''बंजर होती बिरादरी ''
संभवतः
बस एक ही बिरादरी है ;
जो नहीं होती इकट्ठी
चीखने को साथ ,
अन्याय के खिलाफ ,चाहे
'पुण्य '
को डस ले पाप !
यहाँ प्रतिस्पर्धा ने ले लिया है
ईर्ष्या का रूप ,
धवल सुमुख हो उठें हैं
विकृत कुरूप |
न्याय के नाविक
हर्षित हैं साथी के डूबने पर ,
किन्तु स्वयं भी तो सवार हैं
असंख्य छेदों वाली नावों पर !
चलो
बस एक दिन के लिए
हौसला कर , भूलकर स्वार्थ ,
इकट्ठा हो जाओ ,
आँखों पर बंधी भय की काली पट्टी हटाकर;
और चापलूसी की मदिरा की बोतलें लुढ़काकर ;
मुंह में भरे बारूद के साथ
फट पड़ो
उस अन्यायी सत्ता पर
जिसने सोख ली है तुम्हारी कलम से
सच्चाई की स्याही ,
और तोड़ डाली है तुम्हारी हिम्मत की रीढ़
ताकि सत्य के साथ सीधा न खड़ा हो कोई |
मासूमों के खून से
आने लगी क्यों वतन परस्ती की सुगंध ,
'प्रसून' क्यों लगने लगे कंटक ?
क्यों तितलियों के मंडराने पर
गुलशन ने लगाया है प्रतिबन्ध ?
इन प्रश्नों की तपिश को
अन्यायियों के ठहाकों से डरकर
ठंडा मत हो जाने दो ,
इन सड़ांध से भरे पोखरों को
समंदर मत हो जाने दो |
लिखो वो जो देखो ,
कहो वो जो भोगो ,
दिखाओ बिना डरे जनता की
नंगी छाती पर घोपें गए नफरत के जहरीले खंजर ;
सावधान ,
वरना तुम्हारी बिरादरी हो जाएगी बंजर ||
- डॉ शिखा कौशिक नूतन
संभवतः
बस एक ही बिरादरी है ;
जो नहीं होती इकट्ठी
चीखने को साथ ,
अन्याय के खिलाफ ,चाहे
'पुण्य '
को डस ले पाप !
यहाँ प्रतिस्पर्धा ने ले लिया है
ईर्ष्या का रूप ,
धवल सुमुख हो उठें हैं
विकृत कुरूप |
न्याय के नाविक
हर्षित हैं साथी के डूबने पर ,
किन्तु स्वयं भी तो सवार हैं
असंख्य छेदों वाली नावों पर !
चलो
बस एक दिन के लिए
हौसला कर , भूलकर स्वार्थ ,
इकट्ठा हो जाओ ,
आँखों पर बंधी भय की काली पट्टी हटाकर;
और चापलूसी की मदिरा की बोतलें लुढ़काकर ;
मुंह में भरे बारूद के साथ
फट पड़ो
उस अन्यायी सत्ता पर
जिसने सोख ली है तुम्हारी कलम से
सच्चाई की स्याही ,
और तोड़ डाली है तुम्हारी हिम्मत की रीढ़
ताकि सत्य के साथ सीधा न खड़ा हो कोई |
मासूमों के खून से
आने लगी क्यों वतन परस्ती की सुगंध ,
'प्रसून' क्यों लगने लगे कंटक ?
क्यों तितलियों के मंडराने पर
गुलशन ने लगाया है प्रतिबन्ध ?
इन प्रश्नों की तपिश को
अन्यायियों के ठहाकों से डरकर
ठंडा मत हो जाने दो ,
इन सड़ांध से भरे पोखरों को
समंदर मत हो जाने दो |
लिखो वो जो देखो ,
कहो वो जो भोगो ,
दिखाओ बिना डरे जनता की
नंगी छाती पर घोपें गए नफरत के जहरीले खंजर ;
सावधान ,
वरना तुम्हारी बिरादरी हो जाएगी बंजर ||
- डॉ शिखा कौशिक नूतन
2 टिप्पणियां:
निमंत्रण विशेष :
हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।
यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !
'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
Badhiya abhivyakt kiya hai.
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