आज फिर झुमकी रो पड़ी ............आंसू टप-टप बह रहे थे . अहसासों का कोर कोर मानो लहुलुहान था , आखिर क्यों उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया मोहल्ले वालो ने
मन के आंसू धुधली छाया लिए उसे बीते साल की यादो मे ले गये ........ सब मोहल्ले वालिया नुक्कड़ पर खड़ी थी कभी इसकी कभी उसकी बुराई की जा रही थी . उसको कतई पसंद नही था यह सब करना जब उसको सबने आवाज लगायी तो उसने आने से मना कर दिया के घर में ढेरो काम पड़े हैं मुझे ट़ेम नही यहाँ आने का . बचपन से अपनी किताबो मे घुसी रहने वाली झुमकी मोहल्ले की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी ओंरत थी . हर वक़्त मोहल्ले के चोराहों पर आते जाते आदमियों की नज़रो का स्वाद बन'ने की अपेक्षा उसको सिलाई करना पसंद था घर का हर कोना उसकी सुघड़ता की गवाही देता था . छोटे से घर में अपने दो बेटो के साथ बहुत खुश रहती थी हर मिया-बीबी की तरह किसनवा से लड़ भी लेती थी तो बच्चो की शरारत पर उनको पीट भी देती थी हर तरह से आम औरत थी बस यह चौराहा उसको पसंद नही था . धीरे धीरे मोहल्ले की ओरते जो कभी उस से बात करने मे फख्र महसूस करती थी अब उसको घमंडी कहने लगी उसके सुथरे कपडे सबकी आँखों मैं खटकने लगे सबके मर्द" झुमकी को देख जरा "कहकर अपनी बीबियो को चार बात कहने लगे थे . पिछले बरस उसने गीतली के घर कीर्तन मैं सुमनी को उसकी सास/पति की बुराई करने से टोक दिया तो सबने उसको स्पेशल ओंरत का तमगा पहना दिया जैसे सास/पति की बुराई करना हर औरत का अधिकार हैं अब किसनवा अगर प्यार करता हैं तो क्या हुआ अगर गलत काम पर गुरियता भी हैं जब बख्त आता हैं तो झुमकी भी तो उसको खूब सुना देती हैं यह बात हर औरत को समझ नही आती सबकी सब अनपद औरत नारी मुक्ति आन्दोलन की नेता बनी फिरती हैं एक का मर्द मारे सब इकठ्ठी हो जाती हैं खुसर-फुसर करने को .पर झुमकी ने न कभी किसी को बुलाया न कभी किसी के यहाँ चुगली करने गयी .बस यही से उसको घमंडी कहा जाने लगा धीरे धीरे सब को लगने लगा के यह हमारे जैसे क्यों नही और
आज अरसे बाद उसने अपने घर मे माता का कीर्तन कराया .............. दो चार बुजुर्ग औरते आई बाकि कीर्तन मण्डली वालियों ने भी अलग ढोलक बजा ली के बहुत बनती थी न बजा ले घंटी मंजीरा अपने आप .............किसी ने नही सोचा शक्ति औरत में खुद विराजमान हैं .........क्यों इक दुसरे की दुश्मन बनी हैं वोह ............... क्या कसूर रहा उसका . क्यों नही वोह एक आम ओंरत बनकर सबकी बातो का काट पाती . क्यों नहीं सबके सामने कुछ और पीछे कुछ और बन जाती हैं क्यों आज वोह अकेली हैं माँ के इस दरबार मैं . क्या खुद को बदल डाले या इस मोहल्ले को या फिर खुद मैं शक्ति बन जिए . डोल गया आज उसका मन का विश्वास ............... जार जार रोता रहा आज झुमकी के मन का कोना ..........साथ ही हर उस ओंरत के मन का कोना जो खुद मैं जीना चाहती हैं और ढूढ़ रहा हैं अपने अच्छे होने के सवाल का जवाब ................................
4 टिप्पणियां:
sachchai bahut khoobsurati se vyakt kee hai aapne.most welcome neelima ji .
Thank u so much Shalini jee
NEELIMA JI -BAHUT SARTHAK PRASTUTI KE SATH AAPNE IS BLOG PAR SHUBHAGAMAN KIYA HAI .HARDIK AABHAR V BAHUT BAHUT SWAGAT .
Thank u so much Shikha jee
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