रमती परेशान थी
इकलोती पाचवी पास
औरत थी मोहल्ले की
और पति उज्जड गवार
रात शराब के नशे मैं
उसने बक्की थी उसको
माँ- बहन की गालियाँ
. मर क्यों न गयी रमती
शरम से
.
.
रमती आज मुस्करा रही हैं
सामने पीली कोठी वाली
बाल कटी मेमसाहेब
कल रात सड़क पर
पति के हाथो पीटी हैं
माँ- बहन की गालियों के साथ
.
संस्कार किताबो के मोहताज नही होते
रमती हँस रही हैं किताबो पर
अपने पर
पीली कोठी की अभिजत्यता पर
खुद पर हँस ना बनता हैं उसका ............... नीलिमा
8 टिप्पणियां:
bahut khoob .aabhar
स्थिति तो एक ही है और अगर देखा जाये तो एक बार को रमती अपने दम पर इस स्थिति से बच सकती है पीली कोठी वाली मेमसाब नहीं सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति बधाई
रमती हँस रही हैं किताबो पर
अपने पर
पीली कोठी की अभिजत्यता पर ....
अच्छा व्यंग्य
अगर देखा जाये तो महिलाओं का पतियों की नज़र में एक ही ग्रेड होता है ,चाहे कोई भी वर्ग हो, झोंपड़ी या कोठी कोई मायने नहीं रखती .........अब कोई अपने हाथ -पैर सलामत होते हुए भी मार खाती है तो ....!!
_/\_ :-)
सही कहा संस्कार किसी किताब के मोहताज नहीं होते बहुत जबरदस्त व्यंग्य नारी की स्थिति एक सी कोई परदे के भीतर कोई परदे के बाहर बधाई नीलिमा जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए
ek jordar aur sashakt rachana,happy diwali
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.shukriya rajesh kumari jee , Madhu jee
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