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मंगलवार, 6 नवंबर 2012

संस्कार किताबो के मोहताज नही होते

रमती  परेशान थी 
 इकलोती पाचवी पास 
औरत  थी मोहल्ले की 
 और पति उज्जड गवार 
 रात शराब के नशे मैं 
 उसने बक्की  थी उसको
माँ- बहन की गालियाँ
    . मर क्यों न गयी रमती
 शरम से 
.
.
 रमती आज मुस्करा रही हैं 
 सामने पीली कोठी वाली  
बाल कटी   मेमसाहेब
 कल रात सड़क पर 
 पति के हाथो पीटी हैं 
 माँ- बहन की गालियों  के साथ  
.
  संस्कार किताबो के मोहताज नही होते 
 रमती हँस  रही हैं किताबो पर 
 अपने पर   
 पीली कोठी  की अभिजत्यता पर 

 खुद पर हँस ना बनता हैं उसका ...............  नीलिमा 

8 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut khoob .aabhar

Shalini kaushik ने कहा…

स्थिति तो एक ही है और अगर देखा जाये तो एक बार को रमती अपने दम पर इस स्थिति से बच सकती है पीली कोठी वाली मेमसाब नहीं सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति बधाई

Vandana Ramasingh ने कहा…

रमती हँस रही हैं किताबो पर
अपने पर
पीली कोठी की अभिजत्यता पर ....

अच्छा व्यंग्य

nayee dunia ने कहा…

अगर देखा जाये तो महिलाओं का पतियों की नज़र में एक ही ग्रेड होता है ,चाहे कोई भी वर्ग हो, झोंपड़ी या कोठी कोई मायने नहीं रखती .........अब कोई अपने हाथ -पैर सलामत होते हुए भी मार खाती है तो ....!!

Unknown ने कहा…

_/\_ :-)

Rajesh Kumari ने कहा…

सही कहा संस्कार किसी किताब के मोहताज नहीं होते बहुत जबरदस्त व्यंग्य नारी की स्थिति एक सी कोई परदे के भीतर कोई परदे के बाहर बधाई नीलिमा जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए

Unknown ने कहा…

ek jordar aur sashakt rachana,happy diwali

Unknown ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.shukriya rajesh kumari jee , Madhu jee