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बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

करवाचौथ की शुभ कामनाएं


लौह महिला को शत शत नमन !!!


आज हमारी प्रिय नेता श्रीमती इंदिरा गाँधी जी का शहीदी दिवस है .आज ही के दिन उनके दो अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर डाली थी इस स्थान पर -
October 31 marks the 28th anniversary of Indira Gandhi’s death. Stephen Prins replays a conversation with actor-writer Peter Ustinov, the person who was waiting to interview the Indian Prime Minister when 
she was gunned डाउन-

Indira Gandhi's blood-stained saree and her belongings at the time of her assassination, preserved at the Indira Gandhi Memorial Museum in New Delhi.


इंदिरा जी के जीवन  से  सम्बंधित  जानकारी  जो भी अंतर्जाल पर मौजूद थी मैं जुटा लायी हूँ आप सभी के लिए -[साभार विकिपीडिया से ]
smt.indira gandhi

इंदिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर १९१७-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं।

इन्दिरा का जन्म 19 नवंबर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। इनके पिताजवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं। इन्दिरा को उनका "गांधी" उपनाम फिरोज़ गाँधी से विवाह के पश्चात मिला था। इनका मोहनदास करमचंद गाँधी से न तो खून का और न ही शादी के द्वारा कोई रिश्ता था। इनके पितामह मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे।
1934–35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्तिनिकेतनमें रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हे "प्रियदर्शिनी" नाम दिया था। इसके पश्चात यह इंग्लैंड चली गईं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठीं, परन्तु यह उसमे विफल रहीं, और ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में कुछ महीने बिताने के पश्चात, 1937 में परीक्षा में सफल होने के बाद इन्होने सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। इस समय के दौरान इनकी अक्सर फिरोज़ गाँधी से मुलाकात होती थी, जिन्हे यह इलाहाबाद से जानती थीं, और जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। अंततः 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी आदि धर्म ब्रह्म-वैदिक समारोह में इनका विवाह फिरोज़ से हुआ
ऑक्सफोर्ड से वर्ष 1941 में भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलनमें शामिल हो गयीं।
1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एकराज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।[1]
श्री लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन कॉंग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी। वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिती में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया। उन्होंने एवं कॉंग्रेस पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं जिसमे आगे चलकर सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई।
इंदिरा जी की  हत्या  के पीछे  क्या कारण  थे ?

गांधी के बाद के वर्ष पंजाब समस्याओं से जर्जर थे. सितम्बर 1981 में जरनैल सिंह भिंडरावाले का अलगाववादी सिख आतंकवादी समूह सिख धर्म के पवित्रतम तीर्थ, हरमंदिर साहिब परिसर के भीतर तैनात हो गया. स्वर्ण मंदिर परिसर में हजारों नागरिकों की उपस्थिति के बावजूद गांधी ने आतंकवादियों का सफया करने के एक प्रयास में सेना को धर्मस्थल में प्रवेश करने का आदेश दिया. सैन्य और नागरिक हताहतों की संख्या के हिसाब में भिन्नता है. सरकारी अनुमान है चार अधिकारियों सहित उनासी सैनिक और 492 आतंकवादी; अन्य हिसाब के अनुसार, संभवत 500 या अधिक सैनिक एवं अनेक तीर्थयात्रियों सहित 3000 अन्य लोग गोलीबारी में फंसे.[13] जबकि सटीक नागरिक हताहतों की संख्या से संबंधित आंकडे विवादित रहे हैं, इस हमले के लिए समय एवं तरीके का निर्वाचन भी विवादास्पद हैं.
इंदिरा गांधी के बहुसंख्यक अंगरक्षकों में से दो थे सतवंत सिंहऔर बेअन्त सिंह, दोनों सिख.३१ अक्टूबर 1984 को वे अपनी सेवा हथियारों के द्वारा 1, सफदरजंग रोड, नई दिल्ली में स्थित प्रधानमंत्री निवास के बगीचे में इंदिरा गांधी की राजनैतिक हत्या की. वो ब्रिटिशअभिनेता पीटर उस्तीनोव को आयरिश टेलीविजन के लिए एक वृत्तचित्र फिल्माने के दौरान साक्षात्कार देने के लिए सतवंत और बेअन्त द्वारा प्रहरारत एक छोटा गेट पार करते हुए आगे बढ़ी थीं. इस घटना के तत्काल बाद, उपलब्ध सूचना के अनुसार, बेअंत सिंह ने अपने बगलवाले शस्त्र का उपयोग कर उनपर तीन बार गोली चलाई और सतवंत सिंह एक स्टेन कारबाईन का उपयोग कर उनपर बाईस चक्कर गोली दागे. उनके अन्य अंगरक्षकों द्वारा बेअंत सिंह को गोली मार दी गई और सतवंत सिंह को गोली मारकर गिरफ्तार कर लिया गया.
Iइन्दिरा गांधी का आखरी भाषण भुवनेश्वर में .
गांधी को उनके सरकारी कार में अस्पताल पहुंचाते पहुँचाते रास्ते में ही दम तोड़ दीं थी, लेकिन घंटों तक उनकी मृत्यु घोषित नहीं की गई. उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन किया. उस वक्त के सरकारी हिसाब 29 प्रवेश और निकास घावों को दर्शाती है, तथा कुछ बयाने 31 बुलेटों के उनके शरीर से निकाला जाना बताती है. उनका अंतिम संस्कार 3 नवंबरको राज घाट के समीप हुआ और यह जगह शक्ति स्थल के रूप में जानी गई. उनके मौत के बाद, नई दिल्लीके साथ साथ भारत के अनेकों अन्य शहरों, जिनमे कानपुर, आसनसोल और इंदौर शामिल हैं, में सांप्रदायिक अशांति घिर गई, और हजारों सिखों के मौत दर्ज किये गये. गांधी के मित्र और जीवनीकार पुपुल जयकर, ऑपरेशन ब्लू स्टार लागू करने से क्या घटित हो सकती है इस सबध में इंदिरा के तनाव एवं पूर्व-धारणा पर आगे प्रकाश डालीं हैं.


Photo: Humble Tributes on Death Anniversary
Photo: Rahul the Natural Leader

जीवन के अंतिम क्षण  तक
खून की आखिरी  बूँद  शेष  रहने  तक
देश  सेवा  में  संलग्न  लौह  महिला
को  शत  शत  नमन  !!!
शिखा कौशिक

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2012

MEN AND WOMEN

हाँ ,पाषाण नहीं थी वो




एक ऐसी स्त्री की गाथा जिसे संसार ने पाषाण समझ लिया ... वह स्त्री जिसका दोष न होने पर भी उसे पति द्वारा शापित हो वर्षों का एकांतवास झेलना पड़ा ..... समाज के लांछन व पति की उपेक्षा की  झेलती वह अहल्या पत्थर के सामान हो गई 

उसी के बारे में मेरे कुछ उदगार .........


अहल्या
हाँ ,पाषाण नहीं थी वो
श्वास , मद्धम ही सही
चलती तो थी
ह्रदय में हल्का ही सही
स्पंदन तो था
फटी-फटी सी आँखों में भी
एक मौन क्रंदन था......
हाँ,
पाषाण नहीं थी वो.......

खाली दीवारों से टकराकर
जब लौट आती थी ध्वनि उसकी
निर्जन वन में गूँज गूँज
गुम जाती हर पुकार उसकी
धीरे धीरे भूल गए बोलना
मौन अधरों पर फिर भी
एक अनजान आमंत्रण था
हाँ,
पाषाण नहीं थी वो..........

रौंद गया एक काम -रुग्ण
उसकी गर्वित मर्यादा को
कुचला गया था निर्ममता से
उसकी निष्कलंक निर्मलता को
छटपटाती पड़ी रह गयी वह
बाण बिंधी हिरनी सी
चतुर व्याध के जाल में जकड़ी
अकाट्य जिसका बंधन था
हाँ
पाषाण नहीं थी वो ......

हा!      
समाज का कैसा न्याय
पीड़ित पर ही आरोप लगाये
था कौन व्यथा जो उसकी सुनता
अपनों ने भी जब   
आक्षेप लगाए
कितना पीड़ाहत उसका मन था
बतलाती वो क्या किसको
विह्वल चीखों पर भी तो
समाज का ही तो नियंत्रण था

हाँ
पाषाण नहीं थी वो ......

धीरे-धीरे सूख गया फिर 
भाव भरा मन का हर स्रोत  .
शुष्क हुए भावों के निर्झर 
रसहीन हृदय ज्यों सूखी ताल ,
दबा दिया फिर शिला  तले
हर कामना का नव अंकुर  .
साथ किसी का पाने की 
इच्छा का किया उसने मर्दन था 

हाँ
पाषाण नहीं थी वो ......

चहुँ ओर से जब मिट गई 
आशा की क्षीणतम ज्योति भी 
हर मुख पर फ़ैल गई जब 
विरक्तता की अनुभूति  सी 
हर पहचान मिटा कर अपनी 
कर लिया स्वयं को पाषण समान 
पर उसके अंतस में ही
हाँ 
धधक रहे थे उसके प्राण 
निराशा के छोरों के मध्य 
मन करता उसका अब दोलन था 

हाँ
पाषाण नहीं थी वो ......

हुई राममय ,
रमी राम में ,
राम भरोसे सब तज डाला .
नहीं किसी से कुछ भी आशा 
अब और नहीं कुछ संबल था 

तप की चिता में तप-तप 
तन उसका हुआ जैसे कुंदन था 
हाँ
पाषाण नहीं थी वो ......


नहीं सुनी दुनिया ने उसकी
करुण कथा पर दिए न कान 
कोई समझे या न समझे 
पर समझे वो दयानिधान  
करुणा कर, करुनानिधान ने 
किया कलुष सब उसका दूर 
निज निर्मल स्पर्श से उसका 
शाप  कर दिया पल में चूर 
शिला खंड में मानो जैसे 
लौट आये थे फिर से प्राण 
हाँ .......................अब पाषण नहीं थी वो 


द्वारा
शालिनी रस्तोगी 







सोमवार, 29 अक्टूबर 2012


चंचल चुप थी
एक अरसे से

पति के घर से
निकाल दी गयी हैं
पिछले ही महीने

न ही दहेज़ मिला था
न ही रूप सुंदरी थी
न कमाती थी पैसा

आज जिद पर अड़ी हैं
उसे भी खरीदनी हैं
लाल चूड़ियाँ
परसों उसका पहला
करवा चौथ जो हैं

.................................नीलिमा शर्मा —
 —

फ़िल्मी दुनिया को सम्भलना होगा





यूँ तो फ़िल्मी दुनिया एक ऐसी दुनिया है जहाँ केवल तिलस्म ही तिलस्म है .जो दिखाई देता है वह कभी भी सच होगा इस विषय में विद्वान से विद्वान भी अपना सिर खुजाते हुए ही दिखाई देगा फिर भी आज जिसे देखो इसकी चकाचौंध के आगे अँधा हुआ है .योग्य से योग्य युवा इस ओर बढ़ रहे हैं लेकिन चिंता की बात ये नहीं है की योग्यता यहाँ प्रवेश कर रही है बल्कि चिंता यहाँ बढ़ते हुए झूठ ओर अयोग्यता को लेकर है .फ़िल्मी दुनिया के संस्थापकों में से प्रमुख दादा साहब फाल्के ने अपना जीवन ओर तन मन धन लगा इस दुनिया को स्थापित किया राज कपूर जी जैसे शो मैन ने अपनी अनूठी प्रतिभा से बोलीवूड का नाम विश्व में रोशन किया .सत्यजित रे ने अपनी फिल्मों के माध्यम से विश्व में भारतीय फिल्मों का परचम ऊँचा किया ऐसी ही अनूठी प्रतिभाओं से भरी है हमारी फ़िल्मी दुनिया .किन्तु अब अगर कोफ़्त  होती है तो वो यहाँ पर फिल्मों के गिरते स्तर को लेकर है और दिनों दिन ऐसी झूठे प्रचार को लेकर है जो फिल्मों के प्रति रूचि घटा ही रहा है इस वक़्त फिल्मो में कैटरीना कैफ बहुत नाम कमा रही हैं किन्तु सच में कहूं तो उनमे अभिनय प्रतिभा रत्तीभर भी नज़र नहीं आती वे पहली बात तो ये हिंदी फिल्मो में काम कर रही हैं किन्तु हिंदी अंग्रेजी की तरह बोलती  हैं और दुसरे भावशून्य अभिनय कर रही हैं .उन्हें हम ''मक्खन  की टिक्की ''तो कह सकते हैं किन्तु अभिनय में पारंगत नहीं कह सकते वे अपने अभिनय में रानी मुखर्जी ,करीना कपूर ,ऐश्वर्या राय के सम्मुख कहीं नहीं ठहरती .दूसरी एक और अभिनेत्री हैं जिन्हें  न देखना बर्दाश्त होता है न सुनना और वे हैं रीमा लम्बा मतलब फ़िल्मी दुनिया की ''मल्लिका शेरावत'' जिनके बारे में अंतर्जाल से जो जानकारी मिली है वो कुछ यूँ है 


Sherawat was born Reema Lamba in RohtakHaryana to a Jat family.[8] Mallika was born in the family of Seth Chhaju Ram, a leading Jat philanthropist.[9] She was born on 24 October, though the year is unknown.[10] She adopted the screen name of "Mallika", meaning "empress", to avoid confusion with other actresses named Reema.[11] "Sherawat" is her mother's maiden name[10] She has stated that she uses her mother's maiden name because of the support that her mother has provided her.[11] Although relations with her family were strained when she entered the film industry,[12] now Sherawat's family have accepted her career choice and reconciled their relations.[9]
Sherawat went to school at Delhi Public School, Mathura Road.[13] She has obtained a degree in philosophy from Miranda HouseDelhi University.[14] During the initial days of her career, she claimed to have come from a very conservative small town family, and that she faced many hurdles from her family in pursuing her career.[15] However, Mallika's family has refuted this as a story created by her to give her an aura of a small town rustic girl who made it big in Bollywood.[12] It has been reported that she was married for a short while to a Jet Airways pilot Captain Karan Singh Gill.[12]

ये न तो काम अच्छा करती हैं न ही बातें .अभी इन्होने कहा था की इनकी शादी की कोई इच्छा नहीं है तो इन्होने ये क्यूं नहीं कहा की दूसरी शादी की नहीं है जबकि पहली शादी भी ये खुद ही तोड़ कर आई हुई है अब बाकी तो शादी टूटने के बारे में या तो ये जानती हैं या कैप्टेन करण सिंह गिल .मुझे दिक्कत केवल ये है की ये सच क्यूं नहीं बोलती और क्यूं यहाँ टिकी रहकर फिल्मों का और हमारा जायका ख़राब कर रही हैं इस दुनिया को अगर टिके रहना है तो यहाँ योग्यता को ही स्थान मिलना चाहिए नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब ये दुनिया गहरे सागर में समां जाएगी इस वक़्त की फिल्मे तो इसके डूबने की ही ओर इशारा कर रही हैं 
                                                शालिनी कौशिक 

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .



खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं .

तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को ,
फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .

फराखी इनको न भाए ताज़िर हैं ये दहशत के ,
मादूम ऐतबार को कर फ़ज़ीहत ये कर जाते हैं .

न मज़हब इनका है कोई ईमान दूर है इनसे ,
तबाही में मुरौवत की सुकून दिल में पाते हैं .

इरादे खौफनाक रखकर आमादा हैं ये शोरिश को ,
रन्जीदा कर जिंदगी को मसर्रत उसमे पाते हैं .

अज़ाब पैदा ये करते मचाते अफरातफरी ये ,
अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .

शब्दार्थ :-फराखी -खुशहाली ,ताजिर-बिजनेसमैन ,
मादूम-ख़त्म ,फ़ज़ीहत -दुर्दशा ,मुरौवत -मानवता ,
शोरिश -खलबली ,रंजीदा -ग़मगीन ,मसर्रत-ख़ुशी ,
अज़ाब -पीड़ा-परेशानी .

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !



विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !






धर्म पताका फहराने , पापी को सबक सिखाने ,
चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !
हर हर हर हर महादेव !

रावण के अनाचारों से डरकर  वसुधा है डोली ,
दुष्ट ने ऋषियों के प्राणों से खेली खून की होली ,
सत्यमेव जयते की ज्योति त्रिलोकों में जगाने !
चली राम की सेना ........................
हर हर हर हर महादेव !

तीन लोक में रावण के आतंक का बजता डंका ,
कैसे मिटेगा भय रावण का देवों को आशंका ?
मायावी की माया से सबको मुक्ति दिलवाने !
चली राम की सेना ........................
हर हर हर हर महादेव !

जिस रावण ने छल से हर ली पंचवटी से सीता ,
शीश कटे उस रावण का , करें राम ये कर्म पुनीता ,
पतिव्रता नारी को खोया सम्मान दिलाने !
चली राम की सेना ......
हर हर हर हर महादेव !

एकोअहम के दर्प में जिसने त्राहि त्राहि मचाई ,
उस रावण का बनकर काल आज चले रघुराई ,
निशिचरहीन करूंगा धरती अपना वचन निभाने !   
चली राम की सेना .....................
हर हर हर हर महादेव !

                                                   शिखा कौशिक 'नूतन' 

रविवार, 21 अक्टूबर 2012

change your opinion


change your opinion
Oh ! my father !
i am your ortolan;
do not cut off
my little pinion ;
please change ...your
''traditional opinion ''

Do not hold back
my progressive steps ,
Be prudent and
make me glad ,
You'r sky and
i am orion .
Please change ..your
''traditional opinion ''

Do not put to death
my liberal thoughts ;
Be practical
drown all doubts,
You are the sea
and i am dolphin .
Please change...your
''traditional opinion. ''

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

Jhumki


आज फिर झुमकी रो पड़ी ............आंसू टप-टप बह रहे थे . अहसासों का कोर कोर मानो  लहुलुहान था , आखिर क्यों उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया मोहल्ले वालो ने     
 मन के आंसू  धुधली छाया लिए  उसे बीते साल की यादो मे ले गये   ........ सब मोहल्ले वालिया  नुक्कड़ पर खड़ी थी      कभी इसकी कभी उसकी   बुराई की जा रही थी  . उसको कतई पसंद नही था यह सब करना  जब उसको सबने आवाज लगायी तो उसने आने से मना कर दिया   के घर में ढेरो काम पड़े  हैं मुझे ट़ेम नही यहाँ आने का     . बचपन से अपनी किताबो मे घुसी रहने वाली झुमकी मोहल्ले की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी ओंरत थी  . हर  वक़्त मोहल्ले के चोराहों पर आते जाते आदमियों की नज़रो का स्वाद बन'ने की अपेक्षा उसको सिलाई करना पसंद था     घर का हर कोना उसकी सुघड़ता   की गवाही देता था . छोटे से घर में अपने दो बेटो के साथ बहुत खुश रहती थी  हर  मिया-बीबी की तरह किसनवा से लड़ भी लेती थी  तो बच्चो की शरारत पर उनको पीट भी देती थी हर तरह से आम  औरत थी बस यह चौराहा   उसको पसंद नही था . धीरे धीरे मोहल्ले की ओरते जो कभी उस से बात करने मे फख्र महसूस करती थी  अब उसको घमंडी कहने लगी उसके सुथरे कपडे सबकी आँखों मैं खटकने लगे सबके मर्द" झुमकी को देख जरा "कहकर अपनी बीबियो    को चार बात कहने लगे थे . पिछले बरस उसने गीतली के घर कीर्तन मैं सुमनी को उसकी सास/पति  की बुराई करने से टोक दिया  तो सबने उसको स्पेशल ओंरत का तमगा पहना दिया  जैसे सास/पति  की बुराई  करना हर औरत   का  अधिकार हैं  अब किसनवा अगर प्यार करता हैं तो क्या हुआ अगर गलत काम पर गुरियता भी हैं  जब बख्त आता हैं तो झुमकी भी तो उसको खूब सुना देती हैं  यह बात हर औरत  को समझ नही आती सबकी सब अनपद औरत  नारी मुक्ति आन्दोलन की नेता बनी फिरती हैं एक का मर्द मारे सब इकठ्ठी हो जाती हैं खुसर-फुसर करने को .पर झुमकी ने न कभी किसी को बुलाया न कभी किसी के यहाँ चुगली करने गयी .बस यही से उसको घमंडी कहा जाने लगा धीरे धीरे सब  को लगने लगा के  यह हमारे जैसे क्यों नही      और   

                                              आज  अरसे बाद उसने अपने घर मे माता का कीर्तन कराया .............. दो चार बुजुर्ग औरते   आई बाकि कीर्तन मण्डली वालियों ने भी अलग ढोलक बजा ली  के  बहुत बनती थी न  बजा ले घंटी  मंजीरा अपने आप .............किसी ने नही सोचा शक्ति औरत में  खुद विराजमान  हैं .........क्यों इक दुसरे की दुश्मन बनी हैं वोह ...............  क्या कसूर रहा उसका . क्यों नही वोह एक आम ओंरत बनकर सबकी बातो का काट  पाती . क्यों नहीं  सबके सामने कुछ और  पीछे कुछ और बन जाती हैं  क्यों आज वोह अकेली हैं माँ के इस दरबार मैं . क्या खुद को बदल डाले या इस मोहल्ले को या फिर खुद मैं शक्ति बन जिए . डोल गया आज उसका मन का विश्वास ............... जार जार रोता रहा आज झुमकी  के मन का कोना ..........साथ ही हर उस ओंरत के मन का कोना जो खुद मैं जीना चाहती हैं  और ढूढ़ रहा हैं अपने अच्छे होने के सवाल का जवाब ................................

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2012

[कहानी] शालिनी कौशिक :अब पछताए क्या होत




[कहानी] शालिनी  कौशिक :अब पछताए क्या होत

3 अक्तूबर 2012

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विनय के घर आज हाहाकार मचा था .विनय के पिता का कल रात ही लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया .विनय के पिता चलने फिरने में कठिनाई अनुभव करते थे .सब जानते थे कि वे बेचारे किसी तरह जिंदगी के दिन काट रहे थे और सभी अन्दर ही अन्दर मौत की असली वजह भी जानते थे किन्तु अपने मन को समझाने के लिए सभी बीमारी को ही मौत का कारण मानकर खुद को भुलावा देने की कोशिश में थे .विनय की माँ के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे .बच्चे और पत्नी इधर उधर के कामों में व्यस्त थे ....नहीं थी तो बस अवंतिका......विनय की बेटी....कहाँ है अवंतिका ...छोटी सी सबकीआँखों का तारा आज कहाँ है ,दादा जी के आगे पीछे डोल डोल कर कभी टॉफी ,कभी आइसक्रीम के लिए उन्हें मनाने वाली अवंतिका .....सोचते सोचते विनय अतीत में पहुँच गया.
मम्मी पापा का इकलौता बेटा होने का खूब सुख उठाया विनय ने ,जो भी इच्छा होती तत्काल पूरी की जाती ,अब कॉलिज जाने लगा था .मित्र मण्डली में लड़कियों की संख्या लडकों से ज्यादा थी .दिलफेंक ,आशिक ,आवारा ,दीवाना न जाने ऐसी कितनी ही उपाधियाँ विनय को मिलती रहती पर मम्मी ,वो तो शायद बेटे के प्यार में अंधी थी ,कहती -''यही तो उम्र है  अब नहीं करेगा तो क्या बुढ़ापे में करेगा .''और पापा शायद पैसा कमाने में ही इतने व्यस्त थे कि बेटे की कारगुज़ारी पता ही नहीं चलती और यदि चल भी जाती तो जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है ऐसे ही पैसे के आगे उन्हें कुछ नहीं दिखता .
ऐसे ही गुज़रती जा रही थी विनय की जिंदगी .एक दिन वह  माँ के साथ बाज़ार गया .....मम्मी..मम्मी ....मम्मी विनय फुसफुसाया ...हाँ ... मम्मी बोली तब विनय ने माँ का हाथ पकड़कर कहा -''माँ !मेरी उस लड़की से दोस्ती करा दो ,देखो कितनी सुन्दर ,स्मार्ट है .हाँ ...सो तो है ..मम्मी ने कहा ...पर .बेटा ...मैं नहीं जानती उसे ...मम्मी प्लीज़ ...अच्छा ठीक है .....कोशिश करती हूँ ,तुम यहीं रुको मैं आती हूँ .मम्मी उस लड़की के पास पहुंची ,''बेटी !हाँ हाँ ....मैं तुम्ही से कह रही हूँ .जी -वह युवती बोली ...क्या अपनी गाड़ी में तुम मुझे मेरे घर तक छोड़ दोगी...,पर ...आंटी मैं आपको नहीं जानती हूँ न आपके घर को फिर भला मैं आपको आपके घर कैसे छोड़ सकती हूँ  .... युवती ने हिचकिचाते हुए कहा ..बेटी मेरी तबीयत ख़राब हो रही है ,मेरा बेटा साथ है पर वह बाईक पर है और मुझे कुछ चक्कर आ रहे हैं .....यह कहते हुए मम्मी ने थोड़े से चक्कर आने का नाटक किया ....लड़की कुछ घबरा गयी और उन्हें गाड़ी में बिठा लिया ....अच्छा आंटी अब अपना पता बताओ ,मैं घर पहुंचा दूँगी ....मम्मी ने धीरे धीरे घर का पता बताया और आराम से गाड़ी में बैठ गयी .
''लो आंटी ''ये ही है आपका घर ,युवती बोली ..हाँ बेटी ...यही  है ...''आओ आओ अन्दर तो आओ ''गाड़ी से उतारते हुए मम्मी ने कहा ,नहीं आंटी जल्दी है .... ....फिर कभी ...ये कह युवती ने जाना चाहा  तो मम्मी बोली....नहीं बेटा ऐसा नहीं हो सकता ..... तुम मेरे घर तक आओ और बिना चाय पिए चली जाओ ...मम्मी की जबरदस्ती के आगे युवती की एक नहीं चली और उसे घर में आना ही पड़ा .थोड़ी ही देर में विनय भी आ गया .विनय बेटा....तुम इनके साथ यहाँ बैठो ,मैं चाय लेके आती हूँ ...बीमार मम्मी एकदम ठीक होती हुई रसोईघर में चली गयी और थोड़ी ही देर में ड्राइंगरूम से हंसने खिलखिलाने की आवाज़ आने लगी .
फिर तो ये रोज़ का सिलसिला शुरू हो गया .एक दिन विनय एक लड़की के साथ ड्राइंगरूम में उसकी गोद में सिर रखकर लेटा हुआ था कि पापा आ गए .पापा !आप ....कहकर हडबड़ाता  हुआ विनय उठा ....हाँ मैं ये कहकर गुस्सा दबाये पापा बाहर चले गए ....पर विनय घबरा गया और लड़की को फिर मिलने की बात कह टाल दिया .घबराया विनय मम्मी के पास पहुंचा ,''मम्मी मम्मी !....क्या है इतना क्यूं घबरा रहा है ?मम्मी पापा आये थे ....पापा आये थे ....कहाँ हैं पापा ..इधर उधर देख मम्मी ने विनय से पूछा और साथ ही कहा तू कहीं पागल तो नहीं हो गया ....नहीं मम्मी ...पापा आये थे और हॉल में मुझे सिमरन की गोद में सिर रखे देखा तो गुस्से में वापस लौट गए .तो तू क्यूं घबरा रहा है ..तेरे पापा को तो मैं देख लूंगी ...तू डर मत ....और हुआ भी यही... रात को पापा के आने पर मम्मी ने उन्हें ऐसी बातें सुने कि पापा की बोलती बंद कर दी ..''वो बड़े घर का लड़का है ,जवान है ,फिर दोस्ती क्या बुरी चीज़ है ...अब आप तो बुड्ढे हो गए हो क्या समझोगे उसकी भावनाओं को और ज्यादा ही है तो उसकी शादी कर दो सब ठीक हो जायेगा ,विनय के पापा को यह बात जँच गयी .
आज विनय की शादी है .मम्मी पापा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं और विनय उसे तो फोन सुनने से ही फुर्सत नहीं ,''अरे यार !कल को मिल रहा हूँ न ,तुम गुस्सा क्यूं हो रही हो ,अच्छा यार कल को मिलते हैं कहकर फोन को काट दिया ...विनय ..हाँ मम्मी ...बेटा ये फोन अभी बंद कर दे कल से जो चाहे करना ....जी मम्मी ...आई लव यू  ..आई लव यू बेटा ...और इस तरह के स्नेहपूर्ण संबोधन के संचार होते ही फोन बंद कर दिया गया .शादी हो गयी .
धीरे धीरे विनय की बाहर की जिंदगी के साथ घर की जिंदगी चलती रही .कहीं कोई बदलाव नहीं था बदलाव था तो बस इतना ही कि विनय के एक बेटा और एक बेटी हो गयी थी .कारोबार पापा ही सँभालते रहे ..विनय तो बस एक दो घंटे को जाता और उसके बाद रातो रातो अपनी मित्र मण्डली में घूमता फिरता .
''विनय'' पापा ने गुस्से में विनय को पुकारा तो विनय अन्दर तक कांप उठा  ''जी पापा!''थाने से फोन आया है ...''क्यूं ''विनय असमंजस भरे स्वर में बोला ..अभय ....तेरा बेटा ...मेरा पोता ..चांदनी जैसे बदनाम होटल में एक कॉल गर्ल के साथ पकड़ा गया है ...''क्याआआआआआअ ''विनय का मुंह खुला का खुला रह गया ...उसकी इतनी हिम्मत ...मैं उसे जिंदा नहीं छोडूंगा ''विनय का मुहं गुस्से से लाल हुआ जा रहा था ...क्यूं मैंने कौन तुम्हे मार डाला ...पापा ने विनय से प्रश्न किया तो विनय सकते  में आ गयाअब पहले अभय की जमानत करनी है फिर देखते हैं क्या करना है चलो मेरे साथ ...पापा के साथ जाकर विनय अभय को घर तो ले आया लेकिन अभय को माफ़ नहीं कर पाया .
एक दिन सुबह जब विनय ने देखा कि घर के सभी लोग सो रहे हैं तो वो अभय के कमरे में पहुँच गया ..पर ये क्या ...अभय वहां नहीं था ..विनय थोड़ी देर अभय का वहां इंतजार कर बाहर निकलने ही वाला था कि पीछे से पापा आ गए ...अभय अब तुम्हे नहीं मिलेगा ...क्यूं पापा? मैंने उसे उसके मामा के घर भेज दिया है ...अच्छे काबिल लोग हैं कम से कम वहां रहकर अभय काबिल तो बनेगा तुम्हारे जैसा आवारा निठल्ला नहीं ...तभी विनय की मम्मी वहां आ गयी और तेज़ आवाज़ में बोली ,''किसने कहा आपसे कि मेरा विनय आवारा निठल्ला है और किसने हक़ दिया आपको अभय को उसके मामा के घर भेजने का ,मैं कहती हूँ आप होते कौन हैं परिवार की बातों में बोलने वाले ,किया क्या है आपने हम सबके लिए ,पैसा वो तो ज़मीन जायदाद से हमें मिलता ही रहता ,आपने कौन कारोबार में अपना समय देकर हमारी जिंदगी बनायीं है ,विनय मेरा बेटा है और मुझे पता है कि वह कितना काबिल है और जिस मामले का आपसे मतलब नहीं है उसमे आप नहीं बोलें तो अच्छा !कभी मेरे लिए या अपने बेटे के लिए दो मिनट भी मिले हैं आपको ..'' विनय की मम्मी बोले चली जा रही थी और विनय के पापा का दिल बैठता जा रहा था ..कितनी मेहनत और संघर्षों से उन्होंने ज़मीन जायदाद को दुश्मनों से बचाया था ...कैसे दिन रात एक कर कारोबार को ऊँचाइयों पर पहुँचाया था ..विनय की मम्मी को इससे कोई मतलब नहीं था ...पापा बीमार रहने लगे और विनय और उसकी मम्मी की बन आई अब उन्हें दिन या रात की कोई परवाह नहीं थी और उधर विनय की पत्नी दिन रात बढती विनय की आवारागर्दी से तंग हर वक़्त रोती रहती थी .घर में नौकरानी से ज्यादा हैसियत नहीं थी उसकी ,उसकी अपनी इच्छा का तो किसी के लिए कोई मूल्य नहीं था .
उधर अवंतिका ,अपने पापा के नक़्शे कदम पर आगे बढती जा रही थी ,दिनभर लडको के साथ घूमना ,फिरना और रात में मोबाइल पर बाते करना यही दिनचर्या थी उसकी .''दादीईईईईईईईईईईईइ ,मैं कॉलिज जा रही हूँ शाम को थोड़ी देर से आऊंगी....क्यूं ...वो मेरी बर्थडे पार्टी दी है नील व् निकी ने होटल में ...ठीक है कोई बात नहीं ....आराम से मजे करना बर्थडे कोई रोज़ रोज़ थोड़े  ही आती है ...थैंक यू दादी ,''सो नाईस ऑफ़ यू ''कह अवंतिका ने दादी के गालों को चूम लिया और उधर अवंतिका की मम्मी उसे रोकना चाहकर भी रोक नहीं पाई क्योंकि अवंतिका माँ के आगे से ऐसे निकल गयी जैसे वो उसकी माँ न होकर कोई नौकरानी खड़ी हो .
रात गयी सुबह हो गयी अब शाम के चार बजने वाले थे अवंतिका घर नहीं आई ...दादी ने अवंतिका को ..उसके दोस्तों को फोन मिलाया पर किसी ने भी फोन नहीं उठाया ..परेशां होकर दादी ने विनय से कहा ,''विनय ..अवंतिका कल सुबह घर से गयी थी अब तक भी नहीं आई ''और आप मुझे अब बता रही हो -विनय गुस्से से बोला .कल उसका बर्थडे था और वह बता कर गयी थी कि दोस्तों ने होटल में पार्टी दी है ..रात को देर से आऊंगी ....घबराते हुए मम्मी ने कहा ..और आपने उसे जाने दिया ..आपको उसे रोकना चाहिए था ...मैंने तुझे कब रोका जो उसे रोकती ...मम्मी मुझमे और उसमे अंतर............कहते हुए खुद को रोक लिया विनय ने ..आखिर वह भी तो लड़कियों के साथ ही मौज मस्ती करता था और आज जब अपनी बेटी वही करने चली तो अंतर दिख रहा था उसे ....विनय सोचता हुआ घर से निकल गया .
विनय देर रात थका मांदा टूटे क़दमों से घर में घुसा तो मम्मी एकदम से पास में आकर बोली ...कहाँ है अवंतिका ...विनय कहाँ है वो ....मम्मी वो रॉकी के साथ भाग गयी ...क्याआआआआआअ  रॉकी के साथ ,हाँ नील ने मुझे बताया और कहा ये प्लान तो उनका एक महीने से बन रहा था  सुन मम्मी अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ गयी ...पापा जो अब तक चुप बैठे थे बोले ,''विनय की मम्मी देख लिया अपने लालन पालन का असर यही होना था ,जो आज़ादी तुम बच्चों के लिए वरदान समझ रही थी उसमे यही होना था .बच्चों की इच्छाएं पूरी करना सही है किन्तु सही गलत में अंतर करना क्या वे कहीं और से सीखेंगे कहते कहते पापा कांपने लगे ....पापा आप शांत हो जाइये मैं अवंतिका को ढूंढ लाऊंगा ....बेटा मैं जीवन भर चुप ही रहा हूँ यदि न रहता तो ये दिन न देखना पड़ता कहते कहते पापा रोने लगे और निढाल होकर गिर पड़े ..
''विनय ''चलो बेटा ...सुन जैसे सोते से जाग गया हो उठा और अपने पापा के अंतिम संस्कार के लिए सिर झुका अर्थी के साथ चल दिया .