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रविवार, 26 अप्रैल 2015

''कुदरती इन जलजलों से कांपती इंसानियत ''


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हर तरफ मायूसियाँ ,चेहरों पर उदासियाँ ,
थी जहाँ पर महफ़िलें ;है वहां तन्हाईयाँ !
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कुदरती इन जलजलों से कांपती इंसानियत ,
उड़ गयी सबकी हंसी ;बस गम की हैं गहराइयाँ
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क्यूँ हुआ ऐसा ;इसे क्या रोक हम न सकते थे ?
बस इसी उलझन में बीत जाती ज़िन्दगानियाँ !
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है ये कैसी बेबसी अपने बिछड़ गए सभी
बुरा हो वक़्त ,साथ छोड़ जाती हैं परछाइयाँ !
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ज़लज़ले जो बन कहर छीन लेती ज़िन्दगी
ज़लज़ले को मौत कहने में नहीं बुराइयाँ !
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हे प्रभु कैसे कठोर बन गए तुम इस समय ?
क्या तुम्हे चिंता नहीं मिल जाएँगी रुसवाइयां !
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शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

''दिल मेरा तैयार है ''


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ग़म का समंदर पी जाने को दिल मेरा तैयार है !
मर -मर कर यूँ जी जाने को दिल मेरा तैयार !
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दर्द नहीं अब दिल में होता किस्मत की मक्कारी पर ,
ठोकर खाकर उठ जाने को दिल मेरा तैयार है !
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जितना शातिर बन सकता है बन जाने दो दुश्मन को ,
रोज़ नए धोखे खाने को दिल मेरा तैयार है !
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लुटते अरमानों की लाशें हमनें देखी चुप रहकर ,
सदमें सारे सह जाने को दिल मेरा तैयार है !
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आँसू -आहें नहीं निकलती 'नूतन' ग़म से टकराने पर ,
अब फौलादी बन जाने को दिल मेरा तैयार है !


शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

''जागरूक महिलाएं !''


भावना को सब्ज़ी मंडी से लौटते  हुए अचानक अपनी सहेली अनु मिल गयी .इधर-उधर की बातों के बाद दोनों की बातों के केंद्र में दोनों के बच्चे आ गए .भावना मुंह बनाते हुए बोली - क्या बताऊँ ! मेरा बेटा आठ साल का है और फेसबुक पर दिन-रात पता नहीं अपनी गर्ल-फ्रेंड  से क्या चैट करता रहता है .मैं रोकती हूँ तो कहता है सुसाइड कर लूँगा !'' अनु बड़ा सा मुंह खोलकर ''हा !'' करती हुई बोली -'' क्या बताऊँ मेरी बेटी ने भी नाक में दम कर रखा है . मोबाइल पर  व्हाटस एप पर दिन भर आँख गड़ाए रहती है . अभी सातवें साल में है . पढ़ने को कहो तो बहाने बनाती है . तंग करके रख दिया है !'' भावना उसके सुर में सुर मिलाते हुए बोली - हां ये तो है .वैसे भी कितना टाइम हम बच्चों पर लगा सकते हैं .घर के काम के बाद कुछ शॉपिंग , किटी पार्टी और पसंद के सीरियल ..सब कुछ छोड़ दें क्या !'' अनु भावना का समर्थन करते हुए बोली -'' ...और क्या .हम कोई सिक्टीस -सवेन्टीस की माँ है क्या ? जिनकी अपनी लाइफ ही नहीं होती थी...सुबह से शाम तक बस बच्चे..बच्चे..बच्चे  ...आफ्टर ऑल ..हम आज की जागरूक महिलाएं हैं . ''

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

हम इंसान हो गए -लघु कथा

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हम इंसान हो गए -लघु कथा

खुशबू कालेज जा रही थी . बीच रास्ते में उसकी सेंडिल की हील निकल गयी . पीछे से आती एक बाइक रुकी .खुशबू ने मुड़कर देखा तो ये साहिल था .साहिल बाइक से उतरा और उसकी सेंडिल हाथ में लेता हुआ बोला -चलो इसे ठीक करा देता हूँ पास में ही एक मोची बैठता है .खुशबू थोड़ा लज्जित होते हुए बोली -अरे आप क्यों मेरे सेंडिल हाथ में लेते हैं किसी ने देख लिया तो क्या कहेगा कि नीच जाति की लड़की की सेंडिल एक ब्राह्मण लड़का हाथ से उठा रहा है .साहिल ठहाका लगाता हुआ बोला -'' चुप से चलती हो या तुम्हें भी उठाना पड़ेगा .'' इस घटना के दो साल बाद साहिल और खुशबू ने प्रेम-विवाह किया तब खुशबू साहिल को वरमाला पहनाते हुए बोली थी -'' आज से तुम मेरी नीच जाति के हो गए या मैं ब्राह्मण हो गयी ?'' साहिल ने उसकी वरमाला पहनते हुए कहा था -'' आज से हम इंसान हो गए .

डॉ.शिखा कौशिक 'नूतन'