ग़म का समंदर पी जाने को दिल मेरा तैयार है !
मर -मर कर यूँ जी जाने को दिल मेरा तैयार !
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दर्द नहीं अब दिल में होता किस्मत की मक्कारी पर ,
ठोकर खाकर उठ जाने को दिल मेरा तैयार है !
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जितना शातिर बन सकता है बन जाने दो दुश्मन को ,
रोज़ नए धोखे खाने को दिल मेरा तैयार है !
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लुटते अरमानों की लाशें हमनें देखी चुप रहकर ,
सदमें सारे सह जाने को दिल मेरा तैयार है !
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आँसू -आहें नहीं निकलती 'नूतन' ग़म से टकराने पर ,
अब फौलादी बन जाने को दिल मेरा तैयार है !
शिखा कौशिक 'नूतन'
3 टिप्पणियां:
आँसू -आहें नहीं निकलती 'नूतन' ग़म से टकराने पर ,
अब फौलादी बन जाने को दिल मेरा तैयार है !
very very nice
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2015) को 'तिलिस्म छुअन का..' (चर्चा अंक-1958) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
दिल मेरा भी तैयार है। बहुत बहुत बढ़िया शिखा जी। मेरे दिल के करीब होगी है आपकी ये रचना।
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