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बुधवार, 18 सितंबर 2013

काश मुंह पर लात इसके मारती इंसानियत !

हर तरफ चीखें ही चीखें चीखती इंसानियत ,


इन्सान को हैवान बनते देखती इंसानियत !

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ज़ख्म खाकर ज़ख्म देने का चढ़ा जूनून ,

हो गयी मजबूर कैसे रोकती इंसानियत ?

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दिल सभी के जल रहे बदले की आग में ,

देख क़त्ल-ओ-आम छाती पीटती इंसानियत !

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दुधमुहे बच्चों से माँ-बाप का साया छिना ,

देख मासूमों के आंसू टूटती इंसानियत !

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हँस रही हैवानियत खुनी खेल खेलकर ,

काश मुंह पर लात इसके मारती इंसानियत !



शिखा कौशिक 'नूतन'









































1 टिप्पणी:

Darshan jangra ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 20/09/2013 को
अमर शहीद मदनलाल ढींगरा जी की १३० वीं जयंती - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः20 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra