देर न हो जाये घाटी आज जाग जा ,
मेरी वफ़ा का दे सिला अलगाव भूल जा !
हिंदुस्तान जैसा आशिक न मिलेगा ,
गुमराह न हो सैय्याद की चाल जान जा !
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जो हाथ थाम मेरा साथ चलेगी ,
मंजिल तरक्की की तुझे रोज़ मिलेगी ,
खामोश न रह मेरे संग चीख कर दिखा !
मेरी वफ़ा का दे सिला अलगाव भूल जा !
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नोंचने की है पडोसी की तो आदत ,
अस्मत बचाई तेरी देकर के शहादत ,
नादान न बन आ मेरी हिफाज़त में तू आ जा !
मेरी वफ़ा का दे सिला अलगाव भूल जा !
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करना है फैसला तुझे रख नेक इरादा ,
मेरी अज़ीज़ तू रही है जान से जयादा ,
है इश्क़ दूध मेरा केसर सी तू घुल जा !
मेरी वफ़ा का दे सिला अलगाव भूल जा !
शिखा कौशिक 'नूतन ''
2 टिप्पणियां:
sahi pratikriya .
बहुत प्रभावपूर्ण रचना......
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपके विचारों का इन्तज़ार.....
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