क्या जरूरत है हमें तोप की - तलवार की
जंग लडनी है हमें तो नफरतों पर प्यार की .
इसमें हर इन्सान के दिल से मिटाने है गिले ;
बंद हो अब साजिशें अपनों के क़त्ल-ओ-आम की .
क्या जरूरत ....
है बहुत मुमकिन की हम हार जाएँ जंग में ;
ये घडी है सब्र की और इम्तिहान की .
क्या जरूरत ....
कल हमें काटा था उसने ;आज हम काटें उसे
छोड़ दो ये जिद जरा कीमत तो समझो जान की .
क्या जरूरत .....
शिखा कौशिक 'नूतन '
6 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी रचना !
हिंदी
फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !
बोध देती कविता..
सच कहा है ... जान की कीमत समझनी होगी हर किसी को ... प्रेम से समझना होगा ...
वाह बहुत ही सुन्दर सन्देश देती हुई प्रस्तुति तहे दिल से बधाई प्रिय शिखा जी |
Desh ko aap jaise logo ki jarurat hai . aap apni kalam ko dhar dete rho.
THANKS EVERYONE .
एक टिप्पणी भेजें