पीत वसन में लगती हो तुम
महारानी मधुमास की !
ओढ़ दुपट्टा रंग गुलाबी
लगती कली गुलाब की !
वसन आसमानी कर धारण
खिल जाता है गौर वदन !
लाल रंग के वस्त्रों में तुम
दहकी लता पलाश की !
हरा रंग तो तुम पर जैसे
नयी बहारें लाता है !
हरियाली पीली पड़ जाती
रूप तुम्हारा देखकर !
श्वेत वसन में तुम्हें देखकर
मुझको ऐसा लगता है ,
आई चांदनी आज धरा पर
छवि तुम्हारा धर कर है !
शिखा कौशिक 'नूतन' :
2 टिप्पणियां:
सुंदर अर्थपूर्ण रचना
Sundar aur komal bhavnaayien.. :)
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