राइवेट कंपनी मे जॉब मिल गयी,पर वो मेहनत भी बहुत करता था तब जाकर उसने इतने पैसे कमाए है |
                                उसने वहां जाकर अपने घर पर जो पैसा भेजा उन पैसो से उसके पापा ने एक छोटी सी स्कूल खोल ली थी,जिसमे उसकी माँ और बहन पढ़ाती और पापा वस्थापक थे | अब उसके माँ -पापा और बहन सुख से अपना जीवन बसर कर रहे थे, और खुश थे | प्रतीकएयर बस मे बैठा सोच रहा है, कि उसका दुबई जाना कितने मुश्किल हालत मे हुआ था| कम्पनी से ऑफर लैटर एक माह पहले ही आ गया था पर वो जाने का तय ही नहीं कर पा रहा था,यहाँ तक प्रतीक ने एजेंट से अपना पासपोर्ट, वीसा और सब कागजी कार्यवाही पूरी करवा ली थी | बस हाँ भरने की देरी थी | दरअसल विदेश जाने मे प्रतीक को डर लग रहा था |
                                प्रतीक एयरपोर्ट पर उतर चूका था वहां से उसके गाँव पहुँचने का छ घंटे का रास्ता था | उसे गाड़ी मे बैठते ही सब पुरानी बाते याद आने लगी | प्रतीक जब जाने का तय नहीं कर पाया तो उसकी छोटी बहन ने कहा था कि''भाई तुम्हारे एक के जाने से तुम्हारी और हम तीनो की जिंदगी संवर जायेगी, बस पांच साल मेहनत कर लो, फिर हम सब साथ -साथ रहेंगे यहीं पर | और तब उसे अपनी बहन की बात सही लगी और प्रतीक का जाना तय हो गया |
                               उस वक़्त प्रतीक एयरपोर्ट की केन्टीन मे बैठा नाश्ता कर रहा था, पास ही की टेबल पर एक जानी पहचानी सूरत दिखाई दी,उसे लगा कि इसे कहीं देखा है,तभी उसे याद आया कि अरे ! ये तो हमारे ही गाँव का गुंडा है,जिसे सब सेठी भाई कहते है प्रतीक एक मिनिट के लिये उससे डर गया कि कंही ये उसे ही ना लुट ले | तभी उसे याद आया कि दुबई जाने की एक रात पहले गाँव मे हल्ला मचा था कि सेठी गुंडा गाँव के ही रामू चाचा की बेटी सरिता को भगा कर ले गया | रामू चाचा की गिनती धनाड्य लोगो मे होती थी | रामू चाचा के घर की सारे गहने भी गुम थे और सरिता भी गायब थी | उस वक्त प्रतीक इतना व्यस्त था वो सरिता के लिये कुछ नहीं कर पाया | लेकिन विदेश से उसने अपने पापा से कई बार पूछा कि सरिता का कुछ पता चला क्या ? और  वो सेठी कभी गाँव वापस आया क्या ?
                              प्रतीक को अब तक पक्का याद आ गया कि ये, वो ही गुंडा है | वो सोचने लगा कि इसने गहने ले कर सरिता को कंही बेच दिया होगा या छोड़ दिया होगा | सेठी से बात करने की हिम्मत जुटा कर वो उसके पास गया और कहा''आपका नाम सेठी,भाई है ना?,सेठी ने प्रतीक के सामने देखा | तभी उसके साथ बैठे दो व्यक्तियों ने कहा ''भैया , आपको कोई गल्तफहमी हो रही है ये सेठी नहीं असीम भाई है |, अब उस गुंडे से सच तो बुलवाना था,गाँव की बेटी के बारे मे पता जो लगाना था तो प्रतीक ने कहा''मै दो मिनिट आपसे अकेले मे बात कर सकता हूँ ? थोड़ी ना -नुकर के बाद वो बोला ''ठीक है चलो, वो दोनों एक टेबल के पास जाकर बैठ गये |
                         ''आप हमारे गाँव के सेठी भाई ही हो ना, जो सरिता को भगा कर ले गया और साथ मे घर के सारे गहने भी ले भागा ? वो सकपकाया कुछ नहीं बोला तो प्रतीक ने पुलिस का डर दिखाया अब'' मरता क्या ना करता, उसने कहा ''हां मै ही हूँ सेठी,प्रतीक ने झट से पूछा ''सरिता कहाँ है,उसने फिर कोई जवाब नहीं दिया मुझे लगता है आपने उसे  कंही बेच दिया होगा,प्रतीक ने कहा | ''नहीं आप चलो मेरे साथ|, वैसे तो प्रतीक को घर जाने की जल्दी थी पर गाँव की बेटी के बारे मे जानना भी जरुरी था तो चल दिया उसके साथ |
                              वो दोनों अब एक बस्ती मे एक घर के सामने थे,सेठी ने प्रतीक को कहा ''चलिए, प्रतीक ने घर के अन्दर देखा सरिता पलंग पर लेटी हुई थी,सरिता ने प्रतीक को नहीं पहचाना पर उसने पूछा 'तुम ठीक हो ना?, इस सेठी ने तुम्हे परेशांन तो नहीं किया ना ?, नहीं भैया बिलकुल नहीं,बल्कि इन्होंने ही मुझे संभाला है,मे दो साल से बीमार हूँ ,मेरा एक दो साल का बेटा भी है उसे भी ये ही सँभालते है | हम दोनों अपनी मर्जी से भागे थे | ये तो इनका नाम पहले से ही बदनाम था तो लोगो का शक इन पर जाना ही था | हम दोनों मे प्यार था और इन्होंने मुझे कहा था कि अगर मै इनसे शादी करती हूँ तो ये सारे बुरे काम छोड़ कर एक आम आदमी की तरह जियेगेt तो मैंने इनसे शादी करने का फैसला किया और हां भैया ,वो गहने भी इन्होंने नहीं चुराए मैंने ही साथ लिये थे, की कहीं खाने को नहीं मिलेगा तो ये गहने काम आयेगे | आज भी गहने मेरे पास पड़े है| इन्होंने हाथ भी नहीं लगाया कभी गहनों को ||
                    भैया इन्होंने सारे बुरे काम छोड़ भी दिए हम खुश है प्रतीक को ये सब सरिता के मुहं से सुन कर बहुत ख़ुशी हुई | वो सोचने लगा कि एक  स्त्री का प्यार पाकर इन्सान इतना बदल सकता है | अब उसने सरिता से पूछा कि तुम लोग कभी गाँव गये ''सरिता ने कहा नहीं भैया डर के मारे नहीं गये,प्रतीक ने कहा मेरे साथ चलो ,सरिता ने ना कहा पर प्रतीक जिद पकड़ कर बैठ गया तो जाना पड़ा |
                           अब सरिता और सेठी को गाँव मे देख कर गाँव वाले और सरिता के माँ -पापा प्रतीक पर  बहुत नाराज हुए पर जब प्रतीक ने सब कुछ बताया तो सब ने उन्हें माफ़ कर दिया |अब सरिता की माँ ने सेठी से कहा अब आप हमारे दामाद हो | सरिता को थोड़े दिन हमें सँभालने दो, आप अपने काम पर ध्यान दो जो सरिता की बीमारी के कारण बंद पड़ा है |
                  प्रतीक को ये देख कर ख़ुशी हो रही है, कि सरिता के माँ -पापा को आज कितने सालो बाद सुख मिला है | प्रतीक को अच्छा लग रहा था कि उसने गाँव मे आते ही अच्छा काम किया | ये सब जान कर उसके माँ -पापा और बहन भी खुश थे|
                   
                            शांति पुरोहित 

नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

रावण का प्रायश्चित


श्री राम का वाण लगा जाकर ,

नाभि का अमृत गया सूख ,

फिर कटे दश-आनन् एक एक कर ,

गिरा राम चरण में दम्भी -मूर्ख !

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अंतिम श्वासें भरता-भरता

करता प्रायश्चित बोला रावण ,

श्री राम किया उपकार बड़ा ,

मैं हाथ जोड़ता इस कारण !

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वध आज हुआ पर हे भगवन !

मृत उस दिन से है मेरा मन ,

जब पंचवटी से हर लाया ,

जगजननी माँ सीता पावन !

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ये तन तो आज मैं त्यागूंगा ,

करता रहा जिससे पाप कर्म ,

पर यश फैले सीता माँ का ,

जो रही निभाती पत्नी-धर्म !

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मेरे वैभव ,शक्ति-बल से

विचलित न हुई किसी भी क्षण ,

उन सीता माँ का उर से मैं ,

करता हूँ शत-शत अभिनन्दन !

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श्री राम आप हैं परमपिता ,

इस दम्भी पुत्र पर दया करें ,

चिर संग आपके रहें सिया ,

मुझ पापी को अब क्षमा करें !

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श्री राम-सिया की युगल छवि ,

मेरे प्राणों में बसी रहे ,

युग-युग तक जब भी जन्म मिले

जिह्वा सियाराम सियाराम कहे !

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ये कहते कहते रावण ने ,

उस कलुषित देह को दिया त्याग ,

सब पाप कटे ; धुला काम-मैल ,

सियाराम का है अनुपम प्रताप !



शिखा कौशिक 'नूतन'