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सोमवार, 12 नवंबर 2012

Vasiyat

मेरी जागीर हैं मेरे बच्चे 
जिनको मैंने इन हाथो से पाला हैं 
तन की वसीयत खुदा के नाम की 
धन की वसीयत मेरे हाथ मैं नही 
मन के सारे कोने झाड़ -पौंछ कर 
मैंने एक पोटली भर ली
मेरे बच्चो इस दीवाली
मैंने भी अपनी वसीयत लिख ली
मेरी हर फटकार को तुम
जींवन का सबक समझोगे
मेरी हर ना ने तुमको
जीवन मूल्य बताये होंगे
मेरे हर दुलार ने तुमको
प्यार सीखाया होगा
मेरी सख्ती ने तुमको
कमजोर होने से बचाया होगा
जिन्दगी का क्या भरोसा
आज हैं कल हो न हो
या बरसो तक हो
छोटे छोटे पल को जीना
खुशियों मैं भी खुशिया जीना
इस वसीयत का मूल मंत्र हो ............................. नीलिमा

8 टिप्‍पणियां:

निर्दोष 'कान्तेय' ने कहा…

चर्चा मंच ले रास्ते इधर आना हुआ और एक अच्छी रचना पढ़ने को मिली ...धन्यवाद
दीपोत्सव की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

रविकर ने कहा…

इस मंगल पर्व पर

बहुत बहुत शुभकामनाये ।

सुन्दर प्रस्तुति ।।

shalini rastogi ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति...

Unknown ने कहा…

Shukriya Pardeep sir jee

Unknown ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें...shastri jee , Ravikar jee

Unknown ने कहा…

Shalini jee shukriyaa

Unknown ने कहा…

shukriya Sriram jee , shikha jee

Rajesh Kumari ने कहा…

माँ बाप की जागीर बच्चे और बच्चों की जागीर माँ बाप का प्यार उनकी दी हुई शिक्षा सुन्दर संदेशपरक प्रस्तुति बधाई नीलिमा जी