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बुधवार, 19 दिसंबर 2018
रविवार, 9 दिसंबर 2018
सोमवार, 3 दिसंबर 2018
बुधवार, 28 नवंबर 2018
गुरुवार, 2 अगस्त 2018
''बंजर होती बिरादरी ''
''बंजर होती बिरादरी ''
संभवतः
बस एक ही बिरादरी है ;
जो नहीं होती इकट्ठी
चीखने को साथ ,
अन्याय के खिलाफ ,चाहे
'पुण्य '
को डस ले पाप !
यहाँ प्रतिस्पर्धा ने ले लिया है
ईर्ष्या का रूप ,
धवल सुमुख हो उठें हैं
विकृत कुरूप |
न्याय के नाविक
हर्षित हैं साथी के डूबने पर ,
किन्तु स्वयं भी तो सवार हैं
असंख्य छेदों वाली नावों पर !
चलो
बस एक दिन के लिए
हौसला कर , भूलकर स्वार्थ ,
इकट्ठा हो जाओ ,
आँखों पर बंधी भय की काली पट्टी हटाकर;
और चापलूसी की मदिरा की बोतलें लुढ़काकर ;
मुंह में भरे बारूद के साथ
फट पड़ो
उस अन्यायी सत्ता पर
जिसने सोख ली है तुम्हारी कलम से
सच्चाई की स्याही ,
और तोड़ डाली है तुम्हारी हिम्मत की रीढ़
ताकि सत्य के साथ सीधा न खड़ा हो कोई |
मासूमों के खून से
आने लगी क्यों वतन परस्ती की सुगंध ,
'प्रसून' क्यों लगने लगे कंटक ?
क्यों तितलियों के मंडराने पर
गुलशन ने लगाया है प्रतिबन्ध ?
इन प्रश्नों की तपिश को
अन्यायियों के ठहाकों से डरकर
ठंडा मत हो जाने दो ,
इन सड़ांध से भरे पोखरों को
समंदर मत हो जाने दो |
लिखो वो जो देखो ,
कहो वो जो भोगो ,
दिखाओ बिना डरे जनता की
नंगी छाती पर घोपें गए नफरत के जहरीले खंजर ;
सावधान ,
वरना तुम्हारी बिरादरी हो जाएगी बंजर ||
- डॉ शिखा कौशिक नूतन
संभवतः
बस एक ही बिरादरी है ;
जो नहीं होती इकट्ठी
चीखने को साथ ,
अन्याय के खिलाफ ,चाहे
'पुण्य '
को डस ले पाप !
यहाँ प्रतिस्पर्धा ने ले लिया है
ईर्ष्या का रूप ,
धवल सुमुख हो उठें हैं
विकृत कुरूप |
न्याय के नाविक
हर्षित हैं साथी के डूबने पर ,
किन्तु स्वयं भी तो सवार हैं
असंख्य छेदों वाली नावों पर !
चलो
बस एक दिन के लिए
हौसला कर , भूलकर स्वार्थ ,
इकट्ठा हो जाओ ,
आँखों पर बंधी भय की काली पट्टी हटाकर;
और चापलूसी की मदिरा की बोतलें लुढ़काकर ;
मुंह में भरे बारूद के साथ
फट पड़ो
उस अन्यायी सत्ता पर
जिसने सोख ली है तुम्हारी कलम से
सच्चाई की स्याही ,
और तोड़ डाली है तुम्हारी हिम्मत की रीढ़
ताकि सत्य के साथ सीधा न खड़ा हो कोई |
मासूमों के खून से
आने लगी क्यों वतन परस्ती की सुगंध ,
'प्रसून' क्यों लगने लगे कंटक ?
क्यों तितलियों के मंडराने पर
गुलशन ने लगाया है प्रतिबन्ध ?
इन प्रश्नों की तपिश को
अन्यायियों के ठहाकों से डरकर
ठंडा मत हो जाने दो ,
इन सड़ांध से भरे पोखरों को
समंदर मत हो जाने दो |
लिखो वो जो देखो ,
कहो वो जो भोगो ,
दिखाओ बिना डरे जनता की
नंगी छाती पर घोपें गए नफरत के जहरीले खंजर ;
सावधान ,
वरना तुम्हारी बिरादरी हो जाएगी बंजर ||
- डॉ शिखा कौशिक नूतन
बुधवार, 18 जुलाई 2018
बुधवार, 11 जुलाई 2018
कुछ बहाना लाज़िमी था
दूर जाना लाज़िमी था,
कुछ बहाना लाज़िमी था।
अश्क़ कर देते बयाँ ग़म,
मुस्कुराना लाज़िमी था।
बेदिलों के पहलू में दिल
टूट जाना लाज़िमी था
आ गए थे दूर घर से
लौट जाना लाज़िमी था।
पिंजरें में क़ैद बुलबुलों का
फड़फड़ाना लाज़िमी था।
बेमग़ज़ कुछ हाथ थे,
संग खाना लाज़िमी था।
बहरी सियासत को जगाने
इक धमाका लाज़िमी था।
~~~~~~~~~
शालिनी
कुछ बहाना लाज़िमी था।
अश्क़ कर देते बयाँ ग़म,
मुस्कुराना लाज़िमी था।
बेदिलों के पहलू में दिल
टूट जाना लाज़िमी था
आ गए थे दूर घर से
लौट जाना लाज़िमी था।
पिंजरें में क़ैद बुलबुलों का
फड़फड़ाना लाज़िमी था।
बेमग़ज़ कुछ हाथ थे,
संग खाना लाज़िमी था।
बहरी सियासत को जगाने
इक धमाका लाज़िमी था।
~~~~~~~~~
शालिनी
सोमवार, 2 जुलाई 2018
क्या साथ चलने का बहाना एक नहीं
साथ न चलने के सौ बहाने करने वाले
क्या साथ चलने का बहाना एक नहीं ?
जब रिश्ते में दरारें पड़ने लगतीं हैं तो ऐसा ही होता है। प्यार का पौधा भी पानी माँगता है। वही रिश्ता जो सबसे हसीन था वही कब चुभने लगता है कि नश्तर बन जाता है , पता ही नहीं चलता। वही साथी जिसके बिना रहा नहीं जाता था आज साथ रहा नहीं जाता ; सौ कमियाँ दिखती हैं। कितने ही कारण परिस्थिति-जन्य होते हैं जिनमें हम अपनी अज्ञानता से बढ़ोत्तरी कर लेते हैं। बात उतनी बड़ी नहीं होती, जितनी बहस से बड़ी हो जाती है , और फिर शब्द पकड़ लिए जाते हैं। किसी ने कुछ कहा और हम उसका एक्स-रे निकाल लेते हैं। हर बात में उसका कोई उद्देश्य ढूँढ लेते हैं , और फिर शुरू हो जाते हैं उसे गलत सिद्ध करने में।
घर जब टूटने की कगार पर पहुँच जाते हैं , हम कितनी ही ज़िन्दगियों के साथ नाइन्साफी कर बैठते हैं। सिर्फ साथी नहीं , हमसे जुड़े सारे रिश्ते उसे भोगते हैं। अपनी आज़ादी ,अपनी ज़िन्दगी के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करने से कुछ नहीं होता। अगर आप अपना सँसार ही न सँभाल पाये तो आपके पास कुछ भी नहीं बचता। आप अपने ही दुश्मन बने हुए हैं ,ये वक़्त निकल जाने के बाद समझ आएगा। आप किसी भूचाल से गुजर रहे हैं , ये कहाँ जाकर थमेगा ,कह नहीं सकते। शादी के बाद बच्चे भी हैं और आप अलग होना चाहते हैं तो जरा सोचें कि उस बच्चे की क्या गलती थी जो आपके यहाँ पैदा हो गया। बचपन की हर बात गम की या ख़ुशी की , ताउम्र अपनी छाप छोड़ती है ; वही व्यक्तित्व बन कर उभरती है। एक फूल को आपने रेगिस्तान में किसके सहारे छोड़ दिया। जिसे एक समृद्ध बचपन देना था , उसके सारे हक़ ,अधिकार छीन लिये। बच्चा हमेशा अपने पेरेन्ट्स के साथ सुरक्षित महसूस करता है। कुण्ठित व्यक्तित्व अपने परिवार को क्या देगा , समाज को क्या देगा। वैसे भी अतीत सारी उम्र हावी रहेगा ,आप चाह कर भी ये सब भुला न पायेंगे। हम अपनी ज़िन्दगी के खुदा हो सकते हैं , बशर्ते परिस्थितियों का शिकार न बनें ,अपनी बागडोर अपने हाथ रखें।
हम सब सॉरी बोलने से बचते हैं। छोटी-छोटी बातों में तो एटिकेट्स निभाते हैं , और रिश्ते बचाने में ' सॉरी ' बोलने से बचने के लिये सौ बहाने खोज लेते हैं।और हाँ , अब पहली-पहली सी कोई बात नहीं होगी। उम्मीदें और ईगो की वजह से ही क्लैश ( टकराव ) होते हैं। ईगो को ' न ' सुनना बिलकुल पसंद नहीं होता।जिसे हम स्वाभिमान समझते हैं , वो ईगो होती है। ये सिर्फ तब जायेगी जब हम बड़ी ईगो से जुड़ेगें ,साथी भी अपना आप ही है , अपने जीवन का हिस्सा। ऐसा समझेंगे तभी प्यार कर सकेंगे , माफ़ कर सकेंगे। क्या उस मीठे वक़्त की मीठी यादों का एक भी बहाना ऐसा नहीं है जो आपको साथ चला सके ? दूर जाने के सौ बहाने करने वाले , क्या साथ चलने का एक भी बहाना नहीं बचा है ?
एक खता पर ज़िन्दगी वारी
होते न लम्हें इतने भारी
हार जाओगे नसीब से लड़ते हुए
ज़िन्दगी तुम्हें बख़्शेगी नहीं
माज़ी तुम्हें कभी चैन से सोने नहीं देगा
और तुम कितने सहिष्णु हो
ये तय होगा ,जब सहेज रखोगे रिश्तों को
किसी की भी राह में गुलाब नहीं बिछे होते , आपको अपनी राह खुद बनानी होती है। कई बार दोनों पक्ष एक पहल का इन्तिज़ार करते रहते हैं। एक पहल और बाँध टूट सकता है। कोई छोटा नहीं होता , इसे तो समझदारी कहेंगे। जो भरा होता है वही छलकता है। ज़िन्दगी को गले लगाना सीखें। प्रगति कभी जिन्दगी से बड़ी नहीं हो सकती। संभालें अपने सफर को , अपने हालात को , जो आपको मिला है सहेजें उसको।
इश्क की आग से सबेरा कर लेना
ये सूरज सी आब रखता है
इसकी तपिश से है दुनिया का चलन
इस पर भरोसा कर लेना
ख्वाब सी है जमीन ,ख्वाब सा है आसमान
रेशमी से ख्वाब बुन लेना
चलना वैसे भी है,चाहत का मोड़ देकर
इक हसीन मंज़र देना
शुक्रवार, 9 मार्च 2018
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