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रविवार, 11 नवंबर 2012

होंठो से रिसता खून 
सूनी आँखे 
लहराती सी चाल 
बिखरे से बंधे बाल 

बनीता 
आँगन लीप रही हैं 


आज धनतेरस हैं
किसनू लोहे की
करछी खरीद लाया हैं
शगुन के लिए


आते ही उसे
घर की लक्ष्मी पर
अजमाया हैं

बनिता की माँ ने
पहली दीवाली का
शगुन
नही भिजवाया हैं . Neelima Sharma

3 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत कुछ नारी की व्यथा कहती रचना बहुत प्रभावी बहुत बहुत बधाई

Unknown ने कहा…

nari jivan ke dard ko bakhoobi ukerti prastuti,shubh dipawali

Unknown ने कहा…

Thank u so much Rajesh jee
madhu jee