फ़ॉलोअर

रविवार, 17 दिसंबर 2017

'किन्तु मित्र का मौन खल जाता है '

कड़वा , खट्टा  ,मिर्चीला
हर बोल चल जाता है ,
विकट क्षणों में किन्तु मित्र का
मौन  खल जाता है  !
......................................
 करे समर्थन मित्र हमारा
उससे रहे अपेक्षा ,
साथ हमारे डटा रहे वो
सबकी करे उपेक्षा ,
कभी-कभी विश्वासी को
विश्वास छल जाता है .
विकट क्षणों में किन्तु मित्र का
मौन खल जाता है !
...................................................
सरस-सरस बातें कर लेना
नहीं मित्रता होती ,
राम की भांति बालि-वध कर
जग की निंदा सहती ,
मित्र-भाव में देख मिलावट
तन-मन जल जाता है .
विकट क्षणों में किन्तु मित्र का
मौन खल जाता है !
...........................................
मिले समर्पित मित्र कोई
ये हर मन की अभिलाषा ,
लेकिन पहले स्वयं बांच लें
मीता की परिभाषा ,
मित्रों के बलिदानों से
 संकट भी टल जाता है .
विकट क्षणों में किन्तु मित्र का
मौन खल जाता है .

शिखा कौशिक 'नूतन'

7 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बिल्कुल साक्षात प्रतीत होती प्रस्तुति. सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई

शारदा अरोरा ने कहा…

यथार्थ है ,ये खालिस दोस्ती आज के युग में दुर्लभ सी हो गई है ।बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है ।

JEEWANTIPS ने कहा…

उत्कृष्ट व सराहनीय प्रस्तुति.........
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाओ सहित नई पोस्ट पर आपका इंतजार .....

Meena sharma ने कहा…

सुंदर और सत्य !

'एकलव्य' ने कहा…

निमंत्रण

विशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

संजय भास्‍कर ने कहा…

सराहनीय प्रस्तुति.........

Roli Abhilasha ने कहा…

Behad sundar abhivyakti.